DESK : यह पुरस्कार दुनिया भर के उन पत्रकारों को प्रदान किया गया है, जिन्हें COVID-19 महामारी पर अपनी रिपोर्टिंग के कारण कठिनाइयों का सामना करना पड़ा हो, यह उन्हें गिरफ्तार किया गया हो अथवा धमकी दी गई हो। तभी उन्होंने अपना काम छोड़ ,ये अवॉर्ड दुनिया भर में 14 देशों के 17 पत्रकारों को “मीडिया में मानव अधिकारों और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए उत्कृष्ट प्रतिबद्धता” दिखाने के लिए Deutsche Welle Freedom of Speech Award के लिए चुना गया है।
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यह अवॉर्ड फ्रीलांस फोटोजर्नलिस्ट एवजिनी मलोलिएत्का और एसोसिएटेड प्रेस के वीडियोग्राफर और फोटोजर्नलिस्ट एमस्तिस्लाव चेर्नोव को दिया गया है.दोनों पत्रकारों यूक्रेन के दक्षिण-पूर्वी शहर मारियोपल की तबाही और रूसी कब्जे की तस्वीरें और वीडियो दुनिया को दिखाये हैं. दोनों ने मारियोपल में काम कर रहे डॉक्टरों, स्वंयसेवियों और अनगिनत युद्ध पीड़ितों की दास्तान को दुनिया के सामने रखा. विश्वभर में चर्चित, रूसी बमबारी में तबाह होने वाले अस्पताल की तस्वीरें भी मलोलिएत्का और चेर्नोव ने ही खींची थीं. डीडब्ल्यू से बातचीत में मलोलिएत्का ने कहा कि जब रूस ने कथित दोनेत्स्क रिपब्लिक और लुहांस्क रिपब्लिक को अलग देश के रूप में मान्यता दी, तभी से स्पष्ट हो गया था कि जंग अब टल नहीं सकती. बस सवाल इतना ही था कि कब शुरू होगी. उन्होंने कहा, “हमें जानकारी थी कि वे मारियोपल के रास्ते पहले से अलग किए जा चुके क्रीमिया तक एक रास्ता बनाना चाहते हैं” 24 फरवरी को जब रूसी हमला शुरू हुआ तो दोनों पत्रकार अजोव सागर के बने बड़े बंदरगाह वाले इस शहर में थे. मारियोपल रूस हमले का निशाना बनने वाली सबसे शुरुआती शहरों में से एक था. मलोलिएत्का ने बताया, “हमने मिसाइलों का निशाना बनते अपार्टमेंटों को कैमरे में रिकॉर्ड किया.
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शुरुआत में मारियोपल का पूर्वी इलाका गोलाबारी से प्रभावित था. बाकी सारे हिस्सों में शांति बनी हुई थी. पत्रकार अपना काम कर पा रहे थे, स्वतंत्र रूप से घूम पा रहे थे” हालांकि ऐसा ज्यादा दिन नहीं रहा. मारियोपोल की रक्षा कुछ ही दिनों बाद यूक्रेनी सैनिकों की संख्या मारियोपोल में बढ़ने लगी. मलोलिएत्का के मुताबिक, “पूरी आर्मी शहर में आ गई, क्योंकि खुले में डटे रहना संभव नहीं रह गया था” गोलाबारी तेज होती जा रही थी और शहर के मुख्य हिस्से पर भी हमले बढ़ रहे थे. हवाई हमले हो रहे थे, रूस के खुफिया दस्ते शहर के अंदर आकर अपना काम कर रहे थे. इस वजह से स्वतंत्र रूप से घूम पाना संभव नहीं रह गया था. बहुत कम वाहन सड़कों पर दिख रहे थे, फोन लाइनें धीरे-धीरे बंद हो रही थीं. 10 मार्च आते-आते बाहरी संपर्क बंद हो गया. मलोलिएत्का ने बताया, “लोग घबराए हुए थे और हमसे पूछ रहे थे कि क्या चल रहा है.