भारतीय शूरवीरों का कोई भी सानी नहीं है। यही वजह है कि जब-जब भी गौरव गाथाओं का जिक्र होता है तब-तब भारतीय शूरवीरों के अदम्य साहस से लबरेज बहादुरी के किस्से न सिर्फ भारत के घर-घर में सुनाए जाते हैं, बल्कि यह आने वाला पीढ़ी में देश सेवा का भी जज्बा पैदा करते हैं। ठीक ऐसा ही आज जमा देने वाली ठंड रेजांग ला में देखने को मिला। पूर्वी लद्दाख में चुशुल में शून्य से 20 डिग्री नीचे के तापमान में 59 वर्ष पहले लड़ी गई रेजांग ला की लड़ाई में 114 नायकों को रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने आज यानि वीरवार को रेजांग ला बैटल डे पर श्रद्धांजलि अर्पित कर देश की सीमाओं की रक्षा करने वाले सैनिकों का हौसला बढ़ाया।
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इस दौरान सबसे पहले रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने सेवानिवृत्त ब्रिगेडियर आरवी जतर को स्कार्ट करते हुए कहा कि वह ही नहीं, समूचे देशवासी जतर के साहस और शौर्य को नमन करते हैं। उन्होंने कहा कि 114 वीर जवानों ने जान देकर इस सीमा की रक्षा की है। वो केवल एक बहादुर सैनिक नहीं थे, बल्कि एक आध्यात्मिक पुरुष थे, क्योंकि देश के लिए बलिदान वही दे सकता है, जिसका मन बड़ा होगा। मैं उन्हें नमन करता हूं। सेना की 13 कुमाऊं के ब्रिगेडयर आरवी जतर ने वर्ष 1962 में चीन के खिलाफ वीरता से लड़ाई लड़ी थी। आरवी जतर उस समय युद्ध के दौरान कंपनी के कमांडर थे। उन्हीं के नेतृत्व में भारतीय सेना ने चीनी सैनिकों के खिलाफ लोहा लिया था। इस दौरान आयोजित कार्यक्रम में उन पांच घंटों की यादों को फिर से ताजा किया गया जब मेजर शैतान सिंह के नेतृत्व में सेना के जवानों ने 18 दिसंबर 1962 को पांच घंटों में दुश्मन के सात हमले नाकाम कर दिए थे। इतना ही नहीं, भारतीय सेना के शूरवीरों ने बलिदान देकर लद्दाख पर कब्जा करने की दुश्मन की साजिश को भी नाकाम कर दिया था।
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18 नवंबर 1962 को सुबह साढ़े तीन बजे के करीब छह हजार से अधिक चीनी सैनिकों ने लद्दाख पर कब्जा करने के लिए चुशुल पर हमला बोल दिया था। ऐसे में चुशुल एयरफील्ड की सुरक्षा का जिम्मा संभालने वाले 3 कुमाउं रेजीमेंट की चार्ली कंपनी के 120 वीरों ने कड़ी ठंड में परमवीर चक्र विजेता मेजर शैतान सिंह की कमान में मोर्चा संभाल लिया। बर्फ से लदी अठारह हजार फीट उंची रेजांग ला चोटी पर भारतीय सैनिकों ने अंतिम गोली अंतिम सांस तक लड़ते हुए चीन के सात हमले नाकाम कर उसके 1300 सैनिकों को मार गिराया था।