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आजकल एक लेख हमेशा देखने को मिलती है कि #_कल_को_कोई_परशुराम_बन_जाये_तो_फिर_कुछ_मत_कहना…
आजकल एक लेख हमेशा देखने को मिलती है कि #_कल_को_कोई_परशुराम_बन_जाये_तो_फिर_कुछ_मत_कहना...
#परशुराम और #रावण जिसे आज कल कुछ लोग दादा/परदादा और न जाने क्या बनाने पर लगे हुए है, और आजकल एक लेख हमेशा देखने को मिलती है कि #_कल_को_कोई_परशुराम_बन_जाये_तो_फिर_कुछ_मत_कहना…
अब जरा उन #क्षत्रिय बंधुओं से पूंछना चाहता हूं कि इसका अर्थ, अभिप्राय कभी आपने समझने की कोशिश की है या नही कि वो सीधा सीधा आपको कहना क्या चाहते है? परशुराम जिसके बारे में कहा जाता है कि वो अपने पिता के कहने पर अपनी माता का ही वध कर दिए थे अर्थात अपनी माता के हत्यारे हुए। परशुराम को सहस्रबाहु अर्जुन से भी भीषण युद्ध करना पड़ा था औऱ युद्ध भयंकर रूप लेने की वजह से बीच मे भगवान भोलेनाथ को आना पड़ा था, जिसकी वजह से सहस्त्रबाहु अर्जुन को एक पुंज के रूप में शिवलिंग में समाहित होना पड़ा था। जैसा कि कहा जाता है परशुराम और सहस्त्रबाहु दोनों भगवान विष्णु जी के अवतार थे इस वजह से भी भगवान भोलेनाथ की बात मानकर वो शिवलिंग में समाहित हो गए थे जिसके बाद सहस्त्रबाहु के पुत्रों ने परशुराम के पिता जी का वध कर दिया था, जिसके कारण परशुराम ने उनके बेटे समेत और 21 आतिताई क्षत्रियों का वध कर दिया था। जिसको आज लोग कहते फिर रहें है कि 21 बार क्षत्रिय विहीन धरती कर दिए थे।
उसी को बार बार ये यही कहते रहते हैं कि #कल_को_कोई_परशुराम_बन_जाये_तो_फिर_कुछ_मत_कहना” और आप हाँ में हां मिलाते रहते हो। इसी संहार की वजह से परशुराम का एक बार हनुमान जी से भी युद्ध हुआ वहाँ भी भगवान भोलेनाथ की वजह से ही परशुराम को अभयदान दिया गया था। अपने हठ और जिद्दी स्वभाव के कारण परशुराम ने सूर्यवंशी राजा रामचंद्र जी के अनुज लक्ष्मण जी से युद्ध की इच्छा जाहिर की और वहाँ भी पराजय का सामना करना पड़ा और क्षत्रिय कुल वंशज राजा रामचंद्र ने परशुराम के समस्त कीर्तिमान को विध्वंस कर दिया था। क्षत्रिय कुल के परम् प्रतापी योद्धा भीष्म पितामह श्रेष्ठ जी के बार बार इंकार करने के बावजूद भी जब परशुराम ने उनसे युद्ध की इच्छा जाहिर की तब भीष्म पितामह श्रेष्ठ ने उन्हें बिल्कुल दीन और हीन बना दिया था, तब एक बार फिर भगवान भोलेनाथ ने आकर परशुराम को अभयदान दिया।
महाभारत में एक समय परशुराम एक बार कर्ण के जांघ पर अपना सिर रखकर नींद में सो रहे थे औऱ उसी समय एक जहरीले कीड़े ने कर्ण को काट लिया था, लेकिन कर्ण उस समय पूरी दर्द वेदना को पी गए थे। आखिरकार जब कर्ण की जांघ से खून रिसता देखकर परशुराम ने क्रोधित होते हुए ये कहा था कि इतनी बड़ी दर्द वेदना और अपने गुरु के प्रति इतनी बड़ी निष्ठा सिर्फ एक क्षत्रिय ही रख सकता है और इसी वजह से कर्ण को श्राप भी दे दिया था। इससे साफ जाहिर होता है कि क्षत्रियों के पौरुष और उनके स्वाभिमान को वो भली भांति जानते थे। #_परशुराम बिना किसी वजह से ही भगवान गणेश जी से भी युद्ध कर बैठे थे औऱ जिसकी वजह से माता पार्वती जी क्रोध में आकर परशुराम को श्राप देने जा रही थी तो एक बार फिर भगवान भोलेनाथ जी ने फिर अभयदान दिलवाया। हर जगह लड़ाई की और हर जगह पराजय का सामना करना पड़ा था परशुराम को।
अब आतें है #_रावण पर जो कि अपनी बहू रंभा का ही बलात्कारी था जो रावण के भाई कुबेर के पुत्र नलकुबेर की पत्नी थी। रावण अपने घमंड को लेकर क्षत्रिय राजा सहस्त्रबाहु अर्जुन से युद्ध के लिए निकला था जिसे सहस्त्रबाहु अर्जुन ने युद्ध में बुरी तरह से हराया था और बंदी बनाकर अपने महल में रखा था जिसे भगवान भोलेनाथ के कहने पर परशुराम ने छुड़ाया था। पाताललोक के राजा बलि के घर घमंड की वजह से इनको दो बालकों ने युद्ध मे बुरी तरह से हराया ही नही अपितु घोड़े के अस्तबल में ले जाकर बांध दिया था ये वही रावण था जिसे आज दादा बनाने में लगे हुए है लोग। ये वही रावण था जो अपने बल के घमंड में चूर बाली से जा भिड़ा था और फिर युद्ध मे बाली ने रावण को बुरी तरह से हराया और अपनी कांख में 6 महीने दबाकर रखा था ये वही रावण था।
ये वही रावण था जिसे प्रभु श्रीराम ने अस्त्र शस्त्र और रथ विहीन करके छोड़ दिया था, और बोले जाओ हम निहत्थे पर वार नही करते तुम कल फिर आना ये वही रावण था। परशुराम हो या रावण अधर्म के रास्ते पर जो भी चला है औऱ जिसने भी युद्ध किया है उनको युद्ध मे बुरी तरह से हार और पराजित बारंबार होना पड़ा है क्षत्रिय कुल वंशजों से। दरअसल हम आपको बताते है इन मिलावटी ढोंगी पाखंडियों का कोई इतिहास तो है नही, तो इसी को लेकर बढ़ाई में लगे हुए है, भले ही चाहे वो युद्ध मे हारे हो, या अधर्मी हो, या मुंह की खानी पड़ी हो, लेकिन ये उनको ही लेकर जियें जा रहे है जय दादा जय परदादा जय लंकेश किये जा रहें है।
साभार…
जय श्री राम