Category Archives: राजस्थान

ये हैं भगवान शिव के 12 ज्‍योतिर्लिंग, यहां करें दर्शन…

DESK : चलिए आज हम आपको महाकाल के 12 ज्‍योतिर्लिंग के दर्शन करवाते है.वैसे तो देश भर में शिव जी की पूजा करने के लिए लोग सुबह से ही मंदिरों भक्तो का तांता लगा रहता है। तो वही हमारे भोलेभंडारी को भांग-धतूरा मनभावन है इस लिए श्रद्धालु उन्‍हें ये चढ़ा कर प्रसन्‍न करने में जुटे रहते हैं, ताकि बाबा भोले की कृपा उन पर बनी रही।तो वही अगर बात करे ज्‍योतिर्लिंगों के दर्शन की तो शिवभक्‍त रात रात भर लाइन में लगे कर अपने प्रभु के दर्शन करते है। पुराणों की मने तो उस में कहा गया है की जहां-जहां ज्‍योतिर्लिंग हैं, उन 12 जगहों पर भगवान शिव स्वयं प्रकट हुए थे। कहा जाता है कि इन ज्योतिर्लिंगों के दर्शन, पूजन, आराधना और नाम जपने मात्र से भक्तों के सभी पाप समाप्त हो जाते हैं। बाबा भोले की विशेष कृपा बनी रहती है। तो आइये आपको भी ज्‍योतिर्लिंग के दर्शन कराते हैं।

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सोमनाथ ज्योतिर्लिंग

सोमनाथ मंदिर गुजरात के काठियावाड़ क्षेत्र में समुद्र किनारे स्थित है। ये मंदिर जो की चंद्रमा ने भगवान शिव को आराध्य मानकर पूजा की थी और चंद्रमा को सोम भी कहा जाता है, इसलिए इस ज्योतिर्लिंग का नाम सोमनाथ पड़ा.

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मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग

मल्लिकार्जुन मंदिर आंध्र प्रदेश के कुरनूल जिले में कृष्णा नदी के तट पर स्थित है। माना जाता है कि इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन से सात्विक मनोकामनाएं पूरी होती हैं और दैहिक, दैविक व भौतिक पाप नष्ट हो जाते हैं।

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महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग

मध्य प्रदेश के उज्जैन में क्षिप्रा नदी के तट पर स्थित महाकालेश्वर स्वयंभू दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग है। देशभर में यह तीर्थ स्थान बाबा महाकाल के नाम से प्रसिद्ध है। जो इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन कर लेता है उस की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

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ओमकारेश्वर ज्‍योतिर्लिंग

ओमकारेश्वर मंदिर मध्य प्रदेश में नर्मदा नदी के किनारे मान्धाता पर्वत पर स्थित है। ऐसी मान्यता है कि इनके दर्शन मात्र से पुरुषार्थ चतुष्ट्य की प्राप्ति होती है। और सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

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केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग

केदारनाथ ज्योतिर्लिंग उत्‍तराखंड में अलकनंदा और मंदाकिनी नदियों के तट पर स्थित है। यहीं श्री नर और नारायण की तपस्थली है। कहा जाता है कि उन्हीं की प्रार्थना पर शिव ने यहां अपना वास स्वीकार किया था। केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग की उत्पति की कथा शिव पुराण में तब आती है।

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भीमाशंकर ज्‍योतिर्लिंग

भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र में पुणे से करीब 100 किलोमीटर दूर स्थित है। यहां स्थित शिवलिंग काफी मोटा है, इसलिए इसे मोटेश्वर महादेव भी कहा जाता है।

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त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग

धर्म नगरी काशी में काशी विश्‍वनाथ का मंदिर गंगा नदी के तट पर स्थित है। ऐसी मान्‍यता है कि हिमालय छोड़कर भगवान शिव ने यहीं अपना स्थाई निवास बनाया था। इसी वजह से ऐसा माना जाता है कि प्रलय काल का इस नगरी पर कोई असर नहीं पड़ता। त्र्यंबकेश्वर मंदिर महाराष्ट्र के नासिक से 30 किमी पश्चिम में स्थित है।

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नागेश्‍वर ज्‍योतिर्लिंग

नागेश्वर मन्दिर एक प्रसिद्द मन्दिर है जो भगवान शिव को समर्पित है। यह द्वारका,गुजरात के बाहरी क्षेत्र में स्थित है। यह शिव जी के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। हिन्दू धर्म के अनुसार नागेश्वर अर्थात नागों का ईश्वर होता है।इस ज्योतिर्लिंग का नामकरण भगवान शिव की इच्छा अनुसार किया गया है.

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वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग

बाबा बैजनाथ (वैद्यनाथ) मंदिर झारखंड के देवघर जिले में स्थित है। कहा जाता है कि एक बार रावण ने तप के बल से शिव को लंका ले जाने की कोशिश की, लेकिन रास्ते में व्यवधान आ जाने से शर्त के अनुसार शिव जी यहीं स्थापित हो गए।

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रामेश्‍वरम ज्‍योतिर्लिंग

रामेश्‍वरम मंदिर तमिलनाडु राज्‍य में स्थित है। ऐसी मान्‍यता है कि रावण की लंका पर चढ़ाई से पहले भगवान राम ने जिस शिवलिंग की स्थापना की थी, वही रामेश्वर के नाम से विश्व विख्यात हुआ।

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घृष्‍णेश्‍वर ज्‍योतिर्लिंग

शिव का बारहवां रुद्र अवतार है ‘घुश्मेश्वर’ ज्योतिर्लिंग इन्हीं ‘घुश्मेश्वर’ ज्योतिर्लिंग के नाम से भी जाना जाता है. घुमेश्वर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के दौलताबाद से लगभग 18 किलोमीटर दूर बेरूलठ गांव के पास स्थित है. शिवमहापुराण में घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग का वर्णन है.

रेलवे से 35 रूपये के लिए लड़ी लम्बी लड़ाई, 35 के बदले रेलवे ने चुकाए 2.43 करोड़ रुपये…

DESK : राजस्थान के कोटा जिले में एक व्यक्ति ने रेलवे से 35 रुपये वापस पाने के लिए पांच साल तक लड़ाई लड़ी और आखिरकार जीत हासिल की। उनकी इस जीत से करीब तीन लाख लोगों को भी फायदा हुआ। इस व्यक्ति द्वारा लड़ी गयी लड़ाई की बदौलत रेलवे ने आईआरसीटीसी के 2.98 लाख उपयोगकर्ताओं को 2.43 करोड़ रुपये वापस करने की मंजूरी दी है।

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पेशे से इंजीनियर और आरटीआई कार्यकर्ता सुजीत स्वामी ने अप्रैल 2017 में स्वर्ण मंदिर मेल में कोटा से नई दिल्ली के लिए 765 रुपये का टिकट बुक किया था। यह टिकट उस साल दो जुलाई की यात्रा के लिए था। लेकिन वेटिंग होने के कारण वह यात्रा नहीं कर पाए। टिकट कैंसिल करवाने पर उन्हें 665 रुपये का रिफंड मिला। सुजीत का कहना है कि रेलवे को सर्विस टैक्स के रूप में 65 रुपये काटने थे।

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लेकिन कंपनी ने 100 रुपये काट लिए। 35 रूपये का रिफंड पाने के लिए सुजीत ने करीब 50 आरटीआई डाले और चार विभागों को एक एक करके कई पत्र लिखे। अंततः रेलवे ने उन्हें 35 रूपये के बजाय 33 रूपये रिफंड कर दिया। इसके बाद सुजीत ने एक बार फिर दो रूपये के लिए संघर्ष शुरू कर दिया। उन्होंने जुलाई 2019 में फिर से एक और आरटीआई लगाकर दो रुपये का रिफंड मांगा। सुजीत हर दो महीने में आरटीआई के माध्यम से रिफंड की स्थिति की जानकारी लेते थे।

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थक हारकर रेलवे ने उनके अकाउंट में दो रूपये ट्रांसफर कर दिए। 27 मई को सुजीत के पास आईआरसीटीसी के एक अधिकारी का फोन आया। उन्होंने कहा कि रेलवे बोर्ड ने सभी यूजर्स का रिफंड मंजूर कर लिया है। 30 मई को सुजीत के अकाउंट में दो रुपये का रिफंड आ गया। इसके बाद सुजीत ने पांच साल चले संघर्ष के पूरा होने के बाद थैंक्यू कहने के लिए 535 रुपये पीएम केयर फंड में ट्रांसफर किए।

एक ही परिवार की 3 बेटियों का शव कुएं में.जानिए पूरी खबर…

desk : राजस्थान की राजधानी जयपुर के पास स्थित दूदू कस्बे में एक दिल दहला देने वाली घटना सामने आई है। एक कुंए में शनिवार सुबह तीन महिलाओं सहित पांच शव मिले। पुलिस के अनुसार सूचना मिलने पर मौके पर पहुंची पुलिस ने नरैना रोड पर एक खेत में स्थित कुएं से ये शव बरामद किए गए।

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इनमें तीन महिलाएं के साथ दो बच्चे शामिल हैं। सबसे बड़ी बहन मृतका कालू देवी के दो मासूम बच्चे थे। एक 4 साल का था जबकि दूसरा बच्चा 1 महीने का था। इन सभी के शव शनिवार सुबह कुए में पड़े मिले हैं। घटना की सूचना मिलने पर पुलिस के अधिकारी मौके पर पहुंचे। मामले की जांच की जा रही है।

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तीनों मृतक युवतियां दूदू से 3 किलोमीटर दूर छप्या गांव की रहने वाली थी। दूदू कस्बे के मीणा की ढाणियों में इनका ससुराल था। बुधवार 25 मई की दोपहर को तीनों बहने और 2 मासूम अचानक लापता हो गए। अगले दिन गुरुवार 26 मई को परिजनों ने दूदू पुलिस थाने में गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई । साथ ही अनहोनी आशंका जताई।

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दहेज ना मिलने पर बिना दुल्हन लिए बारात लेकर वापस लौटे बाराती, 7 फेरे लेने के बाद दूल्हों ने की दहेज की मांग…

DESK : राजस्थान के भरतपुर जिले में दूल्हे ने सात फेरे लेने के बाद दहेज की मांग की मांग पूरी नहीं होने पर बिना दुल्हनों को लिये ही बारात को लेकर वापस लोट गये. इससे शादी के घर में हड़कंप मच गया. बाद में मामले का कोई समाधान होता नहीं देखकर आहत हुये दुल्हनों के परिजन थाने पहुंचे और वहां दूल्हे के परिजनों के खिलाफ दहेज का मामला दर्ज कराया. पुलिस पूरे मामले की जांच में जुटी है.

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पुलिस के अनुसार घटना बयाना थाना इलाके के सिकंदरा गांव की है. सिकंदरा निवासी शिवशंकर और उसके भाई हरिशंकर की बेटियों की 10 मई को शादी हुई थी. उनकी बारात गढ़ी बाजना थाना इलाके के रामपुरा से आई थी. बारात लेकर आए दूल्हे गौरव और पवन तथा बारात का दुल्हनों के परिजनों ने जोरदार स्वागत किया. शादी की सभी रस्में विधि विधानपूर्वक हंसी खुशी निभाई गई. रात को दोनों बेटियों के सात फेरे भी हो गए थे.

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दोनों दुल्हनों के पिता ने मिलकर दोनों दूल्हों को एक बाइक, सोने के जेवर घर गृहस्थी का सामान और फर्नीचर दहेज में दिया था. अगले दिन सुबह 11 मई को जब बारात की विदाई वक्त आया तो दूल्हों के पिता जलसिंह और उदय सिंह ने अपने भाई और अन्य रिश्तेदारों के साथ मिलकर दुल्हनों के पिता से दहेज की मांग कर डाली. उन्होंने कहा कि दो बाइक और सोने के जेवरात सहित 5 लाख रुपये दहेज में दिया जाए. तभी वह दोनों दुल्हनों को विदा करा कर ले जाएंगे.

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इससे दुल्हनों के परिजन सकते में आ गये। उन्होंने दूल्हों के परिजनों को समझाने का काफी प्रयास किया लेकिन वे टस से मस नहीं हुये. दहेज की मांग पूरी करने में दुल्हनों के पिता ने असमर्थता जताई तो दूल्हे और उनके परिजन दुल्हनों को लिए बिना ही बारात लेकर वापस लौट गए. अब इस पूरे मामले में बयाना थाना पुलिस जांच कर रही है. इस घटना से दुल्हनों की शादियों में आये रिश्तेदार भी काफी भावुक हो गये लेकिन वे कुछ कर नहीं पाये.

ताजमहल के बंद 22 कमरों में क्‍या है छिपा, इस पर नहीं हो सकी सुनवाई, जयपुर की राजकुमारी का दावा ,ताजमहल उनके पुरखाें की निशानी…

DESK : क्या ताजमहल को भी भगवान शिव के मंदिर को तोड़कर बनाया है।ये सवाल इसलिए क्योंकि इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की गई है जिसमें अदालत से ताजमहल के उन 22 कमरों को खोलने की मांग की गई है दायर याचिका में कहा गया है कि ताजमहल में मौजूद 22 कमरों को खोलने की मांग की गई है। इससे पता चल सके कि इनके अंदर किसी देवी देवता की मूर्ती या शिलालेख है या नहीं।

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वही जयपुर राजघराने की राजकुमारी व राजसमंद से सांसद दीया कुमारी ने ताजमहल को मुगलों की नहीं उनके पुरखों की विरासत होने का दावा किया है। उन्हाेंने दावा किया है कि ताजमहल की जमीन उनकी पुरखों की थी। मुगलों का उस समय शासन था और उन्होंने इसे ले लिया था। इसके दस्तावेज उनके पाेथीखाने में हैं। उन्होंने बंद तहखाने खुलवाने की मांग की है।

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राजकुमारी दीया कुमारी के दावे की पुष्टि शाहजहां द्वारा राजा जयसिंह को जारी किया गया फरमान भी करता है। शाहजहां ने जिस जगह को ताजमहल के निर्माण के लिए चुना था, वह राजा मानसिंह की थी। इसकी पुष्टि 16 दिसंबर, 1633 (हिजरी 1049 के माह जुमादा 11 की 26/28 तारीख) को जारी फरमान से होती है। शाहजहां द्वारा यह फरमान राजा जयसिंह को हवेली देने के लिए जारी किया गया था। फरमान में जिक्र है कि शाहजहां ने मुमताज को दफन करने के लिए राजा मानसिंह की हवेली मांगी थी। इसके बदले में राजा जयसिंह को चार हवेलियां दी गई थीं। इस फरमान की सत्यापित नकल जयपुर स्थित सिटी पैलेस संग्रहालय में संरक्षित है।

सोनिया गांधी की जनसभा से पहले बीटीपी का विरोध, गुजरात-राजस्थान के आदिवासी जुटेंगे, जानें मामला…

desk : कांग्रेस पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी की राजस्थान के बेणेश्वर धाम में 16 मई को जनसभा से पहले कल 12 मई को उदयपुर के कोटड़ा में राजस्थान और गुजरात के आदिवासियों की महापंचायत हो रही है। आदिवासी स्थानीय जनता की जानकारी के बिना साबरमती और सई नदी पर बांध निर्माण योजना का विरोध कर रहे हैं। विरोधी की कमान भारतीय ट्राइबल पार्टी (बीटीपी) ने संभाली है। बीटीपी ने बांध बनाने की योजना का विरोध किया है। बीटीपी के प्रदेश अध्यक्ष वेलाराम का कहना है कि आदिवासियों को उजाड़ने और बांध से होने वाले लाभ से वंचित करने के विरोध में संघर्ष किया जाएगा। सरकार ने बांध बनाने की योजना बनाने से पहले न तो जनता से कोई संवाद किया और न ही जनप्रतिनिधियों को विश्वास में लिया। आज तक किसी को पता नहीं कि बांध निर्माण को योजना कब बनी और इसके लिए सर्वे कब हुए।

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बीटीपी प्रदेश अध्यक्ष वेलाराम का कहना है कि सरकार ने बांध निर्माण के योजना बनाने और इसकी बजट घोषणा करने के बाद भी अभी तक स्थानीय जनता को अंधेरे में रखा है। जबकि यह सब जानते हैं कि बांध निर्माण से डूब क्षेत्र में आने वाले ग्रामीण प्रभावित होते हैं। वेलाराम ने आरोप लगाया कि कांग्रेस और भाजपा दोनों ही पार्टिया मिली हुई है और चोरी छिपे दोनों ही पार्टी धर्म परिवर्तन कर ईसाई बनने वाले आदिवासियों को एसटी की सूची से बाहर करने की साजिश कर रही है। जबकि आदिवासियों ने दोनों ही पार्टियों की नीतियों से परेशान होकर धर्म परिवर्तन किया था। बीटीपी कांग्रेस और भाजपा का विरोध करेगी।

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उल्लेखनीय है कि उदयपुर में 13 से 15 मई तक तीन दिन के चिंतन शिविर के बाद आदिवासियों के तीर्थस्थल बेणेश्वर में 16 मई को सोनिया गाधी की जनसभा होगी। सीएम गहलोत 16 मई को बेणेश्वर धाम में 132 करोड़ की लागत से पुलिया का शिलान्यास सोनिया गांधी को हाथों से करवाएंगे। जनसभा में 5 लाख भीड़ जुटने का दावा किया जा रहा है। सरकार का कहना है कि हर साल बरसात के समय बेणेश्वर धाम में श्रद्धालु को आने-जाने में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। क्योंकि हल्की बरसात से भी बेणेश्वर धाम टापू में तब्दील हो जाता है। तीनों पुल साबला, बांसवाड़ा और वालाई पर पानी आ जाने से आवाजाही बंद हो जाती है। इन तीनों ही पुलियों की ऊंचाई बढ़ाने के लिए लंबे समय से मांग हो रही थी। यह मांग अब पूरी होने जा रही है। 132 करोड़ की लागत से बेणेश्वर धाम की पुलिया की ऊंचाई को बढ़ाकर हाई लेवल पुल बनाया जाएगा।

24 घंटे में 91 हजार नए मामले,देश में कोरोना कहर

भारत में बीते 24 घंटे में कोरोना के रिकार्ड मामले सामने आए हैं। बीते 24 घंटे के दौरान कोरोना के लगभग 91 हजार नए मामले सामने आए हैं। इस दौरान 325 लोगों की कोरोना से मौत भी हुई है। वहीं, 19,206 मरीज रिकवर हुए हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय ने बताया कि देश में बीते 24 घंटे में कोरोना के 90,928 नए मामले आए। इसके साथ ही कोरोना के कुल मामले बढ़कर 3,51,09,286 हो गए हैं। वहीं, सक्रिय मामले बढ़कर 2,85,401 हो गए हैं। इसके अलावा कुल मृतकों की संख्या बढ़कर 4,82,876 हो गई है।देश में लगभग 200 दिन बाद कोरोना के इतने नए मामले सामने आए हैं। इससे पहले 10 जून को 92,291 नए मामले सामने आए थे। वहीं, मंगलवार को कोरोना के 58 हजार से ज्यादा मामले सामने आए थे।

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कोरोना वायरस के वैरिएंट ओमिक्रोन के मामले भी तेजी के साथ बढ़ रहे हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय ने बताया कि ओमिक्रोन के मामले बढ़कर अब 2,630 हो गए हैं। इसके अलावा 995 मरीज रिकवर भी हो चुके हैं। महाराष्ट्र में ओमिक्रोन के सबसे ज्यादा मामले हैं। महाराष्ट्र में ओमिक्रोन के 797 जबकि देश की राजधानी दिल्ली में इसके कुल मामले 465 हो गए हैं।

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क्या आप जानते हैं ? पृथ्वीराज चौहान पर ऐतिहासिकता के दावे पर बनने वाली आगामी फिल्म पृथ्वीराज ऐतिहासिक मिथ्या पर आधारित है ?

पृथ्वीराज चौहान पर ऐतिहासिकता के दावे पर बनने वाली आगामी फिल्म पृथ्वीराज ऐतिहासिक मिथ्या पर आधारित है ? यह उसके टीजर पोस्टर से ही सिद्ध होता है। जिस संयोगिता का वर्णन “पृथ्वीराज रासो” के पहले और इसके अलावा किसी पुराने ग्रंथ में नहीं मिलता , उस संयोगिता का पृथ्वीराज फिल्म में लीड रोल कर रही हैं मानुषी छिल्लर । जहां एक और इतिहासकार पृथ्वीराज रासो के ऐतिहासिक ग्रंथ होने का खंडन करते हुए इसे 16 वीं और 17 वीं शताब्दी तक लिखा हुआ मानते हैं तो दूसरी ओर जयचंद गहरवार द्वारा मोहम्मद घोरी को निमंत्रण देने, राजपूतों की आपसी फूट,पृथ्वीराज चौहान के महत्वाकांक्षी होने पर ऐतिहासिकता न होने पर भी इसे मुख्यधारा में लाने वाले इतिहासकारों की एक लंबी लाइन है ।

अब जिस पृथ्वीराज रासो का लेखन ही 17 वीं शताब्दी तक हुआ है उस पर बेस्ड होकर हिंदूवादी और वामपंथियों ने अब तक इतना दुष्प्रचार किया कि संयोगिता को माता मानना और जयचंद को गहरवार को गद्दार बोलने में राजपूतों का योगदान भी कम नहीं है ,फिल्में तक इसी नैरेटिव में बन रही हैं। हिंदुत्ववादी भाजपा के कार्यकाल में अक्षय कुमार की छवि राष्ट्रवादी बनाने वाले हिंदुत्ववादियों का अक्षय कुमार को भी भरपूर समर्थन है। खैर क्षत्रीय समाज का इसी हिंदुत्व में समर्थन इतना अत्यधिक होने के बावजूद इनका मीडिया, अकादमिया और स्वयं के इतिहास पर नियंत्रण भी शून्य है ।

अब हिंदूवादी नैरेटिवो में फंसे इस समाज की मानसिक हालत ऐसी हो तो प्रतिकार की भी इनसे उम्मीद करना जायज नहीं , प्रतिकार होगा भी तो वही सड़कों में दलाल संगठनों द्वारा जिन्हें मीडिया अब तक खासा उग्रवादी साबित कर चुकी है । रॉयल जिन्होंने अपनी विरासत का गुमान है लेकिन अपने पूर्वजों के इतिहास पर हो रहे बंदरबांट से कोई मतलब नहीं व जिन्होंने अपने खुद के इतिहास पर (कुछ को छोड़) आज तक कार्य न किया।
केवल चौहानों के कितने प्रिंसली स्टेट रहे हैं ? जिन्हें दिखा दिखा कर आप अपनी पीठ थपथपा रहे हैं , दरअसल इन्हें कोई मतलब नहीं।
साभार — शिवेंद्र परिहार

हिंदुओं के प्रमुख तीर्थस्थानों में पुष्कर ही एक ऐसी जगह है जहाँ ब्रह्मा का मंदिर स्थापित है।

हिंदुओं के प्रमुख तीर्थस्थानों में पुष्कर ही एक ऐसी जगह है जहाँ ब्रह्मा का मंदिर स्थापित है।

भारत के राजस्थान राज्य में अरावली श्रेणी की घाटी में अजमेर नगर से पाँच मील पश्चिम अजमेर जिले का एक नगर तथा स्थानीय मंडी है। इसके निकटवर्ती क्षेत्र में ज्वार, बाजरा, मक्का, गेहूँ तथा गन्ने की उपज होती है। कलापूर्ण कुटीर-वस्त्र-उद्योग, काष्ठ चित्रकला, तथा पशुओं के व्यापार के लिए यह विख्यात है। यहाँ पवित्र पुष्कर झील है तथा समीप में ब्रह्मा जी का पवित्र मंदिर है, जिससे प्रति वर्ष अनेक तीर्थयात्री यहाँ आते हैं। अक्टूबर, नवंबर के महीनों में यहाँ एक विशेष धार्मिक एवं व्यापारिक महत्व का मेला लगता है। इसका धार्मिक महत्व अधिक है। यह सागरतल से २,३८९ फुट की ऊँचाई पर स्थित है। यहाँ कई प्रसिद्ध मंदिर हैं, जो औरंगजेब द्वारा ध्वस्त करने के बाद पुन: निर्मित किए गए हैं।

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पुष्कर के उद्भव का वर्णन पद्मपुराण में मिलता है। कहा जाता है, ब्रह्मा ने यहाँ आकर यज्ञ किया था। हिंदुओं के प्रमुख तीर्थस्थानों में पुष्कर ही एक ऐसी जगह है जहाँ ब्रह्मा का मंदिर स्थापित है। ब्रह्मा के मंदिर के अतिरिक्त यहाँ सावित्री, बदरीनारायण, वाराह और शिव आत्मेश्वर के मंदिर है, किंतु वे आधुनिक हैं। यहाँ के प्राचीन मंदिरों को मुगल सम्राट् औरंगजेब ने नष्टभ्रष्ट कर दिया था। पुष्कर झील के तट पर जगह-जगह पक्के घाट बने हैं जो राजपूताना के देशी राज्यों के धनीमानी व्यक्तियों द्वारा बनाए गए हैं।

पुष्कर का उल्लेख रामायण में भी हुआ है। सर्ग ६२ श्लोक २८ में विश्वामित्रोsपि धर्मात्मा भूयस्तेपे महातपाः। पुष्करेषु नरश्रेष्ठ दशवर्षशतानि च।। वाल्मीकि रामायण बालकाण्ड सर्ग 62 श्लोक 28विश्वामित्र के यहाँ तप करने की बात कही गई है। सर्ग ६३ श्लोक १५ के अनुसार मेनका यहाँ के पावन जल में स्नान के लिए आई थीं।

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साँची स्तूप दानलेखों में, जिनका समय ई. पू. दूसरी शताबदी है, कई बौद्ध भिक्षुओं के दान का वर्णन मिलता है जो पुष्कर में निवास करते थे। पांडुलेन गुफा के लेख में, जो ई. सन् १२५ का माना जाता है, उषमदवत्त का नाम आता है। यह विख्यात राजा नहपाण का दामाद था और इसने पुष्कर आकर ३००० गायों एवं एक गाँव का दान किया था।

अजमेर से ११ कि॰मी॰ दूर हिन्दुओं का प्रसिद्ध तीर्थ स्थल पुष्कर है। यहां पर कार्तिक पूर्णिमा को पुष्कर मेला लगता है, जिसमें बड़ी संख्या में देशी-विदेशी पर्यटक भी आते हैं। हजारों हिन्दु लोग इस मेले में आते हैं। व अपने को पवित्र करने के लिए पुष्कर झील में स्नान करते हैं। भक्तगण एवं पर्यटक श्री रंग जी एवं अन्य मंदिरों के दर्शन कर आत्मिक लाभ प्राप्त करते हैं।

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राज्य प्रशासन भी इस मेले को विशेष महत्व देता है। स्थानीय प्रशासन इस मेले की व्यवस्था करता है एवं कला संस्कृति तथा पर्यटन विभाग इस अवसर पर सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयाेजन करते हैं।

पुष्कर को तीर्थों का मुख माना जाता है। जिस प्रकार प्रयाग को “तीर्थराज” कहा जाता है, उसी प्रकार से इस तीर्थ को “पुष्करराज” कहा जाता है। पुष्कर की गणना पंचतीर्थों व पंच सरोवरों में की जाती है। पुष्कर सरोवर तीन हैं –

  • ज्येष्ठ (प्रधान) पुष्कर
  • मध्य (बूढ़ा) पुष्कर
  • कनिष्क पुष्कर।

ज्येष्ठ पुष्कर के देवता ब्रह्माजी, मध्य पुष्कर के देवता भगवान विष्णु और कनिष्क पुष्कर के देवता रुद्र हैं। पुष्कर का मुख्य मन्दिर ब्रह्माजी का मन्दिर है। जो कि पुष्कर सरोवर से थोड़ी ही दूरी पर स्थित है। मन्दिर में चतुर्मुख ब्रह्मा जी की दाहिनी ओर सावित्री एवं बायीं ओर गायत्री का मन्दिर है। पास में ही एक और सनकादि की मूर्तियाँ हैं, तो एक छोटे से मन्दिर में नारद जी की मूर्ति। एक मन्दिर में हाथी पर बैठे कुबेर तथा नारद की मूर्तियाँ हैं।

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ब्रह्मवैवर्त पुराण में उल्लिखित है कि अपने मानस पुत्र नारद द्वारा सृष्टिकर्म करने से इन्कार किए जाने पर ब्रह्मा ने उन्हें रोषपूर्वक शाप दे दिया कि—”तुमने मेरी आज्ञा की अवहेलना की है, अतः मेरे शाप से तुम्हारा ज्ञान नष्ट हो जाएगा और तुम गन्धर्व योनि को प्राप्त करके कामिनियों के वशीभूत हो जाओगे।” तब नारद ने भी दुःखी पिता ब्रह्मा को शाप दिया—”तात! आपने बिना किसी कारण के सोचे – विचारे मुझे शाप दिया है। अतः मैं भी आपको शाप देता हूँ कि तीन कल्पों तक लोक में आपकी पूजा नहीं होगी और आपके मंत्र, श्लोक कवच आदि का लोप हो जाएगा।” तभी से ब्रह्मा जी की पूजा नहीं होती है। मात्र पुष्कर क्षेत्र में ही वर्ष में एक बार उनकी पूजा–अर्चना होती है।

पूरे भारत में केवल एक यही ब्रह्मा का मन्दिर है। इस मन्दिर का निर्माण ग्वालियर के महाजन गोकुल प्राक् ने अजमेर में करवाया था। ब्रह्मा मन्दिर की लाट लाल रंग की है तथा इसमें ब्रह्मा के वाहन हंस की आकृतियाँ हैं। चतुर्मुखी ब्रह्मा देवी गायत्री तथा सावित्री यहाँ मूर्तिरूप में विद्यमान हैं। हिन्दुओं के लिए पुष्कर एक पवित्र तीर्थ व महान पवित्र स्थल है।

वर्तमान समय में इसकी देख–रेख की व्यवस्था सरकार ने सम्भाल रखी है। अतः तीर्थस्थल की स्वच्छता बनाए रखने में भी काफ़ी मदद मिली है। यात्रियों की आवास व्यवस्था का विशेष ध्यान रखा जाता है। हर तीर्थयात्री, जो यहाँ आता है, यहाँ की पवित्रता और सौंदर्य की मन में एक याद संजोए जाता है।

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दो शताब्दी बाद कर्जा लौटा कर ऐतिहासिक मूँछ का बाल छुडाया और अंत्येष्टि की।

जानिए #बल्लू_जी_चंपावत:
दो शताब्दी बाद कर्जा लौटा कर ऐतिहासिक मूँछ का बाल छुडाया और अंत्येष्टि की।
मूंछ के एक बाल का अंतिम संस्कार और वह भी करीब दो शताब्दी बाद सुनने में यह बात चाहे अटपटी और आश्चर्यजनक लगे लेकिन बात है ऐतिहासिक सच्चाई!
राजपूती आन-बान के लिए।
प्रसिद्द राजस्थान में यह ऐतिहासिक घटना सन 1812 के लगभग तत्कालीन नागौर परगना के हरसोलाव ठिकाने के #बल्लू_जी_चंपावत को लेकर हुई, आगरा किले से #राव_अमर_सिंह_राठोड के शव को मुग़ल शाहजहां के चंगुल से छुडाने के लिए बल्लू जी ने अपनी मूंछ का एक बाल गिरवी रखकर सेना गठीत की थी लगभग दो शताब्दी बाद पांचवी पीढी में बल्लू जी के वंशजो को साहूकार के वंशजो ने वीर बल्लू जी का लिखा रुक्का और मूंछ का बाल सौंपा तो कर्ज चुकाने के साथ बल्लू जी के वंशजो ने बाल का विधिवत संस्कार करके परंपरागत ढंग से शोक मनाया।
ऐतिहासिक प्रसंग की शुरुवात 26 जुलाई 1644 को आगरा के किले से राव अमर सिंह राठोड का शव लाने की रोमांचकारी घटना से हुई थी। इसके एक रोज पहले अमर सिंह राठोड की शाहजहाँ के दरबार में आपसी कहासुनी के दौरान हत्या कर दी गई थी हाडी रानी को सती होने के लिए पति का शव जरुरी था और इस काम को अपनी जान पर खेलकर बल्लू जी ने पूरा किया आनन् फानन में बल्लू जी ने पांच सौ घुड़सवारो की सेना तैयार की और उनका वेतन चुकाने के लिए बल्लू जी ने एक साहूकार को रुक्का लिखकर कर्ज के लिए अपनी मूंछ का बाल गिरवी रखा।
उदयपुर के #महाराणा_जगत_सिंह द्वारा भेजे गए नीले-सफ़ेद रंग के सर्वश्रेष्ठ घोड़े को लेकर बल्लू जी ने शाहजहां की अनुमति से किले में प्रवेश किया उन्होंने अपने स्वामी राव अमर सिंह राठोड की लाश के दर्शन के बहाने बिजली की स्फुर्ती से घोड़े पर शव उठाया और किले की प्राचीर से नीचे कूद पड़े।अगले रोज नागौर तथा आगरा में यमुना नदी के किनारे चिता सजी जिसमे #हाडी_रानी जब राव अमर सिंह राठोड तथा माया कंवर टाकणी अपनी वीर पति बल्लू जी के कर्महठ के साथ सती हुई। यमुना किनारे आज भी बल्लू जी की छत्री के भग्नावशेष मौजूद है।दुश्मनी के बावजूद मुग़ल शाहजहां ने बल्लू जी की स्वामी भक्त घोड़े की लाल पत्थर की प्रतिमा आगरा किले के समक्ष बनावाई और किले के गेट का नामांकरण अमर सिंह के नाम पर किया इतिहासकार ठाकुर मोहन सिंह कानोता द्वारा लिखित ‘#चम्पावतो_का_इतिहास‘ पुस्तक के अनुसार घोड़े की प्रतिमा 1961 तक आगरा किले के समक्ष थी लेकिन 1968 में यह नहीं दिखाई दी संभवता पीतल की प्लेटो आदि के लालच में उसे किसी ने क्षतिग्रस्त कर दिया।
आगरा के जिस साहूकार से बल्लू जी ने कर्ज लिया था उसके वंशज अपनी माँ की हालत ख़राब होने की वजह से डिबिया में रखा मूंछ का बाल और रुक्का लेकर नागौर के हरसोलाव ठिकाने पर गए बल्लू चम्पावत की पांचवी पीढ़ी में हुए #सूरत_सिंह ने अत्यंत श्रद्धा के साथ उस बाल को ग्रहण किया कर्ज चुकाया और उस मूंछ के बाल का अंतिम संस्कार कर 12 दिन तक शोक किया।
स्वामी ओर अपनी आन के लिए अपने प्राणों का भी मोह न करने वाले राजपूत योद्धाओं को मेरा बारंबार सादर प्रणाम
#पुस्पेंद्र_सिंह अखिल वैश्विक क्षत्रीय महासभा ट्रस्ट तहसील कार्यकारी अध्यक्ष जैतपुर शहडोल मध्य प्रदेश
जय भवानी
पोस्ट में किसी भी प्रकार की त्रुटि के लिए क्षमा प्रार्थी हैं
कॉमेंट में बताई जाय त्रुटि सुधार किया जाएगा।