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800 साल पुराना भगवान शिव का यह मंदिर, जानिए इसके रहस्मय चमत्कार…

DESK : पुरानी दिल्ली के चांदनी चौक स्थित श्री गौरी-शंकर मंदिर जहां श्रद्घालुओं की आस्था का केंद्र है, वहीं इतिहास के स्वर्णिम पन्नों में भी इसका अनूठा रहस्य मिलता है। यहां भगवान शिव का अर्द्घनारीश्वर रूप मिलता है।

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मान्यता है कि यहाँ मंदिर करीब 800 साल पुराना है। वर्ष 1761 में मराठा सैनिक आपा गंगाधर ने इस मंदिर के भवन का निर्माण कराया। इसके बाद इनके नाम का जिक्र आज भी मंदिर की छत पर मौजूद पिरामिड के निचले हिस्से में देखने को मिलता है।साल 1909 से मंदिर की देखभाल करने वाली प्रबंध समिति के अनुसार पांच पीपल के पेड़ के मध्य विराजे भगवान भोलेनाथ भक्तों की हर मुराद को पूरा करते हैं। मंदिर में भगवान शिव के अलावा मां पार्वती, गणेश और कार्तिकेय महाराज की प्रतिमाएं विराजमान हैं।

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मराठा सैनिक आपा गंगाधर के बाद मंदिर का पुनर्निर्माण सेठ जयपुरा ने 1959 में कराया था। बताया जाता है कि मराठा सैनिक युद्ध में घायल होकर इस मंदिर में पहुंचे थे। यहां उन्होंने भगवान भोलेनाथ की प्रार्थना की थी।

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मंदिर से जुड़े जानकारों का दावा है कि भारत के इतिहास में शैव संप्रदाय की काफी भूमिका है। ये मंदिर उसी संप्रदाय का प्रतीक है। मंदिर में पांच पीपल के पेड़ों के बीच मौजूद शिवलिंग सैकड़ों वर्ष पहले से मौजूद है, जिसके ऊपर रखे एक चांदी के बर्तन से जल की बूंद अभिषेक कर रही है।तो वही श्रावण मास में कांवड़ियों को भोलेनाथ के साथ उनके पूरे परिवार के पूजन का सौभाग्य लोगो मिलता है।

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गौरी और शिव की पूजा-अर्चना के लिए यहां सुबह 5 बजे से ही भक्तों की लंबी कतारें लगी होती हैं। सोमवार को भी यहां सुबह 5 बजे से शिवलिंग और गौरी शंकर का पूजन शुरू हो जाएगा। पूरे श्रावण मास यहां भक्तों की हजारों की तादाद में भीड़ देखने को मिलती है। ये पुरानी दिल्ली के सबसे चर्चित और प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है।

बिना नींव के खड़ा है, शिव जी का ये अद्भुत मंदिर,जिसकी ऊँचाई 200 फुट से भी अधिक : जानिए रोचक तथ्य

DESK : तमिलनाडु के तंजावुर में स्थित बृहदेश्वर मंदिर अपने आप में एक अद्भुत और रहस्यमयी संरचना है। चोल साम्राज्य के ‘द ग्रेट लिविंग टेंपल्स’ में से एक भगवान शिव को समर्पित बृहदीश्वर मंदिर को महान चोल शासक राजराज चोल प्रथम ने बनवाया था। इसे पेरिया कोविल, राजराजेश्वर मंदिर या राजराजेश्वरम के नाम से भी जाना जाता है। द्रविड़ वास्तुकला का बेहतरीन उदाहरण है बृहदीश्वर मंदिर जो कि भारत के कुछ विशाल मंदिरों में से एक है।

कांचीपुरम स्थित पल्लव राजसिम्हा मंदिर को देखकर राजराज चोल के मन में भगवान शिव के लिए एक विशालकाय मंदिर के निर्माण की इच्छा जागृत हुई। इसके बाद सम्राट ने सन् 1002 में इस मंदिर की नींव रखी गई। आश्चर्य की बात है कि आज से हजारों साल पहले इतना विशाल मंदिर मात्र 5-6 सालों में बनकर तैयार हो गया था। मंदिर में उत्कीर्णित लेखों से यह प्रमाण मिलता है कि राजराज चोल ने अपने जीवन के 19वें साल (सन् 1004) में इस मंदिर का निर्माण शुरू करवाया और सम्राट के 25वें साल (सन् 1010) के 275वें दिन इस मंदिर का निर्माण समाप्त हुआ।

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वैसे तो भारत के सभी मंदिरों की वास्तुकला अपने आप में सर्वश्रेष्ठ है। लेकिन बृहदीश्वर मंदिर की वास्तुकला न केवल विज्ञान और ज्यामिति के नियमों का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है, बल्कि इसकी संरचना कई रहस्य भी उत्पन्न करती है। मंदिर का निर्माण द्रविड़ वास्तुशैली के आधार पर हुआ है।

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इस मंदिर के निर्माण में ‘ग्रेनाइट’ के चौकोर पत्थर के ब्लॉक्स को (आकार में घटते क्रम में) एक-दूसरे के ऊपर इस प्रकार जमाया गया कि वो आपस में फँसे रहें। इसे साधारण भाषा में ‘पजल टेक्निक (Puzzle Technique) कहा गया। मंदिर का मुख्य भाग (जो श्रीविमान कहलाता है) लगभग 216 फुट (66 मीटर) ऊँचा है। इसका मतलब हुआ कि पत्थर के ब्लॉक 216 फुट तक जमाए गए। ध्यान रखें कि यह सभी पत्थर मात्र एक-दूसरे के ऊपर रखे गए हैं न कि इन्हें किसी सीमेंट जैसे पदार्थ से (जैसा कि आजकल होता है) आपस में जोड़ा गया है। बृहदीश्वर मंदिर की सबसे खास बात यह है कि इसे बिना नींव के बनाया गया है।

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बृहदीश्वर मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। मंदिर के गर्भगृह में शिवलिंग स्थापित है जो 8.7 मीटर ऊँचा है। इसके अलावा मंदिर में गणेश, सूर्य, दुर्गा, हरिहर, भगवान शिव के अर्धनारीश्वर स्वरूप और अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियाँ हैं।

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मंदिर में श्रीविमान के अलावा अर्धमंडप, मुखमंडप, महामंडप और नंदीमंडप है। मंदिर परिसर में दो गोपुरम भी हैं। नंदीमंडप में भगवान शिव की सवारी नंदी की प्रतिमा है। इस प्रतिमा की खास बात यह है इसे भी एक ही पत्थर से बनाया गया है और यह लगभग 25 टन वजनी है।

इस मंदिर से जुड़े कुछ रोचक तथ्य भी हैं। पहली बात तो यह है कि मंदिर के 50 किमी के दायरे में भी ग्रेनाइट उपलब्ध नहीं है तो इतनी मात्रा में ग्रेनाइट जहाँ से भी लाया गया होगा, निश्चित रूप से उस प्रक्रिया में खर्च हुई मेहनत और लागत की कल्पना भी नहीं की जा सकती है।

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बृहदीश्वर मंदिर के श्रीविमान के ऊपर स्थित ‘कुंभम्’ किसी आश्चर्य से कम नहीं है। आश्चर्य इसलिए कि कुंभम् भी एक ही पत्थर से निर्मित है और उसका वजन है 81 टन अर्थात 81,000 किग्रा। अंदाजा लगाइए कि इतना वजनी पत्थर लगभग 200 फुट की ऊँचाई तक पहुँचा कैसे?

इसके लिए भी एक 6 किमी लंबा ‘रैम्प’ (जैसा कि नीचे फोटो में दिखाया गया है) बनाया गया था जिसकी सहायता से हजारों हाथी और घोड़ों ने कुंभम् को श्रीविमान के ऊपर स्थापित किया था। इस कुंभम् के ऊपर भी एक स्वर्ण कलश स्थापित किया गया है।

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तंजावुर स्थित बृहदीश्वर मंदिर तक पहुँचना बड़ा ही आसान है। सबसे नजदीकी हवाई अड्डा तिरुचिरापल्ली है, जो मंदिर से लगभग 60 किमी की दूरी पर है। इसके अलावा ट्रेन से पहुँचना सबसे आसान है, क्योंकि तंजावुर रेलवे स्टेशन से बृहदीश्वर मंदिर की दूरी मात्र 1.9 किमी है। तंजावुर में दो बस स्टैन्ड हैं- एक पुराना और एक नया। पुराने बस स्टैन्ड से मंदिर की दूरी 1 किमी है और नए बस स्टैन्ड से लगभग 5 किमी। त्रिची के सेंट्रल बस स्टैन्ड से भी बृहदीश्वर मंदिर जा सकते हैं, जिसकी दूरी मंदिर से लगभग 60 किमी है।