नई दिल्ली : जहां चाह होती है, वहां राह भी होती है। मध्य प्रदेश के बालाघाट जिले में एक गांव में ऐसा ही कुछ हुआ। यहां जब शिक्षक पढ़ाने नहीं आए तो ग्रामीणों ने ‘अपना’ स्कूल ही खोल लिया। दरअसल, कोरोना काल में जब अनलॉक शुरू हुआ तो ‘अपना घर-अपना विद्यालय’ योजना के तहत कक्षाएं लगाई जानी थी। इसमें सरकारी शिक्षक गांव-गांव पहुंचकर एक स्थान पर बच्चों को एकत्रित करके पढ़ाते लेकिन यहां कोई भी पढ़ाने नहीं आया। प्रशासन से शिकायत करने का भी कोई असर नहीं हुआ। ऐसे में अपने बच्चों के भविष्य से चिंतित ग्रामीणों ने खुद ही ‘अपना’ स्कूल शुरू कर दिया। एक ग्रामीण ने अपने घर के तीन कमरे दे दिए तो बाकी ने दो युवकों को मानदेय पर रख लिया।
यह कहानी है बालाघाट जिला मुख्यालय से करीब 30 किलोमीटर दूर स्थित ग्राम पंचायत मोहनपुर के सोनेवानी में संचालित प्राइमरी स्कूल कान्हाटोला की। यहां लॉकडाउन से पहले तक सोनेवानी, बैगाटोला व सुकलदंड गांव के 31 बच्चे पढ़ने के लिए आते थे। अनलॉक के बाद पढ़ाई के लिए बच्चे तो तैयार थे लेकिन शिक्षकों का अता-पता नहीं था। ग्रामीणों ने आपस में मशविरा कर बच्चों को पढ़ाने की व्यवस्था कर ली।
एक ग्रामीण तुलसीराम अमूले ने तीन कमरे निशुल्क दे दिए और ग्रामीणों ने दो युवक अंकुश कटरे और अतुल कटरे को पढ़ाने के लिए मानदेय पर रख लिया। ग्रामीण राकेश गौतम, मानसिंग मरकाम, सूरज कोहरे और कमलेश गौतम का कहना है कि शिक्षकों के न आने से बच्चे पढ़ाई से दूर हो रहे थे। इस कारण हम सबको यह फैसला करना पड़ा।
आदिम जाति कल्याण विभाग के सहायक आयुक्त सुधांशु वर्मा का कहना है कि मोहल्ला कक्षाएं लगाने के लिए प्राइमरी स्कूल कान्हाटोला में पदस्थ शिक्षक क्यों नहीं पहुंच रहे हैं, इसकी जानकारी लेकर उचित कार्रवाई की जाएगी। ग्रामीणों द्वारा स्वयं प्रेरित होकर बच्चों को शिक्षा दिए जाने का कार्य बहुत ही सराहनीय है।