27 जून को 18 वी लोकसभा का चौथा दिन था जहां राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू ने राज्यसभा का सत्र शुरू किया। राष्ट्रपति ने सबके समक्ष NDA की प्राथमिकताओं को रखा और 10 साल के कार्यकाल के बारे में बताया। संसद में अभिभाषण के दौरान राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू ने एक ऐसे मुद्दे को उठाया जिससे विपक्ष के होश उड़ गए। उन्होंने 25 जून 1975 को हुइ एमर्जेन्सी की घटना का सबके सामने जिक्र किया उन्होंने संसद में क्या कहा आइये बताते है
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने इमरजेंसी को भारत के संविधान पर सबसे बड़ा प्रहार बताया है. उन्होंने कहा कि साल 1975 में जब आपातकाल लगाया गया था, तब देश में हाहाकार सा मच गया था और उस दौरान लोकतंत्र में दरार डालने की कोशिशें हुई थीं.
संसद के संयुक्त सत्र में अभिभाषण के दौरान द्रौपदी मुर्मू ने आगे कहा कि हमारे लोकतंत्र को नुकसान पहुंचाने के हर प्रयास की सभी को निंदा करनी चाहिए. विभाजनकारी ताकतें लोकतंत्र को कमजोर करने, देश के भीतर और बाहर से समाज में खाई पैदा करने की साजिश रच रही हैं
द्रौपदी मुर्मू के मुताबिक, “आपातकाल संविधान पर सीधे हमले का सबसे बड़ा और काला अध्याय था. आपातकाल के दौरान पूरा देश अंधेरे में डूब गया था लेकिन देश ऐसी असंवैधानिक शक्तियों को पराजित करने में सफल रहा.
राष्ट्रपति आगे बोलीं कि आज का समय भारत के लिए अनुकूल है और संविधान हमारे लिए जनचेतना का हिस्सा है. नीतियों का विरोध करना और संसद की कार्यवाही बाधित करना अलग-अलग बात है. सभी सदस्यों के लिए जनता का हित सर्वोपरि होना चाहिए.
और उन्होंने जम्मू कश्मीर का जिक्र करते हुए कहा की अब भारत के उस भूभाग, हमारे जम्मू-कश्मीर में भी संविधान पूरी तरह लागू हो गया है, जहां आर्टिकल 370 की वजह से स्थितियां कुछ और थीं.