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वीर #गोगा जी चौहान के बारे में जिनकी जानकारी शायद राजस्थान के बाहर राजपूतों में ही नहीं है ,किसी भी हिंदूवादी और आरएसएस की कहानियों में ये नहीं मिलेंगे।

 वीर #गोगा जी चौहान के बारे में जिनकी जानकारी शायद राजस्थान के बाहर राजपूतों में ही नहीं है ,किसी भी हिंदूवादी और आरएसएस की कहानियों में ये नहीं मिलेंगे। जब महमूद #गजनवी ने सोमनाथ मंदिर पर हमला किया था, तब पश्चिमी राजस्थान में गोगा जी चौहान ने ही गजनी का रास्ता रोका था, घमासान युद्ध हुआ | गोगा ने अपने सभी पुत्रों, भतीजों, भांजों व अनेक रिश्तेदारों सहित जन्म भूमि और धर्म की रक्षा के लिए बलिदान दे दिया | विद्वानों व इतिहासकारों #दशरथ शर्मा, देवी सिंह मुन्डावा जैसे इतिहासकारों ने उनके जीवन को शौर्य, धर्म, पराक्रम व उच्च जीवन आदर्शों का प्रतीक माना है। गोगाजी का जन्म राजस्थान के ददरेवा (चुरू) चौहान वंश के राजपूत शासक जैबर (जेवरसिंह) की पत्नी बाछल के गर्भ से भादो सुदी नवमी को हुआ था। चौहान वंश में राजा #पृथ्वीराज चौहान के बाद गोगाजी वीर और ख्याति प्राप्त राजा थे। गोगाजी का राज्य सतलुज से हांसी (हरियाणा) तक था।
गोगाजी राजस्थान के लोक देवता हैं जिन्हे #जाहरवीर गोगा जी के नाम से भी जाना जाता है । राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले का एक शहर गोगामेड़ी है । यहां भादवशुक्लपक्ष की नवमी को गोगाजी देवता का मेला भरता है । इन्हे सभी जाती धर्मो के लोग पूजते है|
वीर गोगाजी गुरु #गोरखनाथ के परमशिस्य थे। चौहान वीर गोगाजी का जन्म विक्रम संवत 1003 में चुरू जिले के ददरेवा गाँव में हुआ था सिद्ध वीर गोगादेव के जन्मस्थान, जो राजस्थान के चुरू जिले के दत्तखेड़ा ददरेवा में स्थित है। जहाँ पर सभी धर्म और सम्प्रदाय के लोग मत्था टेकने के लिए दूर-दूर से आते हैं। #कायमखानी मुस्लिम समाज उनको जाहर पीर के नाम से पुकारते हैं तथा उक्त स्थान पर मत्था टेकने और मन्नत माँगने आते हैं। इस तरह यह स्थान सनातन एकता का प्रतीक है। मध्यकालीन महापुरुष गोगाजी सनातन, मुस्लिम, सिख संप्रदायों की श्रद्घा अर्जित कर एक धर्मनिरपेक्ष #लोकदेवता के नाम से पीर के रूप में प्रसिद्ध हुए।
लोग उन्हें गोगाजी चौहान, गुग्गा, जाहिर वीर व जाहर पीर के नामों से पुकारते हैं। यह गुरु गोरक्षनाथ के प्रमुख शिष्यों में से एक थे। राजस्थान के छह सिद्धों में गोगाजी को समय की दृष्टि से प्रथम माना गया है। जयपुर से लगभग 250 किमी दूर स्थित सादलपुर के पास दत्तखेड़ा (ददरेवा) में गोगादेवजी का जन्म स्थान है। दत्तखेड़ा चुरू के अंतर्गत आता है।
गोगादेव की जन्मभूमि पर आज भी उनके घोड़े का अस्तबल है और सैकड़ों वर्ष बीत गए, लेकिन उनके घोड़े की रकाब अभी भी वहीं पर विद्यमान है। उक्त जन्म स्थान पर गुरु गोरक्षनाथ का आश्रम भी है और वहीं है गोगादेव की घोड़े पर सवार मूर्ति। भक्तजन इस स्थान पर कीर्तन करते हुए आते हैं और जन्म स्थान पर बने मंदिर पर मत्था टेककर मन्नत माँगते हैं।आज भी सर्पदंश से मुक्ति के लिए गोगाजी की पूजा की जाती है। गोगाजी के प्रतीक के रूप में पत्थर या लकडी पर सर्प मूर्ती उत्कीर्ण की जाती है। लोक धारणा है कि सर्प दंश से प्रभावित व्यक्ति को यदि गोगाजी की मेडी तक लाया जाये तो वह व्यक्ति सर्प विष से मुक्त हो जाता है। भादवा माह के शुक्ल पक्ष तथा कृष्ण पक्ष की नवमियों को गोगाजी की स्मृति में मेला लगता है। उत्तर प्रदेश में इन्हें जहर पीर तथा मुसलमान इन्हें गोगा पीर कहते हैं
गोगा नवमी पर कडाई, पुआ, पुडी, खीर बनाई जाती है, कुम्हारो के धर से मिटटी का घोडा लाया जाता है ।
जिस पर गोगाजी विराजमान रहते है, उनकी पूजा कि जाती है, भोग लगाया जाता है, राखी चढाई जाती है ।
गोगा नवमी की हार्दिक बधाई शुभकामनायें।
जय जुझार वीर गोगा जी चौहान (जाहरवीर) जी की
गोगा नवमी पर गोगा जी महाराज को शत शत नमन।

वीरों की दहाड़ होगी क्षत्रियों की ललकार होगी,आ रहा हैं वक्त जब फिर क्षत्रियों की भरमार होगी।

वीरों की दहाड़ होगी क्षत्रियों की ललकार होगी,
आ रहा हैं वक्त जब फिर क्षत्रियों की भरमार होगी।
लत क्षत्रियों की लगी हैं, तो नशा अब सरे आम होगा,
हर लम्हा मेरे जीवन का सिर्फ, क्षत्रिय के नाम होगा।
हमसे उम्मीद मत रखना की हम कुछ और लिखेंगे,
हम क्षत्रिय हैं साहब, जब भी लिखेंगे जय मां भवानी,
जय राजपूताना, जय श्री राम लिखेंगे।
जब उठेगी क्षत्रियों की तलवार, कोहराम ही मच जाएगा,
इतिहास की तुम चिंता ना करो, पूरा भुगोल ही बदल जाएगा।
जब जब उठेगी ऊंगली क्षत्रिय पे, खून मेरा खौलेगा,
जब जब धङकेगा हृदय मेरा, जय भवानी बोलेगा ॥
खून अपना गरम हैं, क्योंकि क्षत्रिय अपना धर्म हैं।
जो क्षत्रिय मां भवानी और महाराणा प्रताप का नहीं, वह किसी काम का नहीं।
चीर कर बहा दो लहू दुश्मन के सीने का,
यही तो मजा हैं, क्षत्रिय होकर जीने का।
कट्टर क्षत्रिय शेर हूँ, बड़ा ही दिलेर हूँ,
प्यार दिखायेगा तो जान वार दूंगा, गद्दारी दिखायेगा तो चीरफाड दूंगा।
मुश्किल में हैं क्षत्रिय, अब जल्लाद बनना होगा,
तुझे महाराणा प्रताप और मुझे राम बनना ही होगा।
डरते वो लोग हैं, जो मरने के बाद भी जमीन में मुंह छुपा लेते हैं,
अरे हम तो क्षत्रिय हैं, जो मरने के बाद भी आग से खेल जाते हैं।
अगर हुआ मेरे धर्म पर घात तो मैं प्रतिघात करूँगा,
मैं क्षत्रिय हूँ, क्षत्रियों की ही बात करूँगा। जय श्री राम
जलते हैं तो जलने दो, बुझना मेरा काम नही,
जलाकर राख न कर दु, तो क्षत्रिय मेरा नाम नही।
चीर के बहा दो लहू, दुश्मन के सीने का,
यही तो अंदाज हैं, क्षत्रियों के जीने का।
“घमंड की बीमारी” शराब जैसी हैं साहब,
खुद को छोड़कर सबको पता चलता हैं कि इसको चढ़ गयी हैं।
धूल चटा दो गिद्धों को, जो घर में घुसकर घात करें,
और जीभ काट लो उन कुत्तों की जो क्षत्रिय के खिलाफ बात करें।
क्षत्रिय होना भाग्य हैं, पर कट्टर क्षत्रिय होना सौभाग्य हैं।
तुम जितना मुझसे टकराओगे, मैं उतना कट्टर क्षत्रिय बनता जाऊंगा ।।
।। जय मां भवानी।।
।। जय राजपुताना।।

#जय_राजपूताना #तालिबान का #अफगानिस्तान पर कब्जा !!

ये लाइन भारत में पढ़ने वाले उन लोगो के लिए एक सीख है जो हर बात पर भारत के क्षत्रिय राजाओं को मन भर गालियां देते है उन्हे बुरा भला कहते है,उन्हें अंग्रेजो का गुलाम,मुगलों का गुलाम,तुर्की का गुलाम पता नही क्या क्या !
और कहते हैं उन्होंने केवल गुलामी की हमारे लिए क्या किया !! उनके लिए प्रत्यक्ष उदाहरण है तालिबानी कब्जे के बाद लोगो का अफगानिस्तान छोड़कर भागना !! इसको देखो और महसूस करो की तुम हिंदू थे हिंदू ही हो अभी भी इससे भी क्रूर आतंक झेलकर !
वो कभी इन लोकतंत्र के राजाओं की पॉलिसी की “जान बची तो लाखों पाए” पढ़ाकर भागे नही, उन्होंने अपने क्षत्रिय धर्म के अनुसार प्रजा पुत्र समान होती है और उनकी रक्षा हमारा धर्म है चाहे जैसी भी परिस्थिति हो सामना करे न की छोड़कर भागे !! वे सहते रहे,लड़ते रहे, कटते रहे पर आपको बचाए रखा !!
उनकी जनसंख्या 1% के नीचे पहुंच गई पर तब भी बाहुल्य थे आज भी हैं,उन्होंने इसकी परवाह नही की !! आज बच्चो के बचाने के लिए लोग कानून खरीद लेते है लेकिन उन्होंने आपके लिए अपने उन बच्चो का भी बलिदान दिया जिनकी उम्र हसने खेलने की थी !!
इतनी तबाही झेली की 18 वर्ष तक के बच्चे तो गिनने को भी नही मिल रहे थे पर संघर्ष जारी था किसके लिए,कुछ लोग कह देंगे अपने लिए अपने। बीबी व बच्चो के लिए तो अगर ऐसा होता तो वे उनको जौहर और युद्ध के लिए तैयार ना करते तुम्हे बेचकर खुद को सुरक्षित कर लिए होते और तुम कुछ उखाड़ भी न पाते !! आजकल के बच्चे मुगलों और अंग्रेजों का इतिहास पढ़ कर अपने ही देश के राजाओं का मजाक उड़ाते है उन्हे बुरा भला कहते है जबकि ये उन्ही की देन है की आज आप नाम में गर्व से फलाना ढिकाना लिखते हो सब उन्ही की देन है ।
नही तो आज कलमा पढ़ रहे होते !!
आजादी के 75 साल बाद भी आज तुम जिन नेताओं की गुलामी करते हो उन्होंने भारत में इतना ही विकाश किया है
भारत की आधी इकोनॉमी उन राजाओं के दान किए हुए किलो के टूरिज्म और उनके बनाए गढ़ों से आती है !!
वो दिन दूर नही है जब आप सब अफगानिस्तान की तरह देश छोड़कर भागोगे और आपके आसपास फिर उन्ही के वंशज लड़ते दिखाई देंगे जिनको आज तुम गाली देते हो …… और कहते हो की ये बहुत लड़ाकू होते है लड़ते झगड़ते है छोटी छोटी बातों पर जान से मारने को दौड़ते है इनके अलावा किसी की चलने नही पाती इसका जो नेगेटिव भाव निकालते हो,उसकी सच्चाई ये है इनके इन्ही गुणों के कारण तुम सुरक्षित हो ये जिस भी क्षेत्र में 5% है ना वहा किसी माई के लाल की हिम्मत नही की बाहर से आकर गांव में किसी को हाथ लगा दे वो चाहे जिस जाति,धर्म का हो ……ये इनके स्वाभाविक गुण है
क्षत्रियों के ना पूर्वज कभी ऐसे छोड़कर भागे थे जैसे अफगानिस्तान के भाग रहे है, ना उनके वंशज कभी छोड़कर भागेंगे !!
अभी भी समय है आंख खोलकर देखो और पहचानो इन गंगा जमुनी तहजीब वालो का ये केवल इंतजार कर रहे हैं तो समय का !!
और ये दबे हैं तो सिर्फ उन्ही की वजह से जिनको तुम गाली देते हो,ये दबते है तो सिर्फ उन्ही से जो एक एक मैटर पर गांव फूंक देने की क्षमता रखते है न कि तुम्हारी वजह से जो रोज हम 100 करोड़ है हम 100 करोड़ है की गिनती करते हो !!
राजपूत संख्या आज कम है तो इस बजह से क्योकि इन्होंने अपनी तीन तीन पीढ़ियां इस भारत भूमि पर कुर्बान की हैं हमें हिन्दू बनाये रखने के लिए कुर्बान की हैं नेत्र खोलो और सच से परिचित हो योद्धओं का सम्मान करो..
हमारे ग्रंथो के साथ, इतिहास के साथ छेड़छाड़ हुई थी और अब भी बहुत लोग इसे मिटाने पर तुले, कल को इतिहास ना रहा तो खून पानी हो जाएगा।
अभी ऊर्जा उनका इतिहास पढ़ कर ही मिलती है
Note – यहां ज्ञान देने की कोशिश न करें ,खुद का ही ओवर फ्लो है
जय हिंद
जय भवानी
जय राजपुताना

इतिहासकारों ने हमारे इतिहास को केवल 200 वर्षों में ही समेट कर रख दिया है जबकि उन्होंने हमें कभी नहीं बताया कि एक राजा ऐसा भी

इतिहासकारों ने हमारे इतिहास को केवल 200 वर्षों में ही समेट कर रख दिया है जबकि उन्होंने हमें कभी नहीं बताया कि एक राजा ऐसा भी था जिसकी सेना में महिलाएं कमांडर थी और जिसने अपनी विशाल नौकाओं वाली शक्तिशाली नौसेना की मदद से पूरे दक्षिण-पूर्व एशिया पर कब्जा कर लिया था राजा_राजेन्द्र_चोल_प्रथम (1012-1044) — वामपंथी इतिहासकारों के साजिशों की भेंट चढ़ने वाला हमारे इतिहास का एक महान शासक राजा_राजेन्द्र_चोल, चोल_राजवंश के सबसे महान शासक थे उन्होंने अपनी विजयों द्वारा चोल सम्राज्य का विस्तार कर उसे दक्षिण भारत का सर्व शक्तिशाली साम्राज्य बना दिया था । राजेंद्र चोल एकमात्र राजा थे जिन्होंने न केवल अन्य स्थानों पर अपनी विजय का पताका लहराया बल्कि उन स्थानों पर वास्तुकला और प्रशासन की अद्भुत प्रणाली का प्रसार किया जहां उन्होंने शासन किया।
सन 1017 ईसवी में हमारे इस शक्तिशाली नायक ने सिंहल (श्रीलंका) के प्रतापी राजा महेंद्र पंचम को बुरी तरह परास्त करके सम्पूर्ण सिंहल(श्रीलंका) पर कब्जा कर लिया था ।
जहाँ कई महान राजा नदियों के मुहाने पर पहुँचकर अपनी सेना के साथ आगे बढ़ पाने का हिम्मत नहीं कर पाते थे वहीं राजेन्द्र चोल ने एक शक्तिशाली नेवी का गठन किया था जिसकी सहायता से वह अपने मार्ग में आने वाली हर विशाल नदी को आसानी से पार कर लेते थे ।
अपनी इसी नौसेना की बदौलत राजेन्द्र चोल ने अरब सागर स्थित सदिमन्तीक नामक द्वीप पर भी अपना अधिकार स्थापित किया यहाँ तक कि अपने घातक युद्धपोतों की सहायता से कई राजाओं की सेना को तबाह करते हुए राजेन्द्र प्रथम ने जावा, सुमात्रा एवं मालदीव पर अधिकार कर लिया था । एक विशाल भूभाग पर अपना साम्राज्य स्थापित करने के बाद उन्होंने (गंगई कोड़ा) चोलपुरम नामक एक नई राजधानी का निर्माण किया था, वहाँ उन्होंने एक विशाल कृत्रिम झील का निर्माण कराया जो सोलह मील लंबी तथा तीन मील चौड़ी थी। यह झील भारत के इतिहास में मानव निर्मित सबसे बड़ी झीलों में से एक मानी जाती है। उस झील में बंगाल से गंगा का जल लाकर डाला गया।
एक तरफ आगरा मे शांहजहाँ के शासन के दौरान भीषण अकाल के बावजूद इतिहासकार उसकी प्रशंसा में इतिहास के पन्नों को भरने में लगे रहे दूसरी तरफ जिस राजेन्द्र चोल के अधीन दक्षिण भारत एशिया में समृद्धि और वैभव का प्रतिनिधित्व कर रहा था उसके बारे में हमारे इतिहास की किताबें एक साजिश के तहत खामोश रहीं ।
यहाँ तक कि बंगाल की खाड़ी जो कि दुनिया की सबसे बड़ी खाड़ी है इसका प्राचीन नाम चोला झील था, यह सदियों तक अपने नाम से चोल की महानता को बयाँ करती रही, बाद में यह कलिंग सागर में बदल दिया गया गया और फिर ब्रिटिशर्स द्वारा बंगाल की खाड़ी में परिवर्तित कर दिया गया, वाम इतिहासकारों ने हमेशा हमारे नायकों के इतिहास को नष्ट करने की साजिश रची और हमारे मंदिरों और संस्कृति को नष्ट करने वाले मुगल आक्रांताओं के बारे में पढ़ाया, राजेन्द्र चोल की सेना में कमांडर के पद पर कुछ महिलाएं भी थी, सदियों बाद मुगलों का एक ऐसा वक्त आया जब महिलाएं पर्दे के पीछे चली गईं । हममें से बहुत से लोगों को चोल राजवंश और मातृभूमि के लिए उनके योगदान के बारे में नहीं पता है। मैंने इतिहास के अलग-अलग स्रोतों से अपने इस महान नायक के बारे में जाने की कोशिश की और मुझे महसूस हुआ कि अपने इस स्वर्णिम इतिहास के बारे में आपको भी जानने का हक है।

“हिरादेवी भणइ चण्डाल सूं मुख देखाड्यूं काळ”क्या दुनियां के इतिहास में राष्ट्रभक्ति का ऐसा अतुलनीय अनूठा उदाहरण कहीं नहीं मिल सकता

संवत 1368 (ई.सन 1311) मंगलवार बैसाख सुदी 5. को विका दहिया जालौर दुर्ग के गुप्त भेद अल्लाउद्दीन खिलजी को बताने के पारितोषिक स्वरूप मिली धन की गठरी लेकर बड़ी ख़ुशी ख़ुशी लेकर घर लौट रहा था| शायद उसके हाथ में इतना धन पहली बार ही आया होगा| चलते चलते रास्ते में सोच रहा था कि इतना धन देखकर उसकी पत्नी हीरादे बहुत खुश होगी| इस धन से वह बड़े चाव से गहने बनवायेगी|
और वह भी युद्ध समाप्ति के बाद इस धन से एक आलिशान हवेली बनाकर आराम से रहेगा|
हवेली के आगे घोड़े बंधे होंगे, नौकर चाकर होंगे| अलाउद्दीन द्वारा जालौर किले में तैनात सूबेदार के दरबार में उसकी बड़ी हैसियत समझी जायेगी ऐसी कल्पनाएँ करता हुआ वह घर पहुंचा और धन की गठरी कुटिल मुस्कान बिखेरते हुए अपनी पत्नी हीरादे को सौंपने हेतु बढाई|
अपने पति के हाथों में इतना धन व पति के चेहरे व हावभाव को देखते ही हीरादे Heera De को अल्लाउद्दीन खिलजी की जालौर युद्ध से निराश होकर दिल्ली लौटती फ़ौज का अचानक जालौर की तरफ वापस कूच करने का राज समझ आ गया| और समझती भी क्यों नहीं आखिर वह भी एक क्षत्रिय नारी थी| वह समझ गयी कि उसके पति विका दहिया ने जालौर दुर्ग के असुरक्षित हिस्से का राज अल्लाउद्दीन की फ़ौज को बताकर अपने वतन जालौर व अपने पालक राजा कान्हड़ देव सोनगरा चौहान के साथ गद्दारी कर यह धन पारितोषिक स्वरूप प्राप्त किया है|
उसने तुरंत अपने पति से पुछा- “क्या यह धन आपको अल्लाउद्दीन की सेना को जालौर किले का कोई गुप्त भेद देने के बदले मिला है ?”
विका ने अपने मुंह पर कुटिल मुस्कान बिखेर कर व ख़ुशी से अपनी मुंडी ऊपर नीचे कर हीरादे के आगे स्वीकारोक्ति कर जबाब दे दिया |
यह समझते ही कि उसके पति विका ने अपनी मातृभूमि के लिए गद्दारी की है, अपने उस राजा के साथ विश्वासघात किया है जिसने आजतक इसका पोषण किया था| हीरादे आग बबूला हो उठी और क्रोद्ध से भरकर अपने पति को धिक्कारते हुए दहाड़ उठी- “अरे ! गद्दार आज विपदा के समय दुश्मन को किले की गुप्त जानकारी देकर अपने वतन के साथ गद्दारी करते हुए तुझे शर्म नहीं आई? क्या तुम्हें ऐसा करने के लिए ही तुम्हारी माँ ने जन्म दिया था?
अपनी माँ का दूध लजाते हुए तुझे जरा सी भी शर्म नहीं आई ? क्या तुम एक क्षत्रिय होने के बावजूद क्षत्रिय द्वारा निभाये जाने वाले स्वामिभक्ति धर्म के बारे में भूल गए थे ? विका दहिया ने हीरादे को समझा कर शांत करने की कोशिश की पर हीरादे जैसी देशभक्त क्षत्रिय नारी उसके बहकावे में कैसे आ सकती थी ? पति पत्नी के बीच इसी बात पर बहस बढ़ गयी| विका दहिया की हीरादे को समझाने की हर कोशिश ने उसके क्रोध को और ज्यादा भड़काने का ही कार्य किया| हीरादे पति की इस गद्दारी से बहुत दुखी व क्रोधित हुई| उसे अपने आपको ऐसे गद्दार पति की पत्नी मानते हुए शर्म महसूस होने लगी| उसने मन में सोचा कि युद्ध के बाद उसे एक गद्दार व देशद्रोही की बीबी होने के ताने सुनने पड़ेंगे और उस जैसी देशभक्त ऐसे गद्दार के साथ रह भी कैसे सकती है|
इन्ही विचारों के साथ किले की सुरक्षा की गोपनीयता दुश्मन को पता चलने के बाद युद्ध के होने वाले संभावित परिणाम और जालौर दुर्ग में युद्ध से पहले होने वाले जौहर के दृश्य उसके मन मष्तिष्क में चलचित्र की भांति चलने लगे| जालौर दुर्ग की राणियों व अन्य महिलाओं द्वारा युद्ध में हारने की आशंका के चलते अपने सतीत्व की रक्षा के लिए जौहर की धधकती ज्वाला में कूदने के दृश्य और छोटे छोटे बच्चों के रोने विलापने के दृश्य, उन दृश्यों में योद्धाओं के चहरे के भाव जिनकी अर्धान्ग्नियाँ उनकी आँखों के सामने जौहर चिता पर चढ़ अपने आपको पवित्र अग्नि के हवाले करने वाली थी स्पष्ट दिख रहे थे| साथ ही दिख रहा था जालौर के रणबांकुरों द्वारा किया जाने वाले शाके का दृश्य जिसमें जालौर के रणबांकुरे दुश्मन से अपने रक्त के आखिरी कतरे तक लोहा लेते लेते कट मरते हुए मातृभूमि की रक्षार्थ शहीद हो रहे थे|
एक तरफ उसे जालौर के राष्ट्रभक्त वीर स्वातंत्र्य की बलिवेदी पर अपने प्राणों की आहुति देकर स्वर्ग गमन करते नजर आ रहे थे तो दूसरी और उसकी आँखों के आगे उसका राष्ट्रद्रोही पति खड़ा था
|
ऐसे दृश्यों के मन आते ही हीरादे विचलित व व्यथित हो गई थी| उन विभत्स दृश्यों के पीछे सिर्फ उसे अपने पति की गद्दारी नजर आ रही थी| उसकी नजर में सिर्फ और सिर्फ उसका पति ही इनका जिम्मेदार था| हीरादे की नजर में पति द्वारा किया गया यह एक ऐसा जघन्य अपराध था जिसका दंड उसी वक्त देना आवश्यक था| उसने मन ही मन अपने गद्दार पति को इस गद्दारी का दंड देने का निश्चय किया उसके सामने एक तरफ उसका सुहाग था तो दूसरी तरफ देश के साथ अपनी मातृभूमि के साथ गद्दारी करने वाला गद्दार पति| उसे एक तरफ देश के गद्दार को मारकर उसे सजा देने का कर्तव्य था तो दूसरी और उसका अपना उजड़ता सुहाग| आखिर उस देशभक्त वीरांगना ने तय किया कि -“अपनी मातृभूमि की सुरक्षा के लिए यदि उसका सुहाग खतरा बना है और उसके पति ने देश के प्रति विश्वासघात किया है तो ऐसे अपराध व दरिंदगी के लिए उसकी भी हत्या कर देनी चाहिए| गद्दारों के लिए यही एक मात्र सजा है|”
मन में उठते ऐसे अनेक विचारों ने हीरादे के रोष को और भड़का दिया उसका शरीर क्रोध के मारे कांप रहा था उसके हाथ देशद्रोही को सजा देने के लिए तड़फ रहे थे और हीरादे ने आव देखा न ताव पास ही रखी तलवार उठा अपने गद्दार और देशद्रोही पति का एक झटके में सिर काट डाला|  हीरादे के एक ही वार से विका दहिया का सिर कट कर ऐसे लुढक गया जैसे किसी रेत के टीले पर तुम्बे की बेल पर लगा तुम्बा ऊंट की ठोकर खाकर लुढक जाता है| और एक हाथ में नंगी तलवार व दुसरे हाथ में अपने गद्दार पति का कटा मस्तक लेकर उसने अपने राजा कान्हड़ देव को उसके एक सैनिक द्वारपाल द्वारा गद्दारी किये जाने व उसे उचित सजा दिए जाने की जानकारी दी| कान्हड़ देव ने इस राष्ट्रभक्त वीरांगना को नमन किया| और हीरादे जैसी वीरांगनाओं पर मन ही मन गर्व करते हुए कान्हड़ देव अल्लाउद्दीन की सेना से आज निर्णायक युद्द करने के लिए चल पड़े|
किसी कवि ने हीरादे द्वारा पति की करतूत का पता चलने की घटना के समय हीरादे के मुंह से अनायास ही निकले शब्दों का इस तरह वर्णन किया है-“हिरादेवी भणइ चण्डाल सूं मुख देखाड्यूं काळ” अर्थात्- विधाता आज कैसा दिन दिखाया है कि- “इस चण्डाल का मुंह देखना पड़ा।” यहाँ हीरादेवी ने चण्डाल शब्द का प्रयोग अपने पति वीका दहिया के लिए किया है| इस तरह एक देशभक्त वीरांगना अपने पति को भी देशद्रोह व अपनी मातृभूमि के साथ गद्दारी करने पर दंड देने से नहीं चुकी| देशभक्ति के ऐसे उदाहरण विरले ही मिलते है जब एक पत्नी ने अपने पति को देशद्रोह के लिए मौत के घाट उतार कर अपना सुहाग उजाड़ा हो| पर अफ़सोस हीरादे के इतने बड़े त्याग व बलिदान को इतिहास में वो जगह नहीं मिली जिसकी वह हक़दार थी| हीरादे ही क्यों जैसलमेर की माहेची व बलुन्दा ठिकाने की रानी बाघेली के बलिदान को भी इतिहासकारों ने जगह नहीं दी जबकि इन वीरांगनाओं का बलिदान व त्याग भी पन्नाधाय के बलिदान से कम ना था|
देश के ही क्या दुनियां के इतिहास में राष्ट्रभक्ति का ऐसा अतुलनीय अनूठा उदाहरण कहीं नहीं मिल सकता|

आजकल लोगों की एक सोच बन गई है कि राजपूतों ने लड़ाई तो की, लेकिन वे एक हारे हुए योद्धा थे

राजपूत हूँ, पराजित नहीं
आजकल लोगों की एक सोच बन गई है कि राजपूतों ने लड़ाई तो की, लेकिन वे एक हारे हुए योद्धा थे, जो कभी अलाउद्दीन से हारे, कभी बाबर से हारे, कभी अकबर से, कभी औरंगज़ेब से। क्या वास्तव में ऐसा ही है ? यहां तक कि राजपूत समाज में भी ऐसे कईं राजपूत हैं, जो महाराणा प्रताप, पृथ्वीराज चौहान आदि योद्धाओं को महान तो कहते हैं, लेकिन उनके मन में ये हारे हुए योद्धा ही हैं।महाराणा प्रताप के बारे में ऐसी पंक्तियाँ गर्व के साथ सुनाई जाती हैं :- “जीत हार की बात न करिए, संघर्षों पर ध्यान करो”, “कुछ लोग जीतकर भी हार जाते हैं, कुछ हारकर भी जीत जाते हैं”। असल बात ये है कि हमें वही इतिहास पढ़ाया जाता है, जिनमें हम हारे हैं।मेवाड़ के राणा सांगा ने अनेक युद्ध लड़े, जिनमें मात्र एक युद्ध में पराजित हुए और आज उसी एक युद्ध के बारे में दुनिया जानती है, उसी युद्ध से राणा सांगा का इतिहास शुरु किया जाता है और उसी पर ख़त्म। राणा सांगा द्वारा लड़े गए खंडार, अहमदनगर, बाड़ी, गागरोन, बयाना, ईडर, खातौली जैसे युद्धों की बात आती है तो शायद हम बता नहीं पाएंगे और अगर बता भी पाए तो उतना नहीं जितना खानवा के बारे में बता सकते हैं।
भले ही खातौली के युद्ध में राणा सांगा अपना एक हाथ व एक पैर गंवाकर दिल्ली के इब्राहिम लोदी को दिल्ली तक खदेड़ दे, तो वो मायने नहीं रखता, बयाना के युद्ध में बाबर को भागना पड़ा हो तब भी वह गौण है। मायने रखता है तो खानवा का युद्ध जिसमें मुगल बादशाह बाबर ने राणा सांगा को पराजित किया।सम्राट पृथ्वीराज चौहान की बात आती है तो, तराईन के दूसरे युद्ध में गौरी ने पृथ्वीराज चौहान को हराया। तराईन का युद्ध तो पृथ्वीराज चौहान द्वारा लडा गया आखिरी युद्ध था, उससे पहले उनके द्वारा लड़े गए युद्धों के बारे में कितना जानते हैं हम ? इसी तरह महाराणा प्रताप का ज़िक्र आता है तो हल्दीघाटी नाम सबसे पहले सुनाई देता है। हालांकि इस युद्ध के परिणाम शुरु से ही विवादास्पद रहे, कभी अनिर्णित माना गया, कभी अकबर को विजेता माना तो हाल ही में महाराणा को विजेता माना। बहरहाल, महाराणा प्रताप ने गोगुन्दा, चावण्ड, मोही, मदारिया, कुम्भलगढ़, ईडर, मांडल, दिवेर जैसे कुल 21 बड़े युद्ध जीते व 300 से अधिक मुगल छावनियों को ध्वस्त किया।
महाराणा प्रताप के समय मेवाड़ में लगभग 50 दुर्ग थे, जिनमें से तकरीबन सभी पर मुगलों का अधिकार हो चुका था व 26 दुर्गों के नाम बदलकर मुस्लिम नाम रखे गए, जैसे उदयपुर बना मुहम्मदाबाद, चित्तौड़गढ़ बना अकबराबाद। फिर कैसे आज उदयपुर को हम उदयपुर के नाम से ही जानते हैं ?… ये हमें कोई नहीं बताता। असल में इन 50 में से 2 दुर्ग छोड़कर शेष सभी पर महाराणा प्रताप ने विजय प्राप्त की थी व लगभग सम्पूर्ण मेवाड़ पर दोबारा अधिकार किया था। दिवेर जैसे युद्ध में भले ही महाराणा के पुत्र अमरसिंह ने अकबर के काका सुल्तान खां को भाले के प्रहार से कवच समेत ही क्यों न भेद दिया हो, लेकिन हम तो सिर्फ हल्दीघाटी युद्ध का इतिहास पढ़ेंगे, बाकी युद्ध तो सब गौण हैं इसके आगे। महाराणा अमरसिंह ने मुगल बादशाह जहांगीर से 17 बड़े युद्ध लड़े व 100 से अधिक मुगल चौकियां ध्वस्त कीं, लेकिन हमें सिर्फ ये पढ़ाया जाता है कि 1615 ई. में महाराणा अमरसिंह ने मुगलों से संधि की। ये कोई नहीं बताएगा कि 1597 ई. से 1615 ई. के बीच क्या क्या हुआ।
लोगों का कहना है कि राजपूत इतने ही वीर थे तो ब्रिटिशकाल में अधीनता स्वीकार क्यों की। अरे भाई, ब्रिटिशकाल से भारत का इतिहास शुरू होता है क्या ? 7वीं से 12वीं सदी का काल राजपूत काल कहलाता है, उस समय की बात क्यों नहीं करते ?
सम्राट पृथ्वीराज चौहान के पूर्वज आनाजी ने शत्रुओं का इतना लहू बहाया कि उसे साफ करने के लिए तालाब बनवाना पड़ा। विग्रहराज चतुर्थ तो चौहान वंश के परमप्रतापी शासक हुए, जिनके समय उन जैसा योद्धा कोई दूसरा नहीं था। लेकिन राजपूतों के गौरवशाली इतिहास से जले भुने लोग बस ब्रिटिशकाल का रोना रोते हैं।
महाराणा कुम्भा ने 32 दुर्ग बनवाए, कई ग्रंथ लिखे, विजय स्तंभ बनवाया, ये हम जानते हैं, पर क्या आप उनके द्वारा लड़े गए गिनती के 4-5 युद्धों के नाम भी बता सकते हैं ? महाराणा कुम्भा ने आबू, मांडलगढ़, खटकड़, जहांजपुर, गागरोन, मांडू, नराणा, मलारणा, अजमेर, मोडालगढ़, खाटू, जांगल प्रदेश, कांसली, नारदीयनगर, हमीरपुर, शोन्यानगरी, वायसपुर, धान्यनगर, सिंहपुर, बसन्तगढ़, वासा, पिण्डवाड़ा, शाकम्भरी, सांभर, चाटसू, खंडेला, आमेर, सीहारे, जोगिनीपुर, विशाल नगर, जानागढ़, हमीरनगर, कोटड़ा, मल्लारगढ़, रणथम्भौर, डूंगरपुर, बूंदी, नागौर, हाड़ौती समेत 100 से अधिक युद्ध लड़े व अपने पूरे जीवनकाल में किसी भी युद्ध में पराजय का मुंह नहीं देखा।
चित्तौड़गढ़ दुर्ग की बात आती है तो सिर्फ 3 युद्धों की चर्चा होती है :- 1) अलाउद्दीन ने रावल रतनसिंह को पराजित किया 2) बहादुरशाह ने राणा विक्रमादित्य के समय चित्तौड़गढ़ दुर्ग जीता 3) अकबर ने महाराणा उदयसिंह को पराजित कर दुर्ग पर अधिकार किया। क्या इन तीन युद्धों के अलावा 1300 वर्षों के इतिहास में चित्तौड़गढ़ पर कभी कोई हमले नहीं हुए ?
शेखावाटी के महाराव शेखाजी, डूंगजी, जवाहर जी का नाम इतिहास के पन्नों पर स्वर्णाक्षरों में अंकित है। जयपुर नरेश सवाई जयसिंह द्वितीय 18वीं सदी के भारत के महानतम वैज्ञानिकों में से एक थे। सवाई जयसिंह की योग्यताओं पर अलग से एक ग्रंथ लिखा जा सकता है।
गुजरात में सोलंकी राजा मूलराज द्वितीय की माता नायकी देवी ने मुहम्मद गौरी की फ़ौज को परास्त कर दिया था। गुजरात के राजा भीमदेव परमप्रतापी शासक हुए। सोमनाथ मंदिर की रक्षार्थ अनेक राजपूतों ने अपने प्राणों के बलिदान दिए थे। गुजरात के राजपूतों ने अकबर के विरुद्ध भूचरमोरी का भयंकर युद्ध लड़ा था। मारवाड़ के राव जोधाजी के संघर्ष ने कुछ नहीं से लेकर जोधपुर बसाने तक का सफर तय किया। राव मालदेव जी ने मारवाड़ में अनेक निर्माण कार्य करवाए। राव चंद्रसेन जी आजीवन स्वतंत्रता के लिए संघर्षरत रहे। वीरवर दुर्गादास जी राठौड़ के 30 वर्षीय संघर्ष ने तो मारवाड़ के इतिहास को ही अमर कर दिया।
इस तरह राजपूतों ने जो युद्ध हारे हैं, इतिहास में हमें वही पढ़ाया जाता है। बहुत से लोग हमें नसीहत देते हैं कि तुम राजपूतों के पूर्वजों ने सही रणनीति से काम नहीं लिया, घटिया हथियारों का इस्तेमाल किया इसीलिए हमेशा हारे हो। अब उन्हें किन शब्दों में समझाएं कि उन्हीं हथियारों से हमने अनगिनत युद्ध जीते हैं, मातृभूमि का लहू से अभिषेक किया है, सैंकड़ों वर्षों तक विदेशी शत्रुओं की आग उगलती तोपों का अपनी तलवारों से सामना किया है। साथ ही सभी भाइयों से निवेदन करूंगा कि आप अपने महापुरुषों के बारे में वास्तविक इतिहास पढिए, ताकि आने वाली पीढ़ियां हमें वही समझे, जो वास्तव में हम थे।
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इस महल का वह वीर जो मात्र 23 साल की उम्र के राष्ट्र के लिए मर मिटा एक गुमनाम हिन्दू योद्धा की वीर गाथा

इस महल का वह वीर जो मात्र 23 साल की उम्र के राष्ट्र के लिए मर मिटा एक गुमनाम हिन्दू योद्धा की वीर गाथा
यह कहानी उस समय की है जब बंगाल में अफगान एवं तुर्को की सफाई का कार्य जोर शोर से चालू था । यह मात्र बंगाल की सफाई नही थी, उस समय बिहार, झारखंड, बांग्लादेश तथा म्यांमार तक का क्षेत्र बंगाल सल्तनत का हिस्सा ही हुआ करता था ।आमेर के राजाओ में 1576 ईस्वी में बंगाल अभियान शुरू किया था, वह 23 वर्ष में पूर्ण हो पाया । बंगाल में 400 वर्षो से इस्लामिक सत्ता कायम थी, उसे रातों रात तो नही उखाड़ा जा सकता था ।बंगाल उस समय हिन्दू अत्याचार की राजधानी हुआ करता था, जब बंगाल सल्तनत का राज उसपर हुआ करता था । राजा मानसिंह ने अपने 23 साल के पुत्र दुर्जनसिंहजी को बंगाल में हिंदुओं की रक्षा के लिए नियुक्त किया था ।
कटेरा के पास पठानो की भीड़ ने दुर्जनसिंह एवं उनकी सेना पर भीड़ की तरह ही आक्रमण कर दिया ( पत्थर – आदि ही, जैसे कश्मीर में होता है )
इस युद्ध मे भारत के वीर सपूत ओर एक राज्य के राजकुमार दुर्जनसिंह जी मात्र 23 साल की उम्र में वीरगति को प्राप्त हो गए । इशाक खान एवं मूसा खान की पठान सेना के नेतृत्व में बंगाली मुसलमानो ने दुर्जनसिंह पर आक्रमण किया था । यह घटना 1597 ईस्वी में हुई ।राजा मानसिंह की पहली संतान की बलिदान की कहानी आपने पढ़ी, राजा मानसिंह के एक एक पुत्र देश धर्म हिंदुओ के लिए ऐसे ही कुर्बान होते रहें ।महावीर बलिदानी जगतसिंहजी कहानी फिर कभी । काल ने इस सुरमा को अल्पसमय मे भरी जवानी में ग्रस लिया, वरना हम आज ही विश्वगुरु होते । 12 साल की उम्र ही जगतसिंह ने पहला युद्ध जीत लिया था ।।
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