उत्तराखंड

केले की तैयार फसल पर क्यों ट्रैक्टर चलाने को मजबूर हुए किसान, पढिए पूरी खबर ?     

दो रूपये प्रति किलोग्राम के दर से भी नहीं मिले खरीददार

उधम सिंह नगर। एक तरफ सरकार जहां साल 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का वादा कर रही है वहीं, दूसरी करफ किसान फसल की लागत तक नहीं निकाल पर रहे हैं। सरकारी विभाग किसानों को आय बढ़ाने का आश्वासन देकर ऐसी चीजों की खेती करवा देते हैं जिसमें नकी फसल की लागत तक नहीं निकल पाती। ऐसा ही मामला विकास खंड के ग्राम खुनसरा के तीन किसानों के साथ देखने को मिल रहा है। यहां तीनों किसानों ने सरकार की योजना के तहत केले की फसल की खेती थी। करीब डेढ़ साल में फसल तैयार हुई तो बाजार में उचित दाम नहीं मिल रहा। इससे नाराज किसानों ने केले की तैयार फसल पर ट्रैक्टर चलवा दिया।

बता दें कि सरकार ने किसानों की आय बढ़ाने के मकसद से केले की खेती की योजना बनाई थी। जिसके तहत उद्यान विभाग ने मनरेगा के तहत किसानों को केले की पौध मुहैया कराई थी। इस योजना में लाभार्थी किसानों को विकास खंड से मनरेगा के तहत बुआई, निराई आदि के लिए मजदूरी दिये जाने का प्रावधान भी था। इससे प्रभावित होकर ग्राम खुनसरा के किसान राजेश कुमार, शेर सिंह व रमेश कुमार ने अपनी चार एकड़ भूमि पर केले की खेती करने का विचार बनाया। जून 2019 में उद्यान विभाग ने उन्हें केले की पौध मुहैया कराई। इस पर किसानों ने चार एकड़ भूमि पर मनरेगा से मिली मजदूरी से केले की पौध लगा दी।

पौध लगाने के बाद खेत की जुताई,  खाद व उर्वरकों का खर्च किसानों ने खुद उठाया। इस फसल पर बीस महीने में किसानों के तीन से साढ़े तीन लाख रूपये खर्च हो गये। अब जब फसल तैयार हुई तो खरीददारों की खोज शुरू की गई। कई दिन लगाने के बाद भी किसानों को केले के दो रूपये प्रति किलोग्राम के दर से खरीददार नहीं मिले। इससे किसानों के होश ड़ गए। किसानों ने हिसाब लगाया तो पता चला कि इस रेट पर तो केले की फसल तैयार होने तक लगी लागत का आधी रकम भी उन्हें नहीं मिल पाएगी। काफी कोशिशों के बाद भी फसल का उचिर दाम नहीं मिलने पर परेशान किसानों ने खेत में खड़ी केले की फसल को ट्रैक्टर से जोत दिया। किसानोंने कहा कि केले की फसल लगाकर वे कर्ज में डूब गये हैं। साथ ही बीस माह तक खेत में कोई और फसल भी नहीं बो सके। ऐसे में सरकार को किसानों से फसल बोने को कहने से पूर्व उसके विपणन की व्यवस्था करनी चाहिये। इस तरह से किसानों को धोखे रखना गलत है।

रिपोर्ट- रमेश यादव

 

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