PM मोदी : वेंकैया नायडू-भगवान के बाद अटल जी को मानता था, मगर कभी पैर नहीं छुए
सद भवन के जी एम सी बालयोगी सभागार में आयोजित विदाई समारोह को संबोधित करते हुए वेंकैया नायडू...
DESK : निवर्तमान उपराष्ट्रपति एवं राज्यसभा के सभापति एम वेंकैया नायडू ने राज्यसभा के सदस्यों से सोमवार को विदाई ली। संसद भवन के जी एम सी बालयोगी सभागार में आयोजित विदाई समारोह को संबोधित करते हुए वेंकैया नायडू ने कहा कि लोकतंत्र में बहुमत हमेशा प्रबल होता है लेकिन विपक्ष का सम्मान रहना चाहिए और सरकार को उन्हें आगे आने के लिए अनुमति देनी चाहिए। अंतत: बहुमत लोकतंत्र में फैसला करता है। उन्होंने कहा, ‘‘मैं पद्म पुरस्कार के बारे में एक बात से खुश हूं और कैसे सरकार ने गैर-मान्यता प्राप्त लोगों को मान्यता दी राजनीति में कोई शॉर्ट कट नहीं होता।
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अपने जीवन में कभी किसी के पैर नहीं छुए : नायडू ने कहा कि वह भगवान के बाद सबसे ज्यादा अटलजी और आडवाणी जी को मानते थे, लेकिन कभी भी उनके पैर नहीं छुए। हालांकि, उन दोनों के लिए मेरे मन में सम्मान और लगाव वैसा ही रहा।उन्होंने आगे कहा कि मैं यह बात इसलिए कह रहा हूं क्योंकि कड़ी मेहनत से आप सफलता के सोपान तय कर सकते हैं, आपकी मेहनत की आपको सफलता दिलाएगी।
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तांगे पर बैठकर किया था प्रचार : पुराने संस्मरण सुनाते हुए नायडू ने कहा कि मैंने अपने जीवन में कभी किसी के पैर नहीं छुए हैं। वेंकैया नायडू ने बताया कि जब शहर में पार्टी के बड़े नेता आते थे तो मैं पोस्टर चिपकाता था। रात में दीवारों पर लिखा करता था। उन्होंने कहा कि जब हमारे यहां अटल बिहारी वाजपेयी की सभा हुई तब मैंने तांगा पर बैठकर प्रचार किया और पोस्टर लगाए। मैं पार्टी में सामान्य कार्यकर्ता से एमएलए, मंत्री से लेकर पार्टी का अध्यक्ष तक बना, ये हमारे लोकतंत्र की खूबसूरती है। उन्होंने संसद सदस्यों से कड़ी मेहनत करने के लिए कहा, इसके साथ ही लोगों से मिलने और उनकी बातें सुनने की अपील की।
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उपराष्ट्रपति बनने के बारे में सुना तो आंसू आ गए : उन्होंने पांच साल पहले पीएम नरेंद्र मोदी के उस फोन कॉल का भी जिक्र किया, जिसमें पार्टी की तरफ से नायडू को उपराष्ट्रपति के लिए चुना गया था। नायडू ने कहा कि जिस दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फोन कर बताया कि मुझे उपराष्ट्रपति के लिए चुना जा रहा है तब मेरी आंखों में आंसू आ गए। ये आंसू सिर्फ इस बात पर आ रहे थे कि मुझे अपनी पार्टी छोड़नी पड़ेगी। उपराष्ट्रपति ने कहा, ‘‘मैं एक तरफ बहुत खुश हूं और दूसरी तरफ मुझे लगता है, मैं आप सभी को याद कर रहा हूं क्योंकि मैं 10 अगस्त से सदन की अध्यक्षता करने की स्थिति में नहीं रहूंगा। उन्होंने भारतीय संस्कृति और परंपरा को लेकर कहा कि मैं हमेशा सदन का अभिवादन करते हुए ‘नमस्ते’ कहा करता था क्योंकि भारतीय परंपरा और संस्कृति में बहुत कुछ है।
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आगे बढ़ रहा है भारत : आपमें धैर्य होना चाहिए और मेहनत करनी चाहिए। लोगों के पास जाओ, उन्हें जागरूक करो और दूसरों की सुनो। तुष्टिकरण किसी का नहीं और सम्मान सबका।” उन्होंने कहा कि सभापति के रूप में उन्होंने सभी सदस्यों को मौका दिया चाहे वे पूरब के हों, पश्चिम के, उत्तर के, दक्षिण के या पूर्वोत्तर के। उन्होंने कहा कि उच्च सदन होने के नाते हमारी बड़ी जिम्मेदारी है। पूरी दुनिया हमें देख रही है। भारत आगे बढ़ रहा है। मैं सदन में शालीनता, गरिमा और मर्यादा बनाए रखने की अपील करता हूं ताकि सदन की छवि और सम्मान बना रहे।