छत्तीसगढ़ में शिक्षा व्यवस्था को लेकर नेताओं द्वारा तो बड़े-बड़े दावे किए ही जा रहे थे जिस पर मुहर लगाते हुए शिक्षा विभाग के अधिकारी भी वाहवाही लूटते हुए नजर आते हैं जी हा लगातार छत्तीसगढ़ में नेताओं और अधिकारियों द्वारा आम जनताओ को शिक्षा व्यवस्था के बारे में बड़े-बड़े सपने तो दिखाए जाते हैं परंतु ये सपने तब चूर-चूर हो जाते हैं जब खुले आसमान में पढ़ रहे छोटे-छोटे मासूम बच्चों के मुंह से यह आवाज निकल कर आता है कि हमें पढ़ने का तो बहुत शौक है परंतु हमारे गांव में एक स्कूल नहीं जिसके चलते हम कड़ी धूप, भरी बरसात और कड़ाके की ठंड में खुले आसमान पर पढ़ने के लिए मजबूर होते हैं।जी हां दरअसल पूरा मामला छत्तीसगढ़ जांजगीर चांपा जिले के नवागढ़ ब्लाक अंतर्गत ग्राम पंचायत टुरी (हीरागढ़) नामक एक छोटे से गांव का है जहां उस गांव में पढ़ने के लिए छोटे-छोटे 105 छात्र तो हैं परंतु उन्हें पढ़ाने के लिए वहां प्राथमिक शाला स्कूल की व्यवस्था नहीं है जिसके चलते यह मासूम से बच्चे खुले आसमान में पढ़ने को मजबूर हैं। जहा खंडहर जैसा एक जर्जर अतिरिक्त भवन है जिस पर भरी बरसात में अपनी जान को जोखिम में डालकर ये मासूम से बच्चे वहां शिक्षा ग्रहण करते हुए नजर आते हैं, इस भवन की हालत इतनी जर्जर है कि बरसात में दो बूंद बारिश क्या नहीं होता उस अतिरिक्त भवन के छत से जगह जगह से पानी टपकने लगते हैं और दीवारों पर इतने बड़े-बड़े दरार आ चुके हैं कि मानो हवा का थोड़ा सा झोखा क्या नहीं पड़ा भवन कभी भी खंडहर में तब्दील हो जाएगा ऐसे भवन पर 105 मासूम से छात्र अपनी शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं।
जब इस पूरे मामले में वहां के शिक्षकों से बात किया गया तो उनके द्वारा बताया गया कि विगत कई वर्षों से यहां एक छोटा सा प्राथमिक स्कूल संचालित हो रहा था जिस पर यहां बच्चे पढ़ाई कर रहे थे परंतु 3 वर्ष बीत चुका वह प्राथमिक शाला स्कूल खंडार में तब्दील हो चुका है जिसके छत गिरने लगे हैं दीवारों पर बड़े-बड़े दरार आ चुके हैं जिसके चलते बच्चे उस स्कूल में बैठकर शिक्षा ग्रहण नहीं कर पाते है तो वहीं प्रशासन के द्वारा यहां निर्माण कराए गए एक अतिरिक्त भवन है भी है जिस भवन की हालत भी बत्त से बत्तर है भरी बरसात में इस भवन के छत से पानी टपकते हैं और दीवारों पर बड़े-बड़े दरार आ चुके हैं कभी भी यह भवन खंडहर में तब्दील हो जाएगा परंतु मजबूरन हमे बरसात के चलते इस भवन के अंदर बच्चों को बैठाकर पढ़ाने को मजबूर रहते हैं।