नई दिल्ली : उत्तर प्रदेश की जेलों में कैद 459 बच्चों पर पंक्तियां सही साबित होती हैं। जिनका बचपन जेलों में कैद है। नवजात से लेकर छह वर्ष की आयु तक के यह बच्चे अपने बड़ों के गुनाहों की सजा काटने को मजबूर हैं। वह बाहर की दुनिया और खेलों के मैदान से वंचित हैं। उनकी दुनिया जेल की चहारदीवारी के अंदर तक सीमित है। बाहर की दुनिया और वहां के लोग उनके लिए एक सपने की तरह हैं।
उत्तर प्रदेश की जेलों के 31 दिसंबर 2020 तक के आंकड़ों के मुताबकि 1148 महिला सजायाफ्ता बंदी निरुद्ध हैं। इनके साथ 72 बच्चे भी बेगुनाह होने के बावजूद वहां रहने को मजबूर है। वहीं, विचाराधीन 3497 महिला बंदियों के साथ 387 बच्चे भी निरुद्ध हैं। इस तरह कुल 459 बच्चे 31 दिसंबर तक जेलों में थे। नियमानुसार छह वर्ष की आयु तक के बच्चे जेल में अपनी मां के साथ रह सकते हैं। परिवार में कोई जिम्मेदार नहीं होने के चलते इन बच्चों को अपनी मां ओं के साथ जेल मे रहना पड़ रहा है।
आगरा जिला जेल ने पेश की मिसाल
नौनिहालों के बेहतर भविष्य के आगरा जिला जेल अधीक्षक शशिकांत मिश्रा ने तीन वर्ष पहले सकारात्मक शुरूआत की। उन्होंने शहर की समाज सेवी संस्थाओं की मदद से महिला बंदियों के छह बच्चों का शहर के प्रतिष्ठित अंग्रेजी माध्यम के स्कूल में दाखिला कराया। स्कूल ने बच्चों को शिक्षा के अधिकार के तहत अपने यहां प्रवेश दिया। वहीं संस्थाओं ने बच्चों की ड्रेस और कापी-किताबों की जिम्मेदारी ली। इसने अन्य महिला बंदियों को भी अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए प्रेरित किया।
- उत्तर प्रदेश की जेलों में 1148 सजायाफ्ता महिला बंदी निरुद्ध हैं।
- सजायाफ्ता महिला बंदियों के साथ 72 बच्चे हैं।
- इनमें 34 लड़कियां और 38 बालक हैं।
- यूपी की जेलों में निरुद्ध विचाराधीन महिला बंदियों की संख्या 3387 है।
- इनके साथ रहने वाले बच्चों की संख्या 387 है।
- इनमें 196 लड़कियां और 191 बालक हैं।
- अधिकांश महिला बंदी अपने बच्चों के साथ दहेज के लिए हत्या के आरोप में निरुद्ध हैं।