बिहार। पटना के महावीर मंदिर की पहचान के साथ जुड़ चुके नैवेद्यम लड्डू खुशबू भक्तों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करता ही है साथ ही साथ इस की एक विशिष्ट पहचान पटना के साथ पूरी तरह जुड़ चुकी है। नैवेद्यम और महावीर मंदिर का साथ 26 साल का हो चुका है।
महावीर मदिर में चढ़ाया जाने वाला प्रसाद नैवेद्यम लोगों की आस्था और श्रद्धा का प्रतीक है। इसके स्वाद, शुद्धता और पवित्रता का हर व्यक्ति कायल है। पिछले 26 वर्षो से इसकी प्रसिद्धि लगातार बढ़ती जा रही है। भक्तजन महावीर मदिर में प्रसाद के रूप में नैवेद्यम चढ़ाने के बाद इसे मिठाई के रूप में घरों में रखते हैं। कहते हैं, सभी मिठाइयों का स्वाद एक तरफ और भगवान को भोग लगाने के बाद नैवेद्यम का स्वाद एक तरफ। महावीर मदिर न्यास समिति के सचिव आचार्य किशोर कुणाल ने बताया कि महावीर मदिर में नैवेद्यम की शुरुआत वर्ष 1993 में हुई। उन्होंने बताया कि 1993 में मैं तिरुपति मदिर दर्शन करने के लिए गया था। उस समय गृह मत्रालय के अधीन अयोध्या में ओएसडी था। तिरुपति में नैवेद्यम चढ़ाकर प्रसाद ग्रहण किया तो उसका स्वाद काफी पसंद आया। उसी समय निर्णय लिया कि पटना जंक्शन स्थित महावीर मदिर में भी इसे प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाएगा। इसके कुछ ही दिनों बाद यहा नैवेद्यम का प्रसाद चढ़ाया जाने लगा। महावीर मदिर न्यास समिति नैवेद्यम की कुल बिक्री की दस फीसद राशि प्रसाद बनाने वाले कारीगरों को देती है। यही कारण है कि तिरुपति से आकर कारीगर पटना में काम करने को तैयार हैं। अब तो कारीगरों की दूसरी पीढ़ी भी काम करने आने लगी है।
मुजफ्फरपुर भी जाता है नैवेद्यम
पटना के महावीर मदिर में बनने वाला नैवेद्यम राजधानी के विभिन्न मदिरों में चढ़ाये जाने के साथ ही मुजफ्फरपुर गरीबनाथ मदिर में भी चढ़ाया जाता है। राजधानी के बेलीरोड महावीर मदिर एव जल्ला महावीर मदिर में भी नैवेद्यम का प्रसाद चढ़ाया जाता है। प्रसाद के रूप में ही ग्रहण की परंपरा.नैवेद्यम के हर पैकेट पर लिखा रहता है- ‘नैवेद्यम प्रसाद है, इसको बिना भगवान को चढ़ाये खाना मना है।