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जम्मू-कश्मीर में अलगाववादियों और नौकरशाहियों की टूटेगी सांठगांठ, सरकार ने तैयार की ये रणनीति

नई दिल्ली। जम्मू-कश्मीर को पूर्व राज्य का दर्ज मिल चुका है, बावजूद इसके IAS और IPS जैसे अखिल भारतीय सेवाओं के कैडर की वापसी में काफी मुश्किलें सामने आ रही है। एक लंबे अरसे से आतंकवाद जैसी समस्या से जूझ रहे कश्मीर में सरकार राज्य कैडर को केंद्र शासित कैडर में ही बनाए रखने पर विचार कर रही है।

गौर करने वाली बात ये है कि केंद्र सरकार ने सात जनवरी को आइएएस, आइपीएस और आइएफएस के राज्य कैडर को यूटी कैडर में विलय का अध्यादेश जारी किया था और संसद इससे संबंधित विधेयक पर मुहर लगा चुकी है।

सुरक्षा एजेंसी से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि केंद्र सरकार आश्वासन दे चुकी है कि सही वक्त आने पर जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा मिल जाएगा। उम्मीद है कि यह सब कुछ परिसीमन के बाद होने वाले चुनाव के पश्चात ही होगा। लेकिन तब भी कैडर की वापसी की फिलहाल कोई संभावना नहीं है।

गोवा, अरुणाचल प्रदेश और मिजोरम का उदाहरण देते हुए अधिकारी ने कहा कि पूर्ण राज्य का दर्जा हासिल होने के बावजूद यहां राज्य का स्थायी कैडर नहीं है और उन्हें केंद्र शासित कैडर के अधिकारियों के साथ रखा गया है। जम्मू-कश्मीर को भी इसी में शामिल किया जा सकता है और इसमें कोई कानूनी अड़चन भी नहीं है। जम्मू-कश्मीर में राज्य कैडर की वापसी रोकने के पीछे कई नौकरशाहों के अलगाववादियों के साथ मिलीभगत या सहानुभूति को कारण बताया जा रहा है। उन्होंने कहा कि जेल में बंद डीएसपी देवेंद्र सिंह की तरह अन्य अधिकारियों के आतंकियों से सीधे संबंध के सुबूत तो नहीं मिले हैं, लेकिन दो दर्जन से अधिक अधिकारियों की भूमिका संदिग्ध पाई गई है।

उनके खिलाफ विभिन्न स्तर पर विभागीय कार्रवाई की प्रक्रिया चल रही है। मामले की संवेदनशीलता का हवाला देते हुए उन्होंने उन अधिकारियों का नाम बताने से इन्कार कर दिया। विभागीय कार्रवाई के साथ ही जम्मू-कश्मीर में लंबे समय से तैनात अधिकारियों के बड़े पैमाने पर दूसरे केंद्र शासित प्रदेशों में भेजने की भी तैयारी है और जल्द ही उनके स्थानांतरण का आदेश जारी किया जाएगा।

IPS अधिकारी 27 पुलिसवालों से ऐंठता था पैसे,भ्रष्टाचार के आरोप में हुआ निलंबित

राजस्थान। एन्टी करप्शन ब्यूरो की टीम ने एक रजिस्टर बराबद किया है जिसमें कथित रूप से 27 भ्रष्ट पुलिसकर्मियों के नाम है। एसीबी का दावा है कि निलंबित आईपीएस अधिकारी मनीष अग्रवाल इन पुलिसकर्मियों का फायदा उठाकर इनसे पैसे लेता था। आईपीएस अधिकारी पुलिस वाले पर चल रही भ्रष्टाचार की शिकायतों का इस्तेमाल उनसे पैसै ऐंठने के लिए करता था।

ब्यूरो ने निलंबित और जेल में बंद आईपीएस अधिकारी मनीष अग्रवाल के कब्जे से ये रजिस्टर बरामद करने का दावा किया है। ब्यूरो के अधिकारियों का कहना है कि रजिस्टर की देखरेख अग्रवाल के नीचे काम करने वाला कोई व्यक्ति करता था।

हिंदुस्तान टाइम्स ने जो रजिस्टर देखा है उसके अनुसार, अग्रवाल के नीचे काम करने वाले व्यक्ति ने कहा, “जय हिंद सर, हमें इन सभी पुलिसकर्मियों को अलग से बुलाना चाहिए। अगर आप अपने लेवल पर इनसे बात करते हो तो ये जरूर बोलेंगे। किसी के पास कोई आधार नहीं है। अगर इन्हें डराया जाता है तो ये सच बोल देंगे।

घटनाक्रम से परिचित एसीबी के एक अधिकारी ने कहा कि ये नोट अग्रवाल के नीचे काम करने वालों में से एक ने 16 अक्टूबर, 2019 और 5 जुलाई, 2020 के बीच पुलिस अधीक्षक (एसपी), जीआरपी (सरकारी रेलवे पुलिस) के रूप में अपनी पोस्टिंग के दौरान जमा किए थे। 10 से अधिक पुलिस जिले उसके अधिकार क्षेत्र में थे।

एसीबी के एक अधिकारी ने कहा, “27 पुलिसकर्मियों में कांस्टेबल से लेकर अलवर, जयपुर, भरतपुर, अजमेर, कोटा, अबू रोड, गंगापुर सिटी, हिंदौन चौकी, बांदीकुई और झालावाड़ में तैनात पुलिसकर्मी शामिल हैं।”

उन्होंने कहा कि ये नोट 27 पुलिसकर्मियों के विशिष्ट विवरण और अलग-अलग मामलों में लोगों से प्राप्त पैसे की तरफ इशारा करते हैं। एसीबी को संदेह है कि विवरण उस पुलिसकर्मी द्वारा दर्ज किए गए थे जो या तो पूर्व एसपी कार्यालय के खुफिया या सतर्कता विंग में तैनात था।

एसीबी के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि अग्रवाल इन पुलिसकर्मियों के खिलाफ दर्ज शिकायतों का इस्तेमाल इनसे पैसा निकलवाने के लिए करता था हालांकि अभी इस बात की जानकारी नहीं मिली है कि उसने उनसे कितना पैसा निकाला।