मिलिए बिहार की माटी के लाल से, गांव में एक छोटी सी दवा की दुकान चलाने वाला शख्स कैसे बना दवा कंपनी का मालिक?

गांव में खेती के साथ रिटेल एलोपैथ की दुकान चलाने वाले सुरेश प्रसाद चौरसिया में कुछ करने की चाहत ने आज दवा व्यवसाय क्षेत्र में उन्हें सफलता के मील के पत्थर के रूप में स्थापित किया है। गांव से निकलकर पटना होते हुए गुजरात में दवा की फैक्ट्री की नींव डाली और आज कई राज्यों में उनके कंपनी की दवा धड़ल्ले से बिक रही है।

सुरेश चौरसिया वैशाली जिले के बिंदुपुर के चकोसन गांव के रहने वाले हैं। पिता रामविलास भगत शुरू में खेतिहर रहे, चार भाइयों में सबसे छोटे सुरेश प्रसाद चौरसिया शुरू से गांव में दवा का रिटेल दुकान चलाते थे। जो दवा कहीं नहीं मिलती उसके लिए लोग उनके दुकान पर आते थे। इनकी दुकान पर एमआर आते तो बेहतर पहनावा के साथ टाई लगाए स्मार्ट दिखते थे। उनकी ठाट बाट इनके मन में उतरने लगी।

सुरेश बताते हैं कि गांव से पटना आए और संदलपुर में किराए पर जगह ले कर काम शुरू किया। इसके पूर्व लाइसेंस एवं लैब आदि का काम किया। इस दौरान ए डी विटामिन बेबी ऑयल कफ सिरप का प्रोडक्शन शुरू किया। गुजरात के अहमदाबाद में 1998 में लाइसेंस ले टेबलेट का निर्माण शुरू किया। वे बताते हैं कि गुजरात में ही फैक्ट्री चलाएंगे अब बिहार में भी लगाएंगे। हाजीपुर में प्लॉट मिला हुआ है लेकिन जमीन पर मुकदमा चल रहा है। दवा कारोबार के क्षेत्र में प्रोडक्ट बेचने का है तो आप आगे बढ़ सकेंगे। आज उनके 500 से अधिक एम आर हैं। इनका कारोबार बिहार पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र में भी है। उनका कहना है कि बाजार में प्रोडक्ट का काफी डुप्लीकेसी है, मगर करवाई नहीं हो पाती है। बिहार सरकार और हेल्थ डिपार्टमेंट का सहयोग मिले तो यहां भी फैक्ट्री खड़ा करेंगे। साथ ही बिहार के बाहर से भी दवा निर्माण के क्षेत्र में सक्रिय उद्योगपतियों को बुलाकर यहां भी इंडस्ट्री लगाने के लिए कहेंगे।

बीए पास सुरेश प्रसाद चौरसिया कहते हैं कि उनकी पत्नी मीना चौरसिया गुजरात में फैक्टरी का काम देखती है। बेटा पुष्पम व बेटी प्रियंका एमबीए कर चुके हैं बेटे की शादी एयरलाइंस में काम करने वाली क्लासमेट रही रेशमा से 9 फरवरी 2014 को हुआ। वे उनके कारोबार में पूरा सहयोग कर रहे हैं। बेटी एक कंपनी की डायरेक्टर है। बड़े भाई जय किशन का निधन हो चुका है। विशुन दयाल रिटेल शॉप वे लालकिशुन खेती का काम देखते हैं। वह भी गांव जाते हैं। गांव की मिट्टी की खुशबू का मजा ही अलग है।

लेखकः अनूप नारायण सिंह

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *