रचकर इतिहास आखिरकार पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह भी इतिहास हो गए। वह कल्याण सिंह, जिन्होंने छह दिसंबर 1992 के एक फैसले से लाखों रामभक्तों का मनोरथ पूरा होने का रास्ता तो खोल दिया, लेकिन उनकी खुद की अंतिम इच्छा पूरी न हो सकी। मंदिर के शिलान्यास से आनंदित पूर्व मुख्यमंत्री भव्य राम मंदिर बना देखना चाहते थे। मंदिर आकार ले भी रहा है, लेकिन वक्त से पहले नींव का ये पत्थर दरक गया। राम जन्मभूमि के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद जब पांच अगस्त, 2020 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मंदिर के भूमिपूजन के लिए अयोध्या आने वाले थे, तब ‘दैनिक जागरण’ को दिए साक्षात्कार में उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री व राजस्थान के पूर्व राज्यपाल कल्याण सिंह ने न सिर्फ खुलकर अपनी भावनाएं व्यक्त कीं, बल्कि स्पष्टवादिता के साथ कई अनछुए पहलू भी उजागर किए थे88 की उम्र और बीमारी से शरीर भी कमजोर, फिर भी भूमिपूजन समारोह में शामिल होना चाहते थे। यह दीगर बात है कि कोरोना संक्रमण के खतरे के चलते उन्हें न जाने की सलाह दी गई और उन्होंने अपने लखनऊ स्थित आवास पर ही पांच अगस्त को दीपावली मनाई। हालांकि, जब उनसे मंदिर निर्माण शुरू होने के बाबत भावनाएं पूछीं तो बोले थे- ‘श्री राम देश के करोड़ों लोगों की आस्था के बिंदु हैं। मैं भी उन्हीं करोड़ों लोगों में से एक हूं। मेरे दिल की आकांक्षा थी कि भव्य राम मंदिर बन जाए। अब विश्वास है कि यह बनने जा रहा है। अब मैं चैन से, बड़ी शांति से मृत्यु का वरण कर सकता हूं। हां, यह इच्छा और है कि मेरे जीवनकाल में भव्य मंदिर बनकर पूरा हो जाए
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दरअसल, कल्याण सिंह वह व्यक्ति हैं, जिन्हें राम मंदिर आंदोलन के सूत्रधारों में सबसे प्रमुख स्थान दिया जा सकता है। छह दिसंबर, 1992 को जब हजारों कारसेवक विवादित ढांचा ढहाने के लिए अयोध्या पहुंच गए, तब बतौर मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने पुलिस-प्रशासन के बार-बार कहने पर भी कारसेवकों पर गोली चलाने की अनुमति नहीं दी और ढांचा विध्वंस होते ही इस घटना की जिम्मेदारी लेते हुए शाम को राजभवन पहुंचकर मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। उसी मामले में पूरी प्रदेश सरकार बर्खास्त कर दी गई थी। ढांचा विध्वंस मामले को लेकर मुकदमा चलता रहा, जिसमें तत्कालीन मुख्यमंत्री होने के नाते कल्याण सिंह भी आरोपित थे, लेकिन उन्हें अपने फैसले पर कभी मलाल नहीं रहा।उनके ही शब्दों में उनकी भावनाएं जानिए- ‘मुझे अपने फैसले पर गर्व है। मैंने लाखों रामभक्तों की जान बचाई। मेरे माथे पर एक भी रामभक्त की हत्या का कलंक नहीं है। इतिहासकार यह भी लिखेंगे कि राम मंदिर निर्माण की भूमिका छह दिसंबर, 1992 को ही बन गई थी। मुझे लगता है कि ढांचा न गिरता तो न्यायालय से मंदिर को जमीन देने का निर्णय भी शायद न होता। वैसे भी किसी के प्रति श्रद्धा और समर्पण हो तो उसके लिए कोई भी बलिदान छोटा होता है। गोली चलवा देता तो जरूर मलाल होता
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अपनी अटैची में रखे थे छह दिसंबर, 1992 का आदेश- अमूमन किसी भी व्यक्ति का राजनीतिक और निजी जीवन अलग होता है, ध्येय अलग होते हैं, लेकिन कल्याण सिंह ने इस मिथक को तोड़ा। सूबे की सत्ता में शीर्ष पर बैठे थे, तब और जीवन के ढलान पर पहुंचने पर भी उनके मन मंदिर में राम मंदिर ही रहा। बातचीत के दौरान जब उनसे छह दिसंबर के फैसले का जिक्र किया तो तुरंत ही अपने सहयोगी से अटैची खुलवाई और उसी आदेश का कागज हाथ में थाम लिया, जो उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री के रूप में प्रशासन को लिखित में दिया था। न्यायालय में चल रहे मुकदमे से बेफिक्र कल्याण ने उस घटना को लेकर अपने फैसले को खुलकर साझा कियाहां, आप अमर हो गए बाबूजी -बाबूजी के नाम से प्रसिद्ध दिग्गज नेता ने उसी साक्षात्कार में बड़े गर्व से कहा था- ‘जब भी मंदिर का इतिहास लिखा जाएगा, तब देशव्यापी आंदोलन, आंदोलन चलाने वालों, गोली खाने वाले रामभक्तों का नाम भी अमर होगा। छह दिसंबर, 1992 को अयोध्या में ढांचा विध्वंस हुआ, उसका उल्लेख भी जरूर होगा।’ इस तरह वाकई बाबूजी भी राम मंदिर आंदोलन के साथ हमेशा-हमेशा के लिए अमर हो गए28 वर्ष बाद बरी – बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में कल्याण सिंह, लालकृष्ण आडवाणी, डा. मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, विनय कटियार जैसे दिग्गज नेताओं पर मुकदमा चला। राम मंदिर भूमिपूजन के बाद सीबीआइ की विशेष अदालत का फैसला आया। 28 वर्ष बाद इन सभी आरोपितों को बरी कर दिया गया।