उत्तर प्रदेश की राजनीति के पटल को दशकों तक अपनी आभा से आलोकित करने वाले श्रद्धेय कल्याण सिंह जी नहीं रहे। अपार शोक की इस घड़ी में सोच रहा हूं कि अब जबकि वह हमारे बीच नहीं हैं तो उन्हेंं किस तरह याद किया जाए। उन्हें एक राजनीतिक संत कहूं, जिसे पद-प्रतिष्ठा का मोह छू तक न गया हो अथवा दृढ़ संकल्प की प्रतिमूर्ति मानूं, जो लक्ष्य का संधान होने तक अर्जुन की भांति एकनिष्ठ भाव के साथ प्रयत्नशील रहे और अंतत: सफलता ने उनका वरण किया।वास्तव में पांच दशक लंबा उनका सार्वजनिक जीवन इतना विविधतापूर्ण और संघर्षपूर्ण रहा है कि उसे कुछ विशेषणों के माध्यम से पूरा नहीं किया जा सकता। हां, इस विस्तृत समृद्ध राजनीतिक कालखंड में शुचिता, कर्तव्यपरायणता, ईमानदारी, सख्त प्रशासक और कुशल नेतृत्व उनके व्यक्तित्व की पहचान बने रहे। भारतीय राजनीति के एक वृहद कालखंड में भारतरत्न श्रद्धेय अटल बिहारी वाजपेयी, पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी और कल्याण सिंह की तिकड़ी में जनमानस की आकांक्षाओं की छवि दृष्टिगोचर होती थी। मैं सौभाग्यशाली हूं कि इन तीनों महानुभावों का स्नेह मुझे मिला।
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