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मधुर ने दोहराया ओल्ड स्कूल सिनेमा… लॉकडाउन के दिनों के किस्से…

Movie Review: इंडिया लॉकडाउन
कलाकार: प्रतीक बब्बर , श्वेता बसु प्रसाद , सई ताम्हणकर
प्रकाश बेलवाडी , ऋषिता भट्ट
और अहाना कुमरा
लेखक: अमित जोशी और आराधना साह
निर्देशक: मधुर भंडारकर

आज कल फिल्म जीवन का एक हिस्सा बनाते जा रहा. तो साथ ही साथ एक व्यपक व्यापार का रूप भी लेते जा रहा हैं. हर वीक में एक नई फिल्म नए चेहरे नई कहानी के साथ. तो वही फिल्म एक कला है ऐसी कला जो शांति में हलचल पैदा कर दे. ऐसी हलचल जो लोगों को सोने न दे. वही मधुर भंडारकर एक ऐसा नाम है जो की चंद बेहतरीन फिल्म देकर फिल्मी दुनिया के चर्चित नामों में से एक है. कही न कही संक्रमण काल में ये नाम (मधुर भंडारकर) कही गुम हो गया था. दर्शकों को भीतर से झकझोर देने वाली बस एक कहानी अगर वह कहानी की अंतर्धारा के साथ परदे पर ले आए, तो उनके अच्छे दिन लौट सकते हैं। उसके पहले उनके प्रशंसकों को ‘इंदु सरकार’, ‘बबली बाउंसर’ या फिर अब ‘इंडिया लॉकडाउन’ ही देखना है।

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कोरोना काल की कहानी
फिल्म ‘इंडिया लॉकडाउन’ की कहानी 2020 में कोरोना की खबरें से शुरू होती है। कुछ अनहोनी की आहट लोगों को सुनाई दे रही है। जिसको नाना बनना है, वह उत्साहित भी है और संक्रमण के खतरों से आशंकित भी। घर में काम करने वाली के चेहरे पर आई बेबसी को देख वह एक महीने का अग्रिम वेतन भी देता है। मां को नर्स की नौकरी लगने की बात कहकर आई युवती कोठे पर ब्लैकमेलिंग का शिकार हो रही है। एक दृश्य में वह कहती है कि जो काम हम पैसे लेकर करते हैं, दूसरी युवतियां उसे मुफ्त में क्यों करने देती हैं, साथ वाली युवती समझाती है कि नहीं वे भी इसके बदले बहुत कुछ पाती हैं। मधुर भंडारकर जैसे संवेदनशील फिल्म निर्देशक से उनके सिनेमा में स्त्री पुरुषों के संबंधों पर इतनी छिछोरी टिप्पणी डराती है। और, ये भी दर्शाती है कि मधुर भंडारकर शायद अब भी सालो पुराने सिनेमा की सोच में ही अटके हैं।

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अंडरकरेंट(अन्तर्भाव) को उभारने में नाकाम
फिल्म ‘इंडिया लॉकडाउन’ में वैसे तो चार कहानियां एक साथ चलती हैं। लेकिन, मधुर का कथन श्वेता बसु प्रसाद पर खास मेहरबान है। देह व्यापार करने वालों पर टूटे लॉकडाउन के कहर की इस कहानी में इतना कुछ है कहने को इस पर अलग से एक फिल्म बन सकती थी. एक बात ठीक से समझ नहीं आ रही है. फिल्म की एक कहानी उन गरीबों की भी है जिनके लिए सौ रुपये की एक जोड़ी चप्पल खरीदना भी जिगर का काम है। और, चौथी कहानी उस युवा जोड़े की है जिसे कौमार्य भंग करने में मंगल ग्रह की यात्रा कर आने जैसा रोमांच पाना है।

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कहानी है, पर एहसास नहीं
सिनेमा लोगों के मनोरंजन का एक माध्यम है और लोक तक सिनेमा पहुंचाने के लिए मधुर भंडारकर को इस लोक के अलग अलग रंग देखने जरूरी हैं। मधुर जी मुंबई में बसे उन शहरों को तो देख पा रहे हैं लेकिन कोरोना काल में मुंबई की झुग्गी-झोपड़ियों में कोरोना से जंग लड़ने वाले योद्धाओं की दास्ता को नहीं देख पा रहे है. मधुर जी कभी ऐसे आबादी में पैदल नहीं गुजरे हैं. वह कार में बैठकर दुनिया को देखते है. पर उनको ये नहीं पता की खिड़की की दूसरी तरफ भी एक दुनिया है। हैं। फिल्म ‘इंडिया लॉकडाउन’ बस यही मात खा गई है। देश के भौगोलिक परिस्थिति का ज्ञान फिल्म लिखने वालों को है ही नहीं। फिल्म का संवाद फिल्म की सबसे कमजोर कड़ी हैं। फिल्म के निर्देशको जिन्होंने मुंबई को ही हिंदुस्तान माना हुआ है।

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‘इंडिया लॉकडाउन’
कोरोना काल इंसानी इतिहास की एक ऐसी याद है जिसे अब कोई याद ही करना नहीं चाहता। वक्त अच्छा हो या बुरा, वक्त बीत ही जाता है और अच्छे वक्त में जाकर उसे फिर से जीना तो शायद कुछ लोग चाहें भी लेकिन बीते हुए बुरे वक्त को फिर से परदे पर शायद ही कोई पसंद करे। फिल्म ‘इंडिया लॉकडाउन’ के साथ भी यही दिक्कत है।

ब्रहमास्त्र- पाँच में से साढ़े चार स्टार

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श्रीश उपाध्याय/मुंबई
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आज ब्रहमास्त्र फ़िल्म के बारे में लिखूँगा लेकिन एक पत्रकार की तरह, बिना किसी का पक्ष लिए . ऐसा इसलिए लिख रहा हूँ क्योंकि मै भी ट्रोल गैंग का सदस्य हूँ और मुझे गर्व है कि मै ट्रोलर हूँ .
फ़िलहाल फ़िल्म शुरू हुई तो मै सोच कर बैठा था कि फ़िल्म सड़ी हुई होगी ,मंगलवार को जुहू पीवीआर में रात 8 का शो था और जनता भी 50-60 के आस पास ही थी .कम भीड़ को देखकर मैने ठान लिया था कि फ़िल्म पकाऊँ ही होगी . इसके अलावा सुशांत सिंह राजपूत और कंगना राणावत जैसे जनता के बीच से निकल कर आए कलाकारों के प्रति करन जौहर के रुख़ को कथित तौर पर सुनने और जानने के बाद करन जौहर के लिए मै अच्छा लिखना पसंद ही नही करता .

फ़िलहाल फ़िल्म शुरू हुई और फ़िल्म के शुरुआत में ही शाहरुख़ खान दिखे .देखते ही मन में शाहरुख़ की देश विरोधी छवि ऊभरी (जानते हो ना क्यों ? क्योंकि साहब को पाकिस्तान में बाढ पीड़ित दिखते है ,साहब उनकी मदद भी करते है लेकिन हिंदुस्थान की जनता के रहमों करम पर सूपर स्टार बने इन साहब के दिल में उत्तराखंड में आइ बाढ़-पीड़ितों के लिए दर्द नही उभरता ,इनकी आने वाली फ़िल्म पठान तो मै मुफ़्त में भी देखने नही जाऊँगा ).
कई बार अपने अंदर के ग़ुस्से को टाल कर फ़िलहाल लिखकर आगे लिखना चाह रहा हूँ …तो फ़िलहाल… फ़िल्म शुरू हुई और शुरू से ही फ़िल्म की पठकथा ने दर्शकों को बांधना शुरू कर दिया .हिंदू धर्म से जुड़े शस्त्रों पर काल्पनिक रूप से बनी फ़िल्म में तकनीकी का अनूठा उपयोग दिखा . फ़िल्म में वाराणसी और उत्तराखंड खूबसूरती को बड़े ही शानदार तरीक़े फ़िल्माया गया है . शाहरुख़ खान को छोड़ कर अमिताभ बच्चन,आलिया भट्ट, रनबीर कपूर ,
मोनी रॉय की भूमिका बड़ी ही दमदार लगी . हो सकता है शाहरुख़ भी अच्छा कर रहा हो लेकिन उसको देख कर एक आत्म-ग्लानि होती है कि मै इस राष्ट्र विरोधी को क्यों देख रहा हूँ . एक बार फिर …फ़िलहाल… फ़िल्म पूरी देखी …मज़ा आया .काफ़ी दिनो के बाद थीयटर में कोई फ़िल्म ऐसी दिखी जिसे देख कर ऊबा नही .
वैदिक काल के शस्त्रों और मॉडर्न युग को बहुत ही बखूबी से प्रदर्शित किया गया है . एक बार सपरिवार फ़िल्म देखने जैसी है ख़ास कर बच्चों को फ़िल्म खूब पसंद आएगी .
फ़िल्म किस हद तक अच्छी लगी इसका अंदाज़ा आप इस बात से ही लगा सकते है कि एक ट्रोलर होने के बावजूद मै अपने आप को काफ़ी रोकने के बावजूद इस फ़िल्म को साढ़े चार स्टार देने से नही रोक पाया .आधा स्टार काटा क्योंकि एक पत्रकार भी तो इंसान होता है और वो भी हिंदुस्थानी हूँ और शाहरुख़ खान को इतनी अच्छी फ़िल्म में हज़म नही कर पा रहा हूँ ..सिर्फ़ शाहरुख़ खान के कारण आधा स्टार काट रहा हूँ .
वैसे हम लोग करन जौहर को भी हज़म नही कर पाते क्योंकि हिल्ले-डुल्ले-महात्मा-फुल्ले को पैसा तो आम लोगों से कमाना है लेकिन फ़िल्मों में मौक़ा देने के नाम पर उसका खुले आम क़बूल करना कि अपने लोगों अर्थात बॉलीवुड के लोगों को वरीयता देने में उसे कोई संकोच नही है . कही न कही आम इंसान होने के नाते खटकता है .करन बेटा ..वैसे तू है मेरी उम्र से बड़ा लेकिन सोच से तू मेरे बेटे जैसा ही है —अपरिपक्व , क्योंकि परिपक्व व्यक्तित्व बिरादरी देख कर नही लोगों की क़ाबिलियत के आधार पर उनको काम देता है या उनके साथ काम करता है . अपनी परिपक्वता का उदाहरण देते हुए मै इस अच्छी फ़िल्म को अच्छा बोल रहा हूँ और शाहरुख़ को गंदा क्योंकि शाहरुख़ सच में फ़िल्म में गंदा लग रहा है और शायद हर देशभक्त हिंदुस्थानी को लगे.