पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के गढ़ में चुनौती देने का मन बना चुके असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम असम और केरल में चुनाव नहीं लड़ेगी, लेकिन छोटे दलों की हर चाल पर बड़े दलों की नजर है। बिहार चुनाव में महागठबंधन का हिस्सा रही कांग्रेस धोखा खाने के बाद गठबंधन के गुणा भाग में छोटे दलों की भूमिका पर खास ध्यान दे रही है। वहीं, भाजपा की निगाह भी एक बड़े समुदाय तक पहुंचने के लिए स्थानीय छत्रपों पर है। जानकारों का कहना है कि किन दलों के साथ मिलकर बड़े राजनीतिक दल चुनाव लड़ेंगे, ये तो महत्वपूर्ण होगा ही। ये भी अहम है कि किन दलों को दूसरे का खेल बिगाड़ने के लिए समर्थन दिया जा रहा है।
असम में कांग्रेस ने बंगाली मुसलमानों में वर्चस्व रखने वाले बदरुद्दीन अजमल की पार्टी एआईयूडीएफ के साथ अन्य छोटे दलों पर भरोसा किया है। यहां ओवैसी ने सोच समझकर चुनाव से दूर रहने का फैसला किया है। ओवैसी के न आने से यहां एक नया सियासी कोण बनने की संभावना फिलहाल नहीं है। जबकि बंगाल का मामला दिलचस्प हो रहा है।
कांग्रेस और लेफ्ट फ्रंट ने मंगलवार को भारतीय सेक्युलर फ्रंट (आईएसएफ) के साथ चुनावी गठबंधन का ऐलान किया था। अब तीनों पार्टियां मिलकर पश्चिम बंगाल में चुनाव लड़ेंगी। सेक्युलर फ्रंट पिछले महीने पीरजादा अब्बास सिद्दीकी ने बनाई थी। पीरजादा, पश्चिम बंगाल के हुगली जिले में फुरफुरा शरीफ के प्रभावशाली मौलवी माने जाते हैं।