वोकल फार लोकल’ का असर गोरखपुर में साफ नजर आ रहा है। मांग बढ़ी तो मिट्टी एवं गोबर के दीये का उत्पादन इस साल बढ़ गया है और जगह-जगह स्टाल लगाने की तैयारी भी है। गोरखपुर में कुम्हारों के 10 हजार से अधिक परिवार मिट्टी के करीब 40 करोड़ दीये बनाने में जुटे हैं। स्वयं सहायता समूहों के जरिए महिलाओं की आय बढ़ाने का भी इंतजाम किया गया है। अलग-अलग संस्थाओं के साथ जुड़कर इन समूहों की महिलाएं देसी गाय के गोबर से दीया एवं लक्ष्मी-गणेश की प्रतिमा तैयार कर रही हैं। दीपावली के दीये बनाने में जुटे परिवारों के जीवन में रोजगार का उजियारा फैल गया है प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एवं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने स्थनीय उत्पादों को खरीदने के लिए लोगों को प्रेरित करते रहते हैं। पिछले साल दीपावली में ही इस अपील का असर नजर आया था और कुम्हारों के घरों से बिकने वाले दीये सड़कों की पटरी पर लगी दुकानों पर नजर आने लगे थे। इस बार स्थिति और भी बेहतर होने जा रही है। पिछले एक महीने से कुम्हार परिवारों ने बट्टे का उत्पादन कम कर दिया है। बट्टे में ही चाय की मांग होने के कारण दुकानदारों को इस समय बाहर से आने वाला बट्टा मंगाना पड़ रहा है।
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स्थानीय स्तर से आपूर्ति नहीं हो पा रही। मूर्ति, दीया एवं बट्टा बनाने वाले बक्शीपुर निवासी अवधेश प्रजापति कहते हैं कि अधिकतर कुम्हारों ने बट्टा बनाना कम कर दिया है। साल में दीवाली ऐसा पर्व है, जब दीयों की खूब मांग होती है। एक परिवार औसतन 40 हजार दीये बनाता है। छठ पर्व को देखते हुए यह सिलसिला अभी जारी रहेगा। पिछले साल सरकार की ओर से दी गई डाई से काम आसान हुआ है। व्यापारी घर से ही माल खरीदकर ले जाएंगे। एकला नंबर दो निवासी टेराकोटा शिल्पकार हरिओम आजाद सरकार की ओर से दी गई डाई से साधारण से लेकर डिजाइनर दीये तक बना रहे हैं। उन्होंने बताया कि माटी कला बोर्ड की ओर से लखनऊ में लगाई गई प्रदर्शनी में वह 90 हजार दीया भेज चुके हैं और वहां बिक्री भी खूब हुई है। मिट्टी के दीयों के साथ ही देसी गाय के गोबर से दीया व मूर्ति बनाने का चलन भी खूब बढ़ा है। जिले में पिछले साल ही यह काम शुरू हुआ था लेकिन उत्पादन काफी कम था। इस समय करीब 40 से अधिक स्वयं सहायता समूह इस काम में जुटे हैं। सेवा भारती, सहकार भारती के अलावा ब्रह्मकृषि बायो एनर्जी फार्मर प्रोड्यूसर कंपनी लिमिटेड आदि संस्थाओं की ओर से इन महिलाओं का सहयोग किया जा रहा है। सेवा भारती की नीलम चतुर्वेदी का कहना है कि इस बार अधिक मात्रा में देसी गाय के गोबर से दीये बनाए जा रहे हैं। सहकार भारती की मीनाक्षी राय बताती हैं कि करीब 30 महिलाएं इस काम में जुटी हैं। गोरखपुर के अलावा देवरिया, कुशीनगर भी दीये व मूर्तियां भेजे जा रहे हैं। ब्रह्मकृषि बायो एनर्जी के महेंंद्र यादव ने महिलाओं को मशीन लाकर दी है और प्रशिक्षण भी दिलवाया है। वह पांच हजार दीये लखनऊ भी भेज चुके हैं। एक समूह प्रतिदिन करीब एक हजार दीये बना लेता है।
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गोबर से भी अभी तक 90 हजार दीये तैयार किए जा चुके हैं और यह संख्या करीब तीन लाख तक पहुंचेगी।मिट्टी के दीयों की कीमत अलग-अलग है। कोई कुम्हार 70 रुपये में सौ दीये बेच रहा है तो कहीं 100 रुपये में 100 दीये दिए जा रहे हैं। डिजाइनर दीयों की कीमत 500 रुपये सैकड़ा है। गोबर का एक दीया करीब चार से पांच रुपये में बिक रहा है। महिलाओं की आय बढ़ाने के लिए नगर निगम की ओर से इस बार दीपावली मेला भी लगाया जा रहा है। देसी गाय के गोबर से बने दीये में तेल डालने पर बाहर नहीं गिरता है। दीया पूरी तरह से जल जाएगा, इसकी राख भी फायदेमंद होती है। हवन से जुड़ी सामग्रियां होने के कारण यह दीया प्रकृति के बिल्कुल अनुकूल होता है और वातावरण शुद्ध होता है। गोबर के साथ ही प्री मिक्स के रूप में इसमें हवन की राख, मूल्तानी मिट्टी, जटामासी, चंदन, गूगल, पंचगव्य, फूल का पाउडर आदि मिलाया जाएगा।