प्राचीन गुर्जरात्रा (गुर्जरदेश) और आधुनिक गुजरात राज्य मे क्या अंतर है?—
प्राचीन गुर्जरात्रा या असली गुजरात आज के दक्षिण पश्चिम राजस्थान में था,इसमें आज के राजस्थान के पाली,जालौर, भीनमाल, सिरोही, बाड़मेर का कुछ हिस्सा, कुछ हिस्सा जोधपुर व् कुछ हिस्सा मेवाड़ का सम्मिलित था, (इस प्राचीन प्रदेश का नामकरण 5 वी सदी के आसपास गुर्जरात्रा क्यों हुआ, औऱ कब से यह गौड़वाड़ कहलाने लगा, इसके विषय में अलग से पोस्ट करूँगा)। जो आज का गुजरात राज्य है वो उस समय तीन हिस्सों में अलग अलग विभाजित था,
1-आनर्त (आज के उत्तर गुजरात का इलाका)
2-सौराष्ट्र
3-लाट (आज का दक्षिण गुजरात)
भीनमाल प्राचीन गुर्जरात्रा की राजधानी थी, जिस पर हर्षवर्धन के समय चावड़ा राजपूत व्याघ्रमुख शासन करते थे। उस समय चावड़ा क्षत्रिय गुर्जरात्रा के शासक होने के कारण गुर्जरेश्वर कहलाते थे। सम्राट वत्सराज की गल्लका प्रशस्ति के अनुसार प्राचीन गुर्जरात्रा पर इसके कुछ समय बाद ही नागभट्ट प्रतिहार ने कब्जा कर लिया तथा इस गुर्जरात्रा प्रदेश के शासक बनने के कारण वो भी गुर्जरेश्वर कहलाए। लक्ष्मनवंशी रघुकुली क्षत्रिय नागभट्ट प्रतिहार ने चावड़ा क्षत्रियों से ही गुर्जरात्रा प्रदेश को जीता था।
चावड़ा वंश का शासन भीनमाल से समाप्त हो गया और उन्होंने प्राचीन आनर्त देश(आज के गुजरात का उत्तरी भाग को आनर्त देश कहा जाता था) में पाटन अन्हिलवाड़ को राजधानी बनाया तथा अपने प्राचीन राज्य गुर्जरात्रा की स्मृति में नए स्थापित राज्य का नाम भी गुर्जरात्रा रख दिया।
भोजपुरी ,हिन्दी ,गुजराती ,मराठी , राजस्थानी ,बंगाली ,उड़िया ,तमिल, तेलगु ,की भाषाओं की पूरी फिल्म देखने के लिए इस लिंक को क्लीक करे:-https://aaryaadigital.com/ आर्या डिजिटल OTT पर https://play.google.com/store/apps/de… लिंक को डाउनलोड करे गूगल प्ले स्टोर से
चावड़ा वंश को उनके लेखों में चापोतक्ट लिखा मिलता है ,इन्हें परमार राजपूतो की शाखा माना जाता है। अभी भी राजस्थान, गुजरात, उत्तर प्रदेश में चावड़ा वंश की आबादी है, गुजरात मे तो चावड़ा राजपूतो की आज भी स्टेट हैं। इस प्रकार प्राचीन आनर्त देश ही बाद में गुर्जरात्रा या गुजरात राज्य के रूप में प्रसिद्ध हुआ, पर प्रारम्भ में इसमें पाटन, साबरकांठा, मेहसाणा, बनासकांठा आदि ही शामिल थे,
दसवीं सदी में अंतिम चावड़ा शासक सामंतसिंह के बाद उनके रिश्तेदार मूलराज सोलंकी इस गुर्जरात्रा प्रदेश के स्वामी बने, इस कारण मूलराज सोलंकी व उनके वंशज भी गुर्जरेश्वर या गुर्जरराज कहलाए।
भोजपुरी ,हिन्दी ,गुजराती ,मराठी , राजस्थानी ,बंगाली ,उड़िया ,तमिल, तेलगु ,की भाषाओं की पूरी फिल्म देखने के लिए इस लिंक को क्लीक करे:-https://aaryaadigital.com/ आर्या डिजिटल OTT पर https://play.google.com/store/apps/de… लिंक को डाउनलोड करे गूगल प्ले स्टोर से
कालांतर में अन्हिलवाड़ा के सोलंकी राजवंश ने लाट क्षेत्र (आज का दक्षिण गुजरात) को भी अपने अधीन कर लिया और आनर्त व लाट का संयुक्त क्षेत्र अब गुर्जरात अथवा गुजरात कहे जाने लगे।। ये सोलंकी राजपूत राजा भी इस नए गुजरात पर शासन करने के कारण ही गुरजेश्वर कहलाए। किन्तु सौराष्ट्र कच्छ का इलाका इस गुजरात से अलग ही रहा। कालांतर में गुजराती भाषा का प्रचार प्रसार सौराष्ट्र में भी हो गया और 1947 के बाद समान भाषा के नाम पर जिस गुजरात नामक प्रदेश का निर्माण हुआ उसमे सौराष्ट्र और कच्छ का इलाका भी जोड़ दिया गया।
इस प्रकार ही आधुनिक गुजरात राज्य अस्तित्व में आया जबकि असली या प्राचीन गुजरात राज्य आज के दक्षिण पश्चिम राजस्थान के हिस्से को कहा जाता था जो आज के गुजरात से बिल्कुल अलग था। जब आनर्त और लाट का संयुक्त हिस्सा नवीन गुजरात के रूप में प्रसिद्ध हो गया था तो प्राचीन गुर्जरात्रा प्रदेश का नाम भी समय के साथ बदलकर गौड़वाड़ हो गया, जो आज राजस्थान के पाली जालौर सिरोही के संयुक्त क्षेत्र को कहा जाता है। आधुनिक पशुपालक गुज्जर जाति की जनसंख्या न तो प्राचीन गुर्जरात्रा में है न ही आधुनिक गुजरात राज्य में इन गुज्जरों की कोई आबादी है।
न तो प्राचीन गुजरात में गुज्जर हैं न आधुनिक गुजरात में गुज्जर हैं!!! न प्रतिहारों की प्राचीनतम राजधानी भीनमाल और मंडोर में गुज्जर हैं।
न ही प्रतिहारों के सबसे विशाल राज्य की राजधानी कन्नौज में गूजरों की कोई आबादी है!! न ही आज गूजरों में कोई प्रतिहार परिहार वंश मिलता है, गुजरात और कन्नौज में तो कोई जानता ही नही कि गुज्जर जाति होती क्या है!!! फिर किस आधार पर ये प्रतिहार वंश और गुजरात पर दावा ठोकते हैं?? इसी प्रकार 18 वी सदी में गुजरात मे बड़ौदा पर शासन स्थापित करने वाले गायकवाड़ मराठा भी गुरजेश्वर कहलाए जाते हैं। गुरजेश्वर गुर्जराधिपति आदि उपाधियों का अर्थ है गुजरात प्रदेश के शासक न कि गुज्जर जाति के शासक, ये बात गुज्जर भाइयो को समझ लेनी चाहिए।
आमेर के कच्छवाह राजपूत शासक मल्यसी को भी गुजरात पर अधिकार करने के कारण एक जगह गुर्जरराज लिखा मिलता है।
महात्मा गांधी व मौहम्मद अली जिन्ना भी बॉम्बे की संस्था ‘गुर्जर सभा’ के सदस्य थे क्योंकि दोनो गुजराती थे। दक्षिण अफ्रीका से लौटने पर आयोजित समारोह में जिन्ना ने मोहनदास करमचंद गांधी को सभी गुर्जरों का गौरव बताया था। यहां गुर्जर जातिसूचक नही स्थानसूचक है।
क्या आप महात्मा गांधी व जिन्ना को भी गुज्जर कहोगे? इसी प्रकार “गुर्जर गौड़ ब्राह्मण अर्थात गुर्जरात्रा प्रदेश से आए गौड़ ब्राह्मण न कि गुज्जर जाति के गौड़ ब्राह्मण” इसी प्रकार गुर्जर सुथार या गुर्जर बनिये भी मिलते हैं जो स्थानसूचक हैं न कि जातिसूचक। इसी प्रकार प्राचीन गुर्जरात्रा या आधुनिक गुर्जरात्रा के शासक क्षत्रिय राजवंश चावड़ा, प्रतिहार, सोलंकी गुर्जरेश्वर या गुर्जरराज कहलाए ,वो स्थानसूचक है न कि जातिसूचक।
इनका उत्तर भारत के राजस्थान, वेस्ट यूपी, पंजाब, जम्मू कश्मीर ,चंबल क्षेत्र की परम्परागत पशुपालक व बाद में कृषक बनी गुज्जर जाति से कोई सम्बन्ध नही है।। कृपया वामपंथी इतिहाकारो के बहकावे में आकर सदियों से हम सबके पुरखो द्वारा स्थापित किया गया सौहार्द ,प्रेम व भाईचारा समाप्त न करें