महारानी पद्मावती ही नहीं पवांसा की रानी पंवारनी ने भी किया था जौहर, आज भी यह मंदिर है गवाह
अलाउद्दीन खिलजी से परेशान चित्तौड़ की महारानी पद्मावती ने जौहर किया था। आज भी उनकी वीरता के किस्से पूरे देश में सुनाए जाते हैं। सम्भल के पवांसा कस्बा स्थित जौहर मंदिर भी इसी वीरता की याद दिलाता है। पवांसा की रानी पंवारनी ने 277 वीरांगनाओं के साथ जौहर किया था।
यह मंदिर इसका साक्षी है। रानी पंवारनी के साथ ही यहां रखे चार कलश में एक रानी पद्मावती का भी है। 17 नवंबर 1717 को हुई वीरता की यह तिथि मानस पटल पर अंकित है। उनके पूर्वंज आज भी इस दिन को याद करते हुए नमन करते हैं। देश के विभिन्न हिस्सो में बसे पवांसा के राजपूत यहां आते हैं और वीरांगनाओं को नमन करते हैं।
बुजुर्ग कहते हैं कि 17 नवंबर 1717 को पवांसा पर मेवातियों ने हमला कर दिया था। इस भीषण आक्रमण का पवांसा के राजा पहुंप सिंह और उनके सेनापति केसरी सिंह ने डटकर सामना किया था। उन्होंने अपने वीर साथियों के साथ जमकर युद्ध किया और मेवातियों का आक्रमण विफल कर दिया। जीत की खुशी में राजा पहुंप सिंह की सेना मेवातियों के झंडे को छीन कर ले आई थी।
पवांसा के राजपूत वीरों को अपने घरों की छतों पर बैठी राजपूतानियां ने दूर से ही देखा। उनके हाथों में मेवातियों के झंडे को देखकर वह उन्हें मेवाती समझ बैठीं। उन्होंने दुश्मन मेवातियों के झुंड के साथ आगे बढ़ रही फौज को देखा। अपनी आन, बान, शान को बचाने के लिए रानी पंवारनी ने 277 से अधिक वीरांगनाओं के साथ अग्नि कुंड में कूदकर जौहर कर लिया। जौहर किए गए अग्निकुंड की वह जगह पर अब जौहर मंदिर बना दिया गया है। वहीं पर सभी वीरांगनाओं की अस्थियों को एकत्र कर कलश में रखा गया है। इस वर्ष 304 वर्ष पूरे होने पर विशाल कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है।
दो दिन पहले जलाए 501 दीप
दो दिन पहले यहां मंगलवार को पवांसा की नारी शक्ति द्वारा जौहर वीरांगनाओं को नमन किया गया। उसके बाद पांच नदियां गंगा, यमुना, सरयू, नर्मदा और सोत नदी से गंगाजल लाकर कलश में भरकर पवांसा गांव की गलियों और मंदिरों पर होते हुए कलश यात्रा निकाली गई थी। 501 दीप जलाकर श्रद्धांजलि दी गई।