पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने चुनाव से ठीक पहले गरीब लोगों के लिए पांच रुपए की थाली का ऐलान किया है। माना जा रहा है कि बंगाल के चुनावी समर में जीत हासिल करने के लिए यह कदम उठाया गया है। लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ऐन चुनाव से ठीक पहले बांटी जाने वाली इस प्रकार की रेवड़ियां सियासी फायदा नहीं दे पाती हैं।
यह पहला मौका नहीं है, जब चुनाव से ठीक पहले पश्चिम बंगाल सरकार ने यह फॉर्मूला अपनाया हो। राजस्थान, मध्य प्रदेश, कर्नाटक में भी ऐसे फॉर्मूले अपनाए गए हैं। तमिलनाडु में ऐसे मामले सबसे ज्यादा हैं। देखा जाए तो तमिलनाडु से साठ के दशक में इसकी शुरुआत हुई थी, जब 60 के दशक में मुख्यमंत्री सी अन्नादुरई ने चावल और एमजी रामचंद्रन ने धोती और सैंडल देने का ऐलान किया था। बाद में द्रमुक एव अन्नाद्रमुक में यह परंपरा मुफ्त टीवी और स्मार्टफोन तक जा पहुंची।
विशेषज्ञों के अनुसार हो सकता है कि मुफ्त या रियायती सुविधाएं देने वाले किसी दल को जीत मिल गई हो, लेकिन यह जीत का संपूर्ण आधार नहीं हो सकता है। हां, एक-दो फीसदी वोट जरूर बढ़ा सकता है।