Tag Archives: yodhdhaa

इतिहास के पन्नों से (आज रानी लक्ष्मीबाई का जन्म दिवस है) –

इतिहास के पन्नों से (आज रानी लक्ष्मीबाई का जन्म दिवस है) –
वर्ष 1857 में अंग्रेज़ साम्राज्यवाद के ख़िलाफ़ बग़ावत का बिगुल बजाने वालों में झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई का नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाता है. अब रानी लक्ष्मी बाई का एक पत्र मिला है जिसमें उस दिन की परिस्थितियाँ बयान की गई हैं जब दामोदर राव को गोद लिया गया था. हालाँकि रानी लक्ष्मी बाई ने 1851 में एक पुत्र को जन्म दिया था लेकिन कुछ ही महीने बाद उसका देहांत हो गया था जिससे राजा गंगाधर राव की रिसायत को हड़पे जाने के बादल मंडराने लगे थे. इस पत्र से पता चलता है कि रानी लक्ष्मी बाई ने भरपूर सफ़ाई देने की कोशिश की थी कि अंग्रेज़ संधियों में दत्तक पुत्र को मान्यता दी गई थी और भारतीय प्रथाओं और शास्त्रों के अनुसार दत्तक पुत्र को भी वास्तविक पुत्र के समान ही दर्जा हासिल है, जिस तरह से पुत्र पिता को अंतिम समय में जल पिलाता है, उसी तरह दत्तक पुत्र भी जल पिला सकता है.

रानी लक्ष्मी बाई ने इस पत्र में यह दलील दी थी कि उनके पति राजा गंगाधर राव ने अंतिम साँस लेने से पहले आनंद राव नामक एक लड़के को गोद लेने की रस्म पूरी कर ली थी और उस लड़के को दामोदर राव गंगाधर नाम दिया गया. रानी लक्ष्मी बाई का यह पत्र लार्ड डलहौज़ी की हड़प नीति के संदर्भ में बहुत महत्वपूर्ण है. रानी लक्ष्मी बाई का यह पत्र ब्रिटिश संग्रहालय में पाया गया है. इसे खोजने वाली हैं लंदन के मशहूर विक्टोरिया ऐंड एलबर्ट म्यूज़ियम में रिसर्च क्यूरेटर दीपिका अहलावत जो भारतीय कला और संस्कृति पर शोध से जुड़ी हुई हैं. दीपिका अहलावत बताती हैं कि वो तो अपने शोध के सिलसिले में ब्रिटिश लाइब्रेरी में कुछ खोज रही थीं कि अचानक रानी लक्ष्मी बाई की ये चिट्ठी हाथ लग गई. फिर तो भारी प्रयास करके इस चिट्ठी को हासिल किया गया और इसे विक्टोरिया ऐंड एलबर्ट म्यूज़ियम में महाराजा नामक प्रदर्शनी में प्रदर्शित भी किया गया है. रानी लक्ष्मी बाई की यह चिट्ठी फ़ारसी और उर्दू में मिश्रित रूप से लिखी हुई है. साथ ही कुछ अन्य भाषाओं के शब्द भी इस्तेमाल किए गए हैं

दीपिका अहलावत ने इस चिट्ठी का अनुवाद अंग्रेज़ी में करने की कोशिश की जिसमें उनकी मदद की फ़रीबा थॉम्पसन ने. चिट्ठी का हिंदी रूपांतरण हमने यहाँ पेश करने की कोशिश की है…”अंग्रेज़ सरकार, जो राव राम चंद और उनके उत्तराधिकारियों की झाँसी सरकार का स्थायित्व बनाए रखना चाहती है, जो सरकार विधाता के आशीर्वाद से अस्तित्व में है, वो इस बात पर सहमत है कि कुलीन लोगों का नाम और रिसायत बरक़रार रखा जाए. इसीलिए जैसाकि पहले भी कहा जा चुका है, संधि के अंतर्गत किसी रियासत के अस्तित्व और निरंतरता की व्यवस्था की गई थी. वो व्यवस्था ये है कि अगर किसी शासक का कोई पुत्र ना हो तो दत्तक पुत्र उत्तराधिकारी माना जाएगा, और भारत में ये एक प्रथा भी है कि अगर कोई पुत्र नहीं होता है तो दत्तक पुत्र भी अंतिम समय में जल पिला सकता है, उसका यह कार्य रक्त पुत्र की ही तरह समझा जाएगा, ऐसा ही शास्त्रों में भी लिखा है.

इसलिए शिवराम ने 19 नवंबर 1853 को रात के समय दीवान लाहौरी मल… और लाला फ़तेह चंद नामक अधिकारियों को तलब किया और कहा कि बीमारी में किसी की भी दी हुई दवा कोई असर नहीं दिखा रही है. इसलिए उनका नाम और रियासत बरक़रार रहे, इसलिए शास्त्री से कहा जाए कि वह वे राजा के गोत्र से ही एक ऐसा लड़का तलाश करें जो गोद लेने के लिए उपयुक्त हो. आदेशानुसार राम चंदर बाबा साहिब शास्त्री को भी बुलाया गया. साथ ही गोत्र के कुछ लड़के भी बुलाए गए जिनमें बासु देव का पुत्र आनंद राव भी और उसे गोद लेने के लिए उपयुक्त होने पर सहमति बनी. शिवराम ने गोद लेने की रस्म पूरी करने के लिए शास्त्री को आदेश दिया और सुबह की बेला में पुरोहित राव ने मंत्रोच्चारण करके रस्म पूरी की. आनंद राव के पिता बासुदेव ने शिवराम के हाथों पर जल छिड़का और शास्त्रों के अनुसार अन्य रस्में पूरी कीं और गोद लिए गए बच्चे का नाम दामोदर राव गंगाधर रखा.”
किन्तु इस पत्र का कोई प्रभाव नहीं पड़ा और झांसी को अंग्रेज़ों ने हस्तगत कर लिया और इसके बाद जो हुआ वो एक इतिहास है. रानी लक्ष्मीबाई के अदम्य शौर्य को सबने देखा.https://www.facebook.com/photo/?fbid=289855746483341&set=a.151259460342971
साभार – बीबीसी हिंदी

पुण्यतिथि पर विशेष – अकेले ही 30 से भी ज़्यादा ब्रिटिश सैनिकों को मार गिराने वाली भारतीय वीरांगना!

पुण्यतिथि पर विशेष –
अकेले ही 30 से भी ज़्यादा ब्रिटिश सैनिकों को मार गिराने वाली भारतीय वीरांगना!
रानी लक्ष्मी बाई, बेगम हज़रत महल जैसी वीरांगनाओं के बारे में तो सब जानते हैं। पर वीरांगना ऊदा देवी के बारे में कम ही लोग जानते हैं जिन्होंने लखनऊ के सिकंदर बाग में ब्रिटिश सेना को मुंहतोड़ जवाब दिया। लखनऊ में जन्मीं ऊदा देवी की जन्म तारीख के बारे में ज्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं है। पर कहा जाता है कि उनके पति का नाम मक्का पासी था और शादी के बाद ससुराल में ऊदा का नाम ‘जगरानी’ रख दिया गया।

लखनऊ के छठे नवाब वाजिद अली शाह ने बड़ी मात्रा में अपनी सेना में सैनिकों की भर्ती की और ऊदादेवी के पति मक्का पासी जो काफी साहसी व पराक्रमी थे, इनकी सेना में भर्ती हो गए। कहते हैं कि मक्का पासी को देश की आजादी के लिए शाह के दस्ते में शामिल होता देख, ऊदा देवी को भी प्रेरणा मिली और वह वाजिद अली शाह के महिला दस्ते में भर्ती हो गईं।साल 1857 की क्रांति के समय पूरे भारत में लोग अंग्रेजी सरकार के खिलाफ विद्रोह पर उतर आये थे। 10 जून 1857 को अंग्रेजों ने अवध पर हमला कर दिया था। लखनऊ के इस्माइलगंज में ब्रिटिश टुकड़ी से मौलवी अहमद उल्लाह शाह के नेतृत्व में एक पलटन लड़ रही थी। इस पलटन में ही मक्का पासी भी थे। यहाँ अंग्रेजों से लड़ते हुए वह वीरगति को प्राप्त हो गए। जब यह खबर ऊदा देवी तक पहुंची तो अंग्रेजी सरकार के विरुद्ध लड़ने का उनका इरादा और भी मजबूत हो गया।

महिला दस्ते में तो वे पहले ही शामिल थीं। पर इस क्रांति के दौरान उन्होंने बेगम हज़रत महल की मदद से महिला लड़ाकों की एक अलग बटालियन तैयार की।
16 नवम्बर 1857 को सार्जेंट काल्विन कैम्बेल की अगुवाई में ब्रिटिश सेना ने लखनऊ के सिकंदर बाग में ठहरे हुए भारतीय सैनिकों पर हमला बोल दिया। ऐसे में पुरुषों की वेश-भूषा धारण किये हुए ऊदा देवी और उनकी बटालियन ने ब्रिटिश सेना को सिकन्दर बाग के द्वार पर ही रोक दिया। लड़ाई के समय ऊदा देवी अपने साथ एक बंदूक और कुछ गोला-बारूद लेकर एक पीपल के पेड़ पर चढ़ गयी थीं।

उन्होने हमलावर ब्रिटिश सैनिकों को सिकंदर बाग़ में तब तक प्रवेश नहीं करने दिया, जब तक कि उनका गोला बारूद समाप्त नहीं हो गया। उन्होंने दो दर्जन से भी ज्यादा ब्रिटिश सैनिकों को मार गिराया। इसे देख अंग्रेजी अधिकारी तैश में आ गये। उन्हें समझ नहीं आया कि उनके सैनिकों को कौन मार रहा है। तभी एक अंग्रेजी सैनिक ने पीपल के पेड़ के पत्तों के झुरमुट में छिपे एक बाग़ी को देखा जो ताबड़तोड़ गोली बरसा रहा था। ब्रिटिश सैनिकों ने भी उसी पेड़ पर निशाना साधा और गलियाँ चलायी। गोली लगते ही ऊदा देवी पेड़ से नीचे गिर पड़ीं। उसके बाद जब ब्रिटिश अफसरों ने जब बाग़ में प्रवेश किया, तो उन्हें पता चला कि पुरुष की वेश-भूषा में वह भारतीय सैनिक कोई और नहीं बल्कि एक महिला थी।

कहा जाता है कि ऊदा देवी की वीरता से अभिभूत होकर काल्विन कैम्बेल ने हैट उतारकर शहीद ऊदा देवी को श्रद्धांजलि दी थी। इस लड़ाई के दौरान लंदन टाइम्स अखबार के रिपोर्टर विलियम हावर्ड रसेल लखनऊ में ही कार्यरत थे। सिकंदर बाग में हुई लड़ाई के बाद उन्होंने लंदन स्थित लंदन टाइम्स दफ्तर में खबरें भेजी थीं। इन खबरों में एक खबर सिकंदर बाग के युद्ध की भी थी।
विलियम हावर्ड रसेल ने सिकंदर बाग की लड़ाई को लेकर अपनी खबर में पुरुषों के कपड़े पहनकर एक महिला द्वारा पेड़ से फायरिंग करने और कई ब्रिटिश सैनिकों को मार डालने का जिक्र किया था।
इस लड़ाई का स्मरण कराती ऊदा देवी की एक मूर्ति सिकन्दर बाग़ परिसर में कुछ ही साल पहले स्थापित की गयी है।