मुश्किल में मुख्यमंत्री की कुर्सी, हेमंत सोरेन को हटाने पर चुनाव आयोग सुनाएगा फैसला, झारखंड में बड़ा सियासी संकट…

desk : झारखंड में बड़ा सियासी उठापटक हो सकता है क्योंकि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की कुर्सी खतरे में है. इससे झारखंड सरकार पर संकट खड़ा हो सकता है. दरअसल, झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की सदस्यता पर तलवार लटक रही है. उन पर माइनिंग लीज में अनियमितता का आरोप लगा है. इस मामले की सुनवाई झारखंड हाई कोर्ट में भी चल रही है जिस पर फैसला आना शेष है. लेकिन इसी मामले को लेकर चुनाव आयोग की ओर से भी बड़ा फैसला आना है.

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चुनाव आयोग ने माइनिंग लीज मामले में हेमंत सोरेन को 10 मई तक जवाब देने के लिए कहा था. लेकिन सीएम ने जवाब सब्मिट करने के लिए कुछ समय मांगा था. जिसके बाद चुनाव आयोग हेमंत सोरेन को 20 मई तक का समय दिया था. हेमंत सोरेन ने अपनी मां रूपी सोरेन के बीमार होने की बात कहते हुए चुनाव आयोग से समय मांगा था. चुनाव आयोग ने सीएम को जवाब सब्मिट करने के लिए 20 मई तक का समय दिया था. अब इसी मामले में चुनाव आयोग का फैसला आएगा. अगर सोरेन की सदस्यता पर अगर फैसला पक्ष में आया तो सब ठीक, लेकिन दोनों फैसले विपक्ष में गए तो सरकार पर संकट आ जाएगा.

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चुनाव आयोग के आलावा झारखंड हाईकोर्ट ने सुनवाई का मामला मंगलवार तक टाल दिया गया है. वहीं राज्य में बढ़ते सियासी संकट को देखते हुए हेमंत सोरेन की कुर्सी अगर जाती है तो अपने परिवार के किसी नजदीकी को सीएम बना सकते हैं. इसमें दो नाम हैं. एक नाम हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना और पुराने नेता चंपई सोरेन का सामने आ रहा है.

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क्या है मामला : झारखंड में खदान और उद्योग विभाग दोनों सीएम सोरेन के पास है. वे पहले से ही रांची में उनके नाम पर पत्थर की खदान के कथित आवंटन के कारण कानूनी उलझन में हैं. 2019 में बरहेट निर्वाचन क्षेत्र से सदन के लिए चुने गए सोरेन ने 13 साल पहले रांची जिले के अंगारा ब्लॉक के प्लाट संख्या 482 पर 0.88 एकड़ के पत्थर के खनन पट्टे के लिए आवेदन किया था. वहीं, चुनाव आयोग पहले से मामले की जांच कर रहा है कि क्या मुख्यमंत्री ने अपने पद का इस्तेमाल लाभ के लिए किया है?

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भाजपा ने आरोप लगाया कि यह मुख्यमंत्री द्वारा लाभ का पद धारण करने का मामला था, क्योंकि उन्होंने एक खनन पट्टा प्राप्त किया और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 9ए का उल्लंघन किया. इसी मामले पर एक जनहित याचिका पर झारखंड उच्च न्यायालय द्वारा भी सुनवाई की जा रही है, जिसमें केंद्रीय एजेंसियों से जांच की मांग की गई है.

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