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चंदा कोचर और उनके पति को मिली जमानत, हाईकोर्ट ने कहा- गिरफ्तारी कानून के मुताबिक नहीं

DESK: आईसीआईसीआई बैंक की पूर्व सीईओ चंदा कोचर और उनके पति दीपक को बोम्बे हाई कोर्ट ने जमानत दे दी हैं। बता दें कि आईसीआईसीआई बैंक-वीडियोकॉन लोन फ्रॉड केस में चंदा कोचर और उनके पति को सीबीआई ने हिरासत में ले लिया था।

सीबीआई ने ये कहा था। कि बैंक द्वारा लोन में धोखाधड़ी के मामले में पूछताछ को दौरान सवालो का सही तरह से जवाब नही दें रहे थें। जिसके बाद 23 दिसबंर को  उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था।

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इसके कुछ दिन बाद ही 26 दिसंबर को वीडियोकॉन ग्रुप के फाउंडर वेणुगोपाल धूत को भी गिरफ्तार किया गया था। बॉम्बे हाईकोर्ट ने इस याचिका पर सुनवाई करते हुए,जमानत का आदेश दिया हैं। कोर्ट ने कहा कि इनकी गिरफ्तारी कानून के मुताबिक नही हुई थी।

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बता दें कि साल 2012 में ICICI बैंक ने वीडियोकॉन ग्रुप को 3,250 करोड़ का लोन दिया था। जिसमें पूर्व सीईओ चंदा कोचर चंदा के पति दीपक कोचर की 50 फीसदी हिस्सेदारी थी। उस लोन दिए जाने के बाद ये नॉन-परफॉर्मिंग एसेट हो गया, और बाद में इसे बैंक फ्रॉड घोषित किया गया था। इसके बाद चदां कोचर पर ये आरोप है कि उन्हें अपने पति कि कंपनी को लाभ  पहुंचाया। इसके खुलासे के बाद साल 2018 में उन्हें बैंक से इस्तीफा देना पड़ गया था।

अनिल देशमुख को 11 महीने बाद जमानत, मनी लॉन्ड्रिंग केस में ED ने किया था अरेस्ट…

DESK: राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेताअनिल देशमुख को जमानत मिल गई है. एनसीपी नेता अनिल देशमुख को ईडी के मनी लॉन्ड्रिंग के केस में जमानत मिली है. 11 महीने बाद उन्हें बॉम्बे हाईकोर्ट ने ईडी के केस में जमानत दे दी है. जमानत की शर्तों के तौर पर उन्हें पासपोर्ट जमा करने और जांच में हस्तक्षेप नहीं करने और पूछताछ में सहयोग करने को कहा गया है

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ईडी बॉम्बे हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में जाएगी. ईडी ने हाईकोर्ट से इस आदेश पर 13 अक्टूबर तक स्टे की मांग की थी. इसका देशमुख के वकील ने विरोध किया. न्यायमूर्ति निजामुद्दीन जमादार की खंडपीठ ने इस मामले की सुनवाई की. 10 तारीख तक वैसे भी पर्व-त्योहार कि छुट्टी है. 10 तारीख से कोर्ट नियमित रूप से शुरू होगा. इसलिए न्यायमूर्ति ने यह साफ किया कि यजमानत आदेश 13 अक्टूबर से लागू होगा.

सुप्रीम कोर्ट में देशमुख की जमानत के खिलाफ अपील करने के लिए ईडी की तरफ से अतिरिक्त महान्यायवादी ( अनिल सिंह ने हाईकोर्ट से दो हफ्ते तक जमानत के आदेश को स्टे देने की अपील की थी. इसका देशमुख के वकील अनिकेत निकम ने विरोध किया. उन्होंने कहा कि असका असर देशमुख की तरफ से सीबीआई के केस में दर्जा की जाने वाली जमानत अर्जी पर पड़ेगा. वैसे भी सीबीआई के केस में देशमुख को जमानत नहीं मिली है और वे तुरंत जेल से बाहर आने नहीं जा रहे हैं. अगर ईडी को सुप्रीम कोर्ट में अपील करना है तो इसके लिए दो हफ्ते के समय की जरूरत नहीं है. इसके लिए एक रात काफी है.

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अनिल देशमुख की जमानत अर्जी सात महीने तक लटकती रही तो सुप्रीम कोर्ट ने कुछ दिनों पहले नाराजगी जताई और उच्च न्यायालय को जल्द से जल्द सुनवाई पूरी करने और फैसला देने का आदेश दिया था.

स्किन टू स्किन कान्टेक्ट के बिना भी माना जाएगा यौन उत्पीड़न, सुप्रीम कोर्ट ने रद किया बाम्बे हाईकोर्ट का फैसला

स्किन टू स्किन कान्टेक्ट के बिना भी माना जाएगा यौन उत्पीड़न, सुप्रीम कोर्ट ने रद किया बाम्बे हाईकोर्ट का फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को बाम्बे हाईकोर्ट के उस फैसले को खारिज कर दिया जिसमें कहा गया था कि अगर किसी आरोपी और पीड़िता के बीच सीधे स्किन टू स्किन कान्टेक्ट नहीं होता है तो पाक्सो अधिनियम के तहत यौन उत्पीड़न का कोई अपराध नहीं बनता है।

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यौन उत्‍पीड़न से जुड़े एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला दिया है। स्किन-टू-स्किन कान्टेक्ट को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बाम्बे हाई कोर्ट के फैसले को रद कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि कानून का उद्देश्य अपराधी को कानून के जाल से बचने की अनुमति देना नहीं हो सकता है। शीर्ष अदालत, अटार्नी जनरल और राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) की अलग-अलग अपीलों पर सुनवाई कर रही थी।

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इससे पहले बाम्बे हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा गया था कि स्किन टू स्किन कान्टेक्ट के बिना नाबालिग के निजी अंगों को टटोलना यौन उत्पीड़न के रूप में परिभाषित नहीं किया जा सकता है। हाईकोर्ट ने इस आधार पर दोषी को बरी कर दिया था। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने अब साफ कर दिया है कि पाक्सो एक्‍ट में फिजिकल कांटेक्‍ट के मायने सिर्फ स्किन-टू-स्किन टच नहीं है। सत्र अदालत ने व्यक्ति को पाक्सो अधिनियम और आइपीसी की धारा 354 के तहत अपराधों के लिए तीन साल के कारावास की सजा सुनाई थी।

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न्यायमूर्ति यूयू ललित की अध्यक्षता वाली पीठ ने उच्च न्यायालय के फैसले को रद्द करते हुए कहा कि यौन उत्पीड़न का सबसे महत्वपूर्ण घटक यौन इरादा है, न कि बच्चे के साथ स्किन-टू-स्किन कान्टेक्ट। शीर्ष अदालत ने कहा कि जब विधायिका ने इसपर स्पष्ट इरादा व्यक्त किया है, तो अदालतें प्रावधान में अस्पष्टता पैदा नहीं कर सकती हैं। अदालतें अस्पष्टता पैदा करने में अति उत्साही नहीं हो सकती हैं। इस बेंच में जस्टिस एस रवींद्र भट और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी भी शामिल थीं।

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