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दो मंत्रिमंडल के पहले बड़े फेरबदल में रविशंकर प्रसाद, रमेश पोखरियाल निशंक, हर्षवर्धन और प्रकाश जावडेकर समेत 12 मंत्री मंत्रिमंडल से बाहर

मोदी सरकार-दो मंत्रिमंडल के पहले बड़े फेरबदल में रविशंकर प्रसाद, रमेश पोखरियाल निशंक, हर्षवर्धन और प्रकाश जावडेकर समेत 12 मंत्री मंत्रिमंडल से बाहर

हो गए। निशंक और हर्षवर्धन जैसे मंत्रियों को बाहर का रास्ता दिखाने के पीछे उनके खराब प्रदर्शन को अहम कारण बताया जा रहा है। लेकिन रविशंकर प्रसाद और प्रकाश जावडेकर के इस्तीफे इस पैमाने पर खरे नहीं उतरते हैं। ये दोनों न सिर्फ 2014 से मंत्री थे, बल्कि कई मंत्रालयों की जिम्मेदारी बखूबी संभाल भी रहे थे। माना जा रहा है कि इन दोनों को संगठन के लिए सरकार से मुक्त किया गया है।

हर्षवर्धन की स्थिति मोदी सरकार एक से ही डांवाडोल रही है। पेशे से डाक्टर और पोलियो उन्मूलन अभियान की रूपरेखा तैयार करने में उनके योगदान को देखते हुए 2014 में उन्हें स्वास्थ्य मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। लेकिन दो साल में ही उन्हें स्वास्थ्य मंत्रालय से हटाकर अर्थ साइंस मंत्रालय में भेज दिया गया और स्वास्थ्य मंत्रालय की जिम्मेदारी जेपी नड्डा को सौंपी गई। 2019 में उन्हें स्वास्थ्य मंत्रालय के साथ-साथ विज्ञान व तकनीकी मंत्रालय की भी जिम्मेदारी सौंपी गई। कोरोना जैसे वैश्विक संकट के दौर में इन दोनों मंत्रालय की अहम भूमिका थी। लेकिन हर्षवर्धन कोरोना के खिलाफ लड़ाई में अपनी भूमिका तराशने में विफल रहे। इसकी जगह नीति आयोग के सदस्य डाक्टर वीके पाल और भारत सरकार के प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार डाक्टर विजय राघवन ने आगे बढ़कर कमान संभाल ली। प्रधानमंत्री कार्यालय को भेजे गई अपनी प्रदर्शन रिपोर्ट में उनके पास बताने के लिए कुछ खास नहीं था। इसीलिए इस बार उन्हें मंत्रिमंडल से पूरी तरह से बाहर कर दिया गया।

शिक्षा मंत्री के रूप में कई प्रयोगों के बाद जब रमेश पोखरियाल निशंक को लाया गया, तो उम्मीद की गई कि वे देश की शिक्षा प्रणाली भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों के अनुरूप लागू करने में सफल होंगे। कई पुस्तकों के लेखक और भारतीय संस्कृति के जानकार के रूप में उनसे ऐसी अपेक्षा अनुचित भी नहीं थी। लेकिन नई शिक्षा नीति के अंतिम रूप देने के अलावा उनके पास बताने के लिए कोई उपलब्धि नहीं है। कोरोना के कारण देश की पूरी शिक्षा प्रणाली अस्त-व्यस्त रही। शिक्षा के क्षेत्र में कोई नवाचार लाकर उसे नई दिशा देने की जगह निशंक उससे निपटने के लिए संघर्ष करते दिखे। शिक्षा मंत्रालय की सभी संस्थाओं पर उनकी पकड़ इतनी कमजोर दिखी कि उन विभागों द्वारा वित्त प्रदत्त पत्रिकाओं में प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ जहर उगला जाता रहा और उन्हें इसकी भनक तक नहीं लगी। मामला जानकारी में आने के बाद भी वे तत्काल कार्रवाई करने में विफल रहे। शिक्षा मंत्रालय के हालात को लेकर प्रधानमंत्री की नाराजगी को इस बात से समझा जा सकता है कि वहां निशंक के साथ-साथ उनके राज्यमंत्री संजय धोत्रे को भी बाहर का रास्ता दिखा दिया गया।

इसी तरह रसायन और उर्वरक मंत्री के रूप में सदानंद गौड़ा कोरोना काल में जरूरी दवाओं और उनके लिए जरूरी बल्क ड्रग की सप्लाई सुनिश्चित करने में विफल रहे। इसकी जिम्मेदारी सचिवों की उच्च स्तरीय समिति को निभानी पड़ी। यही स्थिति श्रम मंत्रालय में संतोष गंगवार की भी रही। कोरोना काल में श्रमिकों के बड़े पैमाने पर पलायन और उनकी दुश्वारियों को दूर करने के लिए एक पोर्टल बनाने की घोषणा की गई, लेकिन अभी तक यह बनकर तैयार नहीं हो पाया। इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट सरकार की फटकार भी लगा चुकी है।

इस्तीफा देने वाले एक अन्य मंत्री थावरचंद गहलोत को सम्मानजनक विदाई दी गई और उन्हें पहले ही कर्नाटक का राज्यपाल बना दिया गया। इसके अलावा 2019 में जीत के बाद अपनी सादगी के लिए चर्चा में आने के बाद प्रधानमंत्री ने प्रताप चंद्र षड्ंगी को राज्यमंत्री बनाकर उनपर भरोसा भी जताया, लेकिन बीते दो सालों में उनका योगदान शून्य रहा। यही हाल राज्यमंत्री बाबुल सुप्रियो, रतनलाल कटारिया और देवाश्री चौधरी का भी रहा। इन सभी को मंत्रिमंडल से बाहर कर दिया गया।

पीएम मोदी ने राज्यसभा में विपक्ष को पढ़ाया पाठ….

नई दिल्ली  : देश में चल रहे किसान आंदोलन को लेकर पीएम नरेंद्र मोदी ने आज राज्यसभा में विपक्ष को आड़े हाथों लेते हुए कहा जो कभी किसानों के हक की बात करता था. आज वही सरकार द्वारा किए गए कृषि सुधारों का विरोध कर रहा है। ऐसा केवल राजनीति के तहत किया जा रहा है। उन्‍होंने कहा कि कोरोना काल में भी  किसानों ने रिकॉर्ड उत्‍पादन किया है। देश में खाद्यान्‍न का भंडार भरा रहा।

किसान आंदोलन की आड़ में सियासी रोटियां –

उन्‍होंने कहा कि श्रमजीवी और बुद्धिजीवियों के बीच एक नई जमात अब सामने आ रही है जिनका नाम आंदोलनजीवी। ये छात्रों का आंदोलन हो या किसानों का या और कोई, हर जगह पहुंच जाते हैं। उन्‍होंने कहा कि ये आंदोलनजीवी लोगों को गुमराह करने का काम करते हैं। उन्‍होंने किसानों का समर्थन देने वाले विदेशियों पर भी तंज कसा। उन्‍होंने कहा कि एफडीआई जो फॉरेन डिस्‍ट्रक्टिव आइडियोलॉजी है, से बचने की देश को सख्‍त जरूरत है। आपको बता दें कि किसानों के समर्थन में कई विदेशियों ने किसान आंदोलन का समर्थन बिना कृषि सुधारों को जाने बिना किया है। पीएम मोदी ने इनपर ही अपना निशाना साधा है। उन्‍होंने ये भी कहा कि कोरोना काल में भी पड़ोसी देश ने सीमा पर तनाव व्‍याप्‍त करने की कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। इसका हमारे जवानों ने डटकर मुकाबला किया और चीन को करारा जवाब भी दिया। सीमा के सवाल पर सरकार किसी के सामने झुकने वाली नहीं है।

कोरोना काल में भारत ने मानवता को बचाने का काम किया है

उन्‍होंने कहा कि दुनिया के किसी भी अस्‍पताल के ऑपरेशन थियेटर में जब मरीज डॉक्‍टरों की भीड़ में किसी भारतीय को देखता है तो उसका हौसला बढ़ जाता है। यही आत्‍मविश्‍वास भारत ने इतने वर्षों में कमाया है। केंद्र और राज्‍यों ने मिलकर देश को यहां तक पहुंचाया है। कोरोना काल में आए संकट को अवसर में बदलने का काम दोनों ने मिलकर किया है।

हमारा मन लोकतात्रिक है – पीएम मोदी

उन्‍होंने कांग्रेस के सांसद बाजवा के कहे गए बयानों पर तंज लेते हुए कहा कि जब वो उन्‍हें सुन रहे थे तो उन्‍हें लगा कि वो शायद इमरजेंसी और सिख विरोधी हिंसा की भी बात करेंगे। उन्‍होंने इस दौरान नेताजी का वो बयान भी सदन में पढ़ा जिसमें उन्‍होंने कहा था कि भारत पश्चिमी सभ्‍यता से प्रभावित नहीं रहा है। भारत का इतिहास इस बात का गवाह रहा है। आज भारत को उसके ऊपर हो रहे हमले से बचाने की जरूरत है। ये सत्‍यम शिवम सुंद्रम से सुसोजित है। पीएम मोदी ने कहा कि जाने अंजाने में आज हमनें उनके आदर्शों को भुला दिया है। हम दुनिया के दिए शब्‍दों को आगे लेकर बढ़ जाते हैं और अपना शब्‍द भूल जाते हैं। हम केवल बड़ा लोकतंत्र ही नहीं है बल्कि हम इसकी जड़ हैं। हमें आने वाली पीढ़ी को बताना होगा। हमारा मन लोकतात्रिक है। आपातकाल के दौरान पूरा देश जेल में बदल चुका था। इसके बाद भी इसकी लोकतांत्रिक जड़ों को नहीं हिला पाया। इसलिए लोकतांत्रिक मूल्‍यों की रक्षा करते हुए आगे बढ़ना है।

भारत में दुनिया के दूसरे सबसे अधिक इंटरनेट यूजर्स हैं

आत्‍मनिर्भर भारत पर बोलते हुए उन्‍होंने कहा कि पूरी दुनिया के लोग कोरोना काल में निवेश को तरस रहे हैं। भारत में ऐसा नहीं है। वहीं दुनिया भारत को डबल डीजिट की तरफ बढ़ते देख रही है। आज भारत में दुनिया के दूसरे सबसे अधिक इंटरनेट यूजर्स हैं। कुछ समय पहले डिजिटाइलेजशन को लेकर सवाल उठते थे। आज नजारा सभी के सामने है। आने वाले समय में भी हम आगे बढ़ रहे हैं। जल थल और नभ में भी हम आगे बढ़ रहे हैं।

गरीबों के मन में आत्‍म्‍विश्‍वास को जगाना होगा

2014 में जब पहली बार सदन में आया तो कहा था कि उनकी सरकार गरीबों को समर्पित है। आज भी इसमें बदलाव नहीं हुआ है। हमें देश को आगे बढ़ाने के लिए गरीबी को खत्‍म करना ही होगा। इसको कम या रोका नहीं जा सकता है। गरीबों के मन में आत्‍म्‍विश्‍वास को जगाना होगा इसके बाद वो फिर खुद इसको खत्‍म करने में जुट जाएगा। दो करोड़ से अधिक गरीबों के लिए घर बने और आठ करोड़ से अधिक गैस कनेक्‍शन दिए गए। इन योजनाओं से गरीबों के जीवन में बदलाव आया है और उनका आत्‍मविश्‍वास बढ़ा है। चुनौतियों के बीच हमें ये तय करना होगा कि समस्‍या का हिस्‍सा बनें या इसका समाधान तलाशें। समस्‍या का हिस्‍सा बनने से केवल राजनति की जा सकती है। उन्‍होंने उम्‍मीद जताई कि सभी साथ मिलकर काम करेंगे।

केंद्रीय कृषि मंत्री ने कई बातें सदन में रखीं

किसान आंदोलन पर बात करते हुए पीएम मोदी ने कहा कि किस बात को लेकर आंदोलन इसको किसी ने स्‍पष्‍ट नहीं किया। इसके मूलभूत बातों पर किसी पर ध्‍यान नहीं दिया। केंद्रीय कृषि मंत्री ने कई बातें सदन में रखीं। देवेगौड़ा ने सरकार के सहयोग का समर्थन किया और उन्‍हें सुझाव भी दिया। इसके लिए उनका आभार। पूर्व पीएम चौधरी चरण सिंह जी ने कहा था 36 फीसद ऐसे किसान हैजिनके पास दो बीघा कम है। 18 फीसद के पास आधा हैक्‍टेयर से कम है। वो कितनी भी मेहनत करे उनकी गुजर बसर करना मुश्किल है। छोटे किसानों का जीवन यापन मुश्किल है। देश में ऐसे किसानों की संख्‍या बढ़ रही है उनके पास बेहद कम जमीन है। 12 करोड़ किसानों के पास केवल दो हैक्‍टेयर से भी कम की जमीन है। इनके बारे में सोचना जरूरी है।

 सीधे किसानों के खाते में पैसे भेजे गए

चुनाव के दौरान कर्जमाफी की घोषणा में छोटे किसान नहीं आते हैं। इसमें केवल राजनीति होती है। इस तरह की घोषणाओं से इनका कोई फायदा नहीं होता है। 2014 के बाद किसानों को लाभ देने के लिए सरकार ने फसल बीमा योजना का दायरा बढ़ा तो 90 हजार करोड़ रुपये का क्‍लेम किसानों को दिया गया। किसान क्रेडिट कार्ड का दायरा बढ़ाया गया। पौने दो करोड़ किसान आज इसके दायरे में हैं और फायदा उठा रहे हैं। पीएम सम्‍मान निधि योजना के तहत सीधे किसानों के खाते में पैसे पहुंचाए गए। बंगाल में राजनीति की वजह से इसमें रुकावट आई। एक लाख 15 हजार करोड़ रुपये किसानों को मिला है। यूरिया को छोटे किसानों तक पहुंचाने का किसान सरकार ने किया। पेंशन की सुविधा उन्‍हें दी। सड़कों के माध्‍यम से हम किसानों तक पहुंचे। किसान रेल की शुरुआत हुई तो दूर दराज के किसानों को नई राह दिखाई दी। किसान उड़ान योजना का फायदा आज किसान ले रहे हैं।

शरद पवार ने नए कानून का किया समर्थन

छोटे किसानों के सशक्तिकरण की वकालत हर किसी ने की है। हर सरकार ने इसके बारे में कहा है। शरद पवार ने नए कानून में सुधारों का समर्थन किया है। उन्‍होंने कहा कि हमें जो अब लगा है वो हमनें किया है। आगे भी इसमें सुधार की गुंजाइश है। लेकिन इसकी वकालत करने वालों ने अचानक यू टर्न ले लिया है। उनके ऊपर राजनीति हावी हैं। उन्‍हें ये बताना चाहिए कि सुधारों को किया जाना चाहिए। उन्‍होंने इस संदर्भ में पूर्व पीएम मनमोहन सिंह का एक बयान भी राज्‍य सभा में पढ़ा। उन्‍होंने कहा कि पीएम मनमोहन सिंह ने किसान को अपनी उपज कहीं भी बेचने का अधिकार देने की बात कही थी। लिहाजा विपक्ष को इस बात पर गर्व होना चाहिए कि पूर्व पीएम मनमोहन सिंह की बात इस सरकार को माननी ही पड़ी है। दूध के क्षेत्र में एक ऐसी सप्‍लाई चेन बनी है जो बेहद मजबूत है। इसका लाभ इन लोगों को मिल रहे हैं। ये मजबूती पिछली सरकारों में मिली है। इसका करीब 8 लाख करोड़ रुपये का कारोबार है।