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श्रीश उपाध्याय/मुंबई
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आज ब्रहमास्त्र फ़िल्म के बारे में लिखूँगा लेकिन एक पत्रकार की तरह, बिना किसी का पक्ष लिए . ऐसा इसलिए लिख रहा हूँ क्योंकि मै भी ट्रोल गैंग का सदस्य हूँ और मुझे गर्व है कि मै ट्रोलर हूँ .
फ़िलहाल फ़िल्म शुरू हुई तो मै सोच कर बैठा था कि फ़िल्म सड़ी हुई होगी ,मंगलवार को जुहू पीवीआर में रात 8 का शो था और जनता भी 50-60 के आस पास ही थी .कम भीड़ को देखकर मैने ठान लिया था कि फ़िल्म पकाऊँ ही होगी . इसके अलावा सुशांत सिंह राजपूत और कंगना राणावत जैसे जनता के बीच से निकल कर आए कलाकारों के प्रति करन जौहर के रुख़ को कथित तौर पर सुनने और जानने के बाद करन जौहर के लिए मै अच्छा लिखना पसंद ही नही करता .
कई बार अपने अंदर के ग़ुस्से को टाल कर फ़िलहाल लिखकर आगे लिखना चाह रहा हूँ …तो फ़िलहाल… फ़िल्म शुरू हुई और शुरू से ही फ़िल्म की पठकथा ने दर्शकों को बांधना शुरू कर दिया .हिंदू धर्म से जुड़े शस्त्रों पर काल्पनिक रूप से बनी फ़िल्म में तकनीकी का अनूठा उपयोग दिखा . फ़िल्म में वाराणसी और उत्तराखंड खूबसूरती को बड़े ही शानदार तरीक़े फ़िल्माया गया है . शाहरुख़ खान को छोड़ कर अमिताभ बच्चन,आलिया भट्ट, रनबीर कपूर ,
मोनी रॉय की भूमिका बड़ी ही दमदार लगी . हो सकता है शाहरुख़ भी अच्छा कर रहा हो लेकिन उसको देख कर एक आत्म-ग्लानि होती है कि मै इस राष्ट्र विरोधी को क्यों देख रहा हूँ . एक बार फिर …फ़िलहाल… फ़िल्म पूरी देखी …मज़ा आया .काफ़ी दिनो के बाद थीयटर में कोई फ़िल्म ऐसी दिखी जिसे देख कर ऊबा नही .
वैदिक काल के शस्त्रों और मॉडर्न युग को बहुत ही बखूबी से प्रदर्शित किया गया है . एक बार सपरिवार फ़िल्म देखने जैसी है ख़ास कर बच्चों को फ़िल्म खूब पसंद आएगी .
फ़िल्म किस हद तक अच्छी लगी इसका अंदाज़ा आप इस बात से ही लगा सकते है कि एक ट्रोलर होने के बावजूद मै अपने आप को काफ़ी रोकने के बावजूद इस फ़िल्म को साढ़े चार स्टार देने से नही रोक पाया .आधा स्टार काटा क्योंकि एक पत्रकार भी तो इंसान होता है और वो भी हिंदुस्थानी हूँ और शाहरुख़ खान को इतनी अच्छी फ़िल्म में हज़म नही कर पा रहा हूँ ..सिर्फ़ शाहरुख़ खान के कारण आधा स्टार काट रहा हूँ .
वैसे हम लोग करन जौहर को भी हज़म नही कर पाते क्योंकि हिल्ले-डुल्ले-महात्मा-फुल्ले को पैसा तो आम लोगों से कमाना है लेकिन फ़िल्मों में मौक़ा देने के नाम पर उसका खुले आम क़बूल करना कि अपने लोगों अर्थात बॉलीवुड के लोगों को वरीयता देने में उसे कोई संकोच नही है . कही न कही आम इंसान होने के नाते खटकता है .करन बेटा ..वैसे तू है मेरी उम्र से बड़ा लेकिन सोच से तू मेरे बेटे जैसा ही है —अपरिपक्व , क्योंकि परिपक्व व्यक्तित्व बिरादरी देख कर नही लोगों की क़ाबिलियत के आधार पर उनको काम देता है या उनके साथ काम करता है . अपनी परिपक्वता का उदाहरण देते हुए मै इस अच्छी फ़िल्म को अच्छा बोल रहा हूँ और शाहरुख़ को गंदा क्योंकि शाहरुख़ सच में फ़िल्म में गंदा लग रहा है और शायद हर देशभक्त हिंदुस्थानी को लगे.