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ऐसे होते हैं नागा संन्यासी, नागा साधु बनने के लिए देनी होती हैं ये परीक्षाएं!

हरिद्वार समेत दूसरे तीर्थों के दूरदराज इलाकों में ये आम जनजीवन से दूर कठोर अनुशासन में रहते हैं। इनके क्रोध के बारे में प्रचलित किवदंतियां भीड़ को इनसे दूर रखती हैं, जबकि हकीकत में ऐसा नहीं है।

नई दिल्ली। नागा संन्यासी बनना आसान नहीं है। इसके लिए कई परीक्षाओं में खरा उतरना पड़ता है। नए सदस्यों की नागा पंथ में शामिल होने की इस कठिन प्रक्रिया में तकरीबन छह साल लगते हैं। इस दौरान उन्हें सिर्फ एक लंगोट में रहना पड़ता है। कुंभ मेले में अंतिम प्रण लेने के बाद वे लंगोट का भी परित्याग कर देते हैं और फिर ताउम्र दिगंबर ही रहते हैं। तो चलिए आज हम आपको नागा साधुओं से जुड़ी बातों के बारे में बताते हैं।

आसान नहीं होता नागा साधु बनना, छह साल तक देनी पड़ती है कड़ी परीक्षा

नागा साधु वे होते हैं, जो आकाश को अपना वस्त्र मानते हैं, शरीर पर भभूत मलते हैं, दिगंबर रूप में रहना पसंद करते हैं और युद्ध कला में उन्हें महारथ हासिल है। देखा जाए तो नागा सनातनी संस्कृति के संवाहक हैं और आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित परंपरा का निर्वाह करते हुए विभिन्न अखाड़ों में रहते हैं।

आसान नहीं होता नागा संन्यासी बनना

हरिद्वार समेत दूसरे तीर्थों के दूरदराज इलाकों में ये आम जनजीवन से दूर कठोर अनुशासन में रहते हैं। इनके क्रोध के बारे में प्रचलित किवदंतियां भीड़ को इनसे दूर रखती हैं, जबकि हकीकत में ऐसा नहीं है।

आसान नहीं होता नागा साधु बनना, छह साल तक देनी पड़ती है कड़ी परीक्षा

कहते हैं दुनिया चाहे कितनी भी क्यों न बदल जाए, लेकिन शिव और अग्नि के ये भक्त इसी स्वरूप में रहेंगे। अब मन में यह सवाल उठना लाजिमी है कि नागा संन्यासी शीत को कैसे बर्दाश्त करते होंगे।

आसान नहीं होता नागा साधु बनना, छह साल तक देनी पड़ती है कड़ी परीक्षा

नागा तीन प्रकार के योग करते हैं, जो उन्हें शीत से निपटने की शक्ति प्रदान करते हैं। नागा अपने विचार और खानपान, दोनों में ही संयम रखते हैं। व्याकरणाचार्य स्वामी दिव्येश्वरानंद कहते हैं, देखा जाए तो नागा भी एक सैन्य पंथ है। आप इनके समूह को सनातनी सैन्य रेजीमेंट भी कह सकते हैं। कुछ महिलाएं भी नागा साधु होती हैं और गेरुवा वस्त्र धारण करती हैं।

आसान नहीं होता नागा साधु बनना, छह साल तक देनी पड़ती है कड़ी परीक्षा

नागा संन्यासी बनने की प्रक्रिया बेहद कठिन और लंबी होती है। नए सदस्यों की नागा पंथ में शामिल होने की प्रक्रिया में तकरीबन छह साल लगते हैं। इस दौरान उन्हें सिर्फ एक लंगोट में रहना पड़ता है। कुंभ मेले में अंतिम प्रण लेने के बाद वे लंगोट का भी परित्याग कर देते हैं और फिर ताउम्र दिगंबर ही रहते हैं।

आसान नहीं होता नागा साधु बनना, छह साल तक देनी पड़ती है कड़ी परीक्षा

नागा बनने से पूर्व अखाड़े संबंधित सदस्य की अच्छी तरह जांच-पड़ताल करते हैं। संतुष्ट हो जाने पर ही उसे अखाड़े में प्रवेश दिया जाता है। पहले उसे लंबे समय तक ब्रह्मचर्य में रहना होता है और फिर उसे क्रमश: महापुरुष व अवधूत बनाया जाता है। अंतिम प्रक्रिया का निर्वाह कुंभ के दौरान होता है। इसमें उसका स्वयं का पिंडदान, दंडी संस्कार आदि शामिल है।

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