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मोदी सरकार ने फिर दिखाया है कि बड़े आर्थिक सुधारवादी कदम उठाने का राजनीतिक माद्दा

मोदी सरकार ने फिर दिखाया है कि बड़े आर्थिक सुधारवादी कदम उठाने का राजनीतिक माद्दा

नई दिल्ली। पुराने मामलों पर कर यानी रेट्रोस्पेक्टिव टैक्स मामले के पिछले एक दशक से चल रहे विवाद को विराम देकर मोदी सरकार ने फिर दिखाया है कि बड़े आर्थिक सुधारवादी कदम उठाने का राजनीतिक माद्दा वह खूब रखती है। पिछले एक पखवाड़े में विपक्ष की लामबंदी के बीच सरकार ने आर्थिक सुधारों की गति को बढ़ाया है। रेट्रोस्पेक्टिव टैक्स मामले में जो कानूनी संशोधन प्रस्तावित किया गया है, उसे भी विपक्ष निश्चित तौर पर सरकार पर हमले के लिए इस्तेमाल करेगा, लेकिन यह फैसला इसलिए किया गया है कि कोरोना के बाद बदले माहौल में जब वैश्विक कंपनियां निवेश के लिए भारत की तरफ देखें तो उनके सामने टैक्स को लेकर कोई अनिश्चितता न हो।

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वित्त सचिव टीवी सोमनाथन ने कहा भी है कि विदेशी निवेश को आकर्षित करने को लेकर भारत अभी बहुत महत्वपूर्ण मोड़ पर है। सरकार की तरफ से संकेत है कि आने वाले दिनों में आर्थिक सुधारों और इकोनामी को मजबूत बनाने को लेकर कुछ और बड़े फैसले किए जाएंगे। दो दिन पहले ही संसद ने सरकार की तरफ से प्रस्तावित द जनरल इंश्योरेंस बिजनेस (संशोधन) विधेयक, 2021 को मंजूरी दी है, जो अब साधारण बीमा कंपनियों में सरकार को अपनी हिस्सेदारी 51 फीसद से भी नीचे ले जाने की इजाजत देती है।

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आम बजट 2021-22 में दो सरकारी बैंकों के साथ एक साधारण बीमा कंपनी के निजीकरण का एलान किया गया था। अभी तक के कानून के मुताबिक साधारण बीमा कंपनियों में सरकारी हिस्सेदारी 51 फीसद से नीचे नहीं की जा सकती थी। इसके कुछ ही दिन पहले कैबिनेट ने सरकारी क्षेत्र की तेल व गैस कंपनियों में सौ फीसद विदेशी निवेश की छूट देने का फैसला किया है। यह फैसला पहली बार देश की किसी सरकारी कंपनी को पूरी तरह से विदेशी कंपनी को बेचने का रास्ता साफ करेगा।

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सरकार चालू वित्त वर्ष में भारत पेट्रोलियम (बीपीसीएल) का विनिवेश करना चाहती है। इस फैसले से बीपीसीएल को पूरी तरह से किसी विदेशी एनर्जी कंपनी को बेचा जा सकेगा। वित्त मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि रेट्रोस्पेक्टिव टैक्स विवाद को हमेशा के लिए विराम देने का कदम भारत को दुनिया के बेहतरीन निजी निवेश ठिकानों के तौर पर स्थापित करने की दिशा में अहम है। इसे 2019-20 में कारपोरेट टैक्स की दर को घटाकर 25 फीसद करने के फैसले के अगले कदम के तौर पर देखा जाना चाहिए।

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कोरोना के बाद दुनिया में नई वैश्विक सप्लाई व्यवस्था बनने की संभावना है। इसके तहत कई बड़ी विदेशी कंपनियां मौजूदा देशों को छोड़कर अन्य आकर्षक निवेश स्थलों की खोज करेंगी। अपने विशाल बाजार व प्रशिक्षित श्रम की वजह से भारत इन कंपनियों का पसंदीदा स्थल बन सकता है। कंपनियों के समक्ष यहां कर व्यवस्था में अनिश्चितता का सवाल नहीं होना चाहिए। भारत की प्रतिस्पर्धा सिर्फ एशियाई व लैटिन अमेरिकी देशों से नहीं है। अमेरिका व कुछ यूरोपीय देश भी फिर से मैन्यूफैक्चरिंग को बढ़ावा देने की रणनीति अपना रहे हैं। 2020-21 में भारत में 81.32 अरब डालर का विदेशी निवेश आया था, जो 2019-20 के मुकाबले 10 फीसद ज्यादा था। 

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