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श्रीश उपाध्याय/मुंबई
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मुंबई में उत्तर भारतीयों की औक़ात दाल में पड़े कड़ी पत्ते से अधिक की नही रह गई है क्योंकि हर पार्टी हमारे मतों का स्वाद लेकर हमें दरकिनार कर देना चाहती है .
मुंबई की आबादी का 70 प्रतिशत होने के बावजूद उनके नेतृत्व की ज़िम्मेदारी भारतीय जनता पार्टी की सरकार किसी मारवाड़ी को दे रही है और लाचार उत्तर भारतीय संघ हिंदी भाषी के नाम पर उस मारवाड़ी नेता को उत्तर भारतीयों का नेता बताने की पुरज़ोर कोशिश कर रहा है .
मंगलवार को उत्तर भारतीय संघ की ओर से बांद्रा स्थित कार्यालय में मारवाड़ी नेता मंगल प्रभात लोढ़ा को मंत्री बनाए जाने को लेकर सम्मान समारोह आयोजित किया गया था. कार्यक्रम के दौरान उपस्थित सभी नेताओ ने मंगल प्रभात लोढ़ा का मंगल गान किया, जो कि ठीक भी है ,क्योंकि आतिथ्य सत्कार हम उत्तर भारतीयों की परम्परा रही है .
उत्तर भारतीय नेता प्रेम शुक्ल, राज़हंस सिंह, कृपाशंकर सिंह, पवन त्रिपाठी ने जम कर लोढ़ा का गुणगान किया जो कि राजनीतिक धर्म को शोभा भी दे रहा था. लेकिन पूरे उत्तर भारतीय समाज के प्रतिनिधित्व का दावा करने वाले उत्तर भारतीय संघ अध्यक्ष संतोष आर॰ एन॰ सिंह ने एक बार भी इस बात का दुःख नही जताया कि मुंबई की हिंदी भाषी आबादी के 70 प्रतिशत उत्तर भारतियो को अब अपने मन की बात करने के लिए एक मारवाड़ी नेता पर निर्भर होना पड़ेगा .
हालाँकि अपने भाषण के दौरान मंगल प्रभात लोढ़ा ने इस बात को स्वीकार किया कि मुंबई में हिंदी भाषियो की संख्या में उत्तर भारतीयों की संख्या 70 प्रतिशत है .उत्तर भारतीयों के आशिर्वाद से ही उन्हें इतनी बड़ी जवाबदारी मिली है .
मंगल प्रभात लोढ़ा अपनी जगह ठीक है ,धन बल के बलबूते उन्हें हिंदी भाषियो का नेता भाजपा ने घोषित तो कर ही दिया है . भाजपा के उत्तर भारतीय नेता भी राजनीतिक मजबूरी के कारण लोढ़ा को उत्तर भारतीयों का नेता साबित कर रहे है . इधर उत्तर भारतीय संघ लॉ कालेज की अनुमति पाने और स्वयं को महाराष्ट्र पर्यटन विभाग के अंतर्गत पर्यटन स्थल घोषित करने की आस में पूरे उत्तर भारतीय समाज को धोखा देते हुए मंगल प्रभात को उत्तर भारतीयों का नेता घोषित करने का असफल प्रयास कर रहा है .
अगर ऐसा संघ ही हम उत्तर भारतीयों की अगुआई करने लगेगा तो वो दिन दूर नही जब पूरा समाज चटुआइ करने को मजबूर हो जाएगा .
उत्तर प्रदेश के तरफ़ की एक कहावत तो आप लोगों को याद ही होगी- गरीब की जोरू गाँव की भौजाई. बस यही हाल भाजपाई नेतृत्व ने उत्तर भारतीयों का मुंबई में कर रखा है .
राष्ट्रवादी कॉग्रेस के पास मुसलमान ही सही लेकिन नवाब मलिक जैसा नेता है, समाजवादी पार्टी पास अबू आसिम आज़मी , जिसने हिंदी में बात करने लिए महाराष्ट्र के विधान सभा में मार तक खाई. कॉग्रेस के पास नसीम खान ,मनसे के पास वागीश सारस्वत.
भारतीय जनता पार्टी के पास भी उत्तर भारतीय नेताओं की लंबी क़तार है लेकिन वे हमारा मज़ाक़ बनाते हुए किसी राजस्थानी को हिंदी भाषी बताकर उसके हाथ में उत्तर भारतीयों का नेतृत्व थमा रहे है.
यह मज़बूरी भाजपा पार्टी,उनके नेताओ की और उत्तर भारतीय लोगों के ठेकेदारी का दावा करने वाले उत्तर भारतीय संघ की होगी लेकिन क्या उत्तर भारतीय समाज इस क़दर मजबूर है ?
अगर सचमुच उत्तर भारतीय जाग उठा तो पूरा उत्तर प्रदेश दो-दो बार भाजपा की झोली में डालने वाले उत्तर भारतीयों के साथ मुंबई में सौतेला व्यवहार करने वाली भाजपा को अवश्य ही आगामी मुंबई महानगर पालिका चुनाव में उत्तर भारतीय समाज उचित स्थान दिखाएगा .