भारत और ईरान के बीच एक ऐसी डील हुई है जिसके बाद कई देशों की बेचैनी बढ़ गई है। चीन-पाकिस्तान की टेंशन तो बढ़ने वाली ही है अमेरिका भी परेशान हो गया है। इस परेशानी का सबब बना है इरान का चाबहार बंदरगाह रणनीतिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण इस बंदरगाह को लेकर भारत और इरान के बीच समझौता हुआ है जिसे लेकर अब अमेरिका ने तो पाबंदी तक की बात कह दी है। अमेरिका की ओर से संभावित जोखिम जैसे शब्दों का प्रयोग किया गया है. क्या है पूरा मामला. आखिर भारत और इरान के समझौते ने कैसे दुनिया के कई देशों की परेशानी बढा दी है
चाबहार बंदरगाह 10 साल के लिए भारत को मिला
भारत और ईरान के बीच चाबहार बंदरगाह को लेकर 13 मई को जो समझौता हुआ उसके बाद कई देशों की बेचैनी बढ़ गई है। समझौते के मुताबिक, चाबहार बंदरगाह 10 साल के लिए भारत को मिला है। ये पहली बार है जब भारत विदेश में किसी बंदरगाह का काम संभालेगा। चाबहार पोर्ट ईरान के दक्षिण में सिस्तान-बलूचिस्तान इलाके में है, जिसे ईरान और भारत दोनों मिलकर ही विकसित कर रहे हैं।
यह समझौता भारत के लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह मध्य एशिया और अफगानिस्तान तक व्यापार मार्गों तक उसकी पहुंच को बढ़ा देगा। यह समझौता चीन और पाकिस्तान के लिए भी एक झटका है, जो ग्वादर बंदरगाह विकसित कर रहे हैं, जो चाबहार से सिर्फ 172 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस समझौते के बाद दोनों बंदरगाहों के बीच कड़ी प्रतिस्पर्धा होने की संभावना है और भारत का मानना है कि चाबहार बेहतर कनेक्टिविटी और कम लागत का वजह से अधिक फायदेमंद होगा।
चाबहार भारत को मध्य एशियाई देशों, विशेष रूप से अफगानिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज्बेकिस्तान के साथ व्यापार को बढ़ावा देने का एक मौका देगा। इससे भारत की रूस और यूरोप तक पहुंच भी आसान होगी. भारत को इस क्षेत्र में अपनी समुद्री सुरक्षा को मजबूत करने में आसानी होगी.दरअसल भारत जो चाबहार बंदरगाह का विकास कर रहा है उसे चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे यानी सीपीईसी से मुकाबले के तौर पर देखा जा रहा है. जिसे कई लोग क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव के लिए खतरा मानते हैं. इस बंदरगाह से भारत की अफगानिस्तान तक पहुंच आसान हो जाएगी. अभी भारत को अफगानिस्तान तक अपना माल भेजने के लिए पाकिस्तान होकर जाना पड़ता है।
इस समझौते से सबसे अधिक टेंशन में चीन और पाकिस्तान हैं। इसके पीछे की वजह ये है कि इस बंदरगाह के जरिए पाकिस्तान को आसानी से बायपास किया जा सकता है। अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक पहुंचने के लिए पाकिस्तान पर निर्भरता नहीं रहेगी। इतना ही नहीं चाबहार की वजह से पाकिस्तान के ग्वादर और कराची पोर्ट की अहमियत भी काफी हद तक कम हो सकती है। ग्वादर बंदरगाह को लेकर चीन की शुरू से ही नीति आक्रामक रही है और कई डिफेंस एक्सपर्ट इस बात की आशंका जाहिर कर चुके हैं कि यहां से चीन की जासूसी गतिविधियां बढ़ेंगी। ग्वादर भारत के लिए चुनौती के साथ ही साथ किसी खतरे से भी कम नहीं। अब चीन और पाकिस्तान को चाबहार के जरिए जवाब मिला है और इसका असर भी देखने को मिल रहा है।
चाबहार को लेकर भारत और ईरान के बीच अटल सरकार के समय बातचीत शुरू हुई थी और इसके करीब दो दशक बाद अब मोदी सरकार को इसमें कामयाबी मिली है। 2016 में नरेंद्र मोदी की ईरान यात्रा के दौरान चाबहार बंदरगाह को विकसित करने का समझौता हुआ था। साल 2018 में जब तत्कालीन ईरानी राष्ट्रपति हसन रूहानी दिल्ली आए थे तब इस मुद्दे पर काफी लंबी बातचीत हुई थी। इसी साल जनवरी के महीने में विदेश मंत्री एस जयशंकर की तेहरान यात्रा के दौरान भी इसे प्रमुखता के साथ रखा गया था।
इतने लंबे समय से चली आ रही ये बातचीत जब अपने मुकाम तक पहुंची है तो इस समझौते से अब अमेरिका भी परेशान हो उठा है। अमेरिका ने कहा है कि ईरान के साथ व्यापारिक सौदे करने वाले किसी भी देश पर प्रतिबंध लगाए जाने का खतरा है। इसके पीछे की वजह ये है कि अमेरिका ने इरान पर प्रतिबंध लगाये हुए हैं उसका कहना है कि जो भी देश इरान के साथ किसी भी तरह का व्यापार करेगा तो उस पर भी प्रतिबंध लग सकता है. अब इसको लेकर भारत क्या कदम उठाने वाला है ये तो आने वाला समय बताएंगा. लेकिन अभी भारत ने इरान के साथ चाबहार बंदरगाह की डील करके सभी को चौंका जरूर दिया है.