सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को 31 जुलाई तक एक देश, एक राशन कार्ड योजना को लागू करने का निर्देश दिया है। कोर्ट के मुताबिक ऐसे हर परिवार के लिए और परिवार के हर सदस्य के लिए राशन-पानी का इंतजाम उसी स्थान पर होना चाहिए, जहां वे रह रहे हों। गौरतलब है कि पिछले साल जब पूरी दुनिया पहली बार कोरोना संकट की मार ङोल रही थी, समस्याओं के समाधान के लिए नए-नए उपायों पर बल दिया जा रहा था, तब प्रवासी मजदूरों के भरण-पोषण की समस्या ने पूरे देश का ध्यान खींचा था।
जिन राज्यों में मजदूर काम करने गए थे, उन राज्यों के राशन कार्ड नहीं होने से सार्वजनिक वितरण प्रणाली का लाभ वे नहीं उठा पा रहे थे। तब इस योजना की जरूरत बड़ी शिद्दत से महसूस की जा रही थी। तब मोदी सरकार ने भी ‘एक देश, एक राशन कार्ड’ योजना को राष्ट्रीय स्तर पर लागू करने का एलान किया था। हालांकि इसकी शुरुआत अप्रैल, 2018 में ही हो गई थी, लेकिन कई सारी समस्याओं के कारण इसका दायरा तय समय में नहीं बढ़ाया जा सका।
यह भी एक तथ्य है कि मार्च, 2021 से पहले 100 फीसद नेशनल पोर्टेबिलिटी हासिल करने का लक्ष्य रखा गया था। इससे जो मजदूर जिस राज्य में हैं, उन्हें उसी राज्य में उनके मूल राज्य के राशन कार्ड पर अनाज मिल जाता, लेकिन जून गुजर जाने तक भी इस लक्ष्य को हासिल नहीं किया जा सका। अब अदालत ने राज्य सरकारों और केंद्र सरकार को इस बाबत सख्त निर्देश दिए हैं। इसके मद्देनजर असंगठित मजदूरों के रजिस्ट्रेशन के लिए एक पोर्टल डेवलप करने का निर्देश कोर्ट ने दिया है।
इस योजना के तहत लाभार्थी किसी भी राज्य या केंद्रशासित प्रदेश के सरकारी दुकानों से राशन खरीदने में सक्षम हो पाएंगे। जैसे उत्तर प्रदेश का एक मजदूर अगर हैदराबाद में काम करने गया है तो वह उत्तर प्रदेश वाले राशन कार्ड पर हैदराबाद में भी सब्सिडी वाला अनाज प्राप्त कर सकता है। साथ ही अगर कोई मजदूर अपने राज्य के अंदर ही एक जिले से दूसरे जिले में काम करने जाता है तो वहां भी वह राशन कार्ड की सुविधा हासिल कर सकता है। हालांकि इसके लिए मोबाइल सिम कार्ड की तरह ही राशन कार्ड को भी पोर्टेबल कराना जरूरी होगा। पहले तो राशन कार्ड को आधार से लिंक करना होगा। इसके बाद सिम कार्ड पोर्टेबिलिटी में हम जिस तरह नेटवर्क कंपनी बदलते हैं उसी तरह इस योजना में हमें सार्वजनिक वितरण प्रणाली की दुकान बदलनी होगी।