श्रीश उपाध्याय/मुंबई: हाल ही में हुए लोकसभा चुनावों के नतीजों को देखकर एक बात तो साफ़ है कि भाजपा, अजित पवार के माध्यम से शरद पवार को जिस प्रकार की शिकस्त देने का सपना देख रही थी वो सपना, सपना बन कर ही रह गया है.
लोकसभा चुनाव के बाद शिवसेना के नतीजों को देखकर साफ़ हो गया है कि अगर शिवसेना को तोड़ा न गया होता तो भाजपा के लिए 9 के आंकड़े तक पहुंचना भी मुश्किल होता. इसलिए शिवसेना को तोड़ने की भाजपा की कोशिश काफी हद तक सफल रही. एकनाथ शिंदे ने भी शिवसेना की कमान संभालने के बाद पहली बार हुए लोकसभा चुनावों में 7 लोकसभा सीटे झटक ली और साबित किया कि ठाकरे नाम के सहारे के बगैर भी शिवसेना का अस्तित्व है.
लेकिन इसी फॉर्मूले को राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी पर लागू करना भाजपा को काफी महँगा प़डा है. इसका मुख्य कारण रहा कि शिवसेना टूटने के बाद शिवसेना के मतदाता एकनाथ शिंदे की कोशिशों से भाजपा की ओर आए लेकिन अजित पवार, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के मतदाताओं को भाजपा की ओर लाने में असमर्थ रहे. दूसरी तरह अजित पवार के बगैर भी शरद पवार ने 8 सीटे जीत कर साबित किया है कि अभी भी उनका मतदाता उनके साथ ही है.
राजनीतिक जानकारों के अनुसार भाजपा का कोर मतदाता भी अजित पवार से गठबंधन करने पर ना सिर्फ नाराज हुआ अपितु मतदान के समय तठस्त की भूमिका निभाई, भाजपा के प्रति नाराजगी जाहिर की और नतीजा सबके सामने है.
अजित पवार की भ्रष्ट छवी आगामी चुनाव में भी भाजपा के लिए नुकसानदायक हो सकती है. लोकसभा चुनावी नतीजों की बात करें तो एक बात एकदम स्पष्ट है कि अजित पवार को साथ लेने पर भी मुस्लिम मतदाता भाजपा की ओर नहीं आए हैं, जबकि भाजपा के कोर मतदाता भाजपा की ओर उदासीन हुए हैं. इसलिए विधानसभा चुनावों में तो अजित पवार से भाजपा को नुकसान पहुंचना संभव ही है. दूसरी तरफ उबाठा के साथ अपने कोर मतदाताओं का बड़ा तबका है, उन्हें कॉंग्रेस और राष्ट्रवादी कॉंग्रेस के कारण मुसलमानों का पूरा सहयोग मिल रहा है.
हिन्दू वोटर उदासीन है नतीजतन मतदान में पूरी ताकत से नहीं आएगा. दूसरी तरफ मुस्लिम मतदाता एकजुट है और बड़ी तादात में मतदान में हिस्सा लेगा. पार्टी सूत्रों की माने तो भाजपा के वरिष्ठ नेताओ ने भी अजित पवार को साथ लेने को राजनीतिक गलती माना हैं.
भाजपा के इशारों पर ही अजित पवार ने अपने चाचा शरद पवार की पार्टी पर कब्जा जमाया है. अब अनुपयोगी होने के बावजूद भाजपा जगहसाई के डर से अजित पवार से पीछा नहीं छुड़ा पा रही है.
ऐसे हालात मे कहना गलत नहीं होगा कि भाजपा के लिए अजित पवार गले की हड्डी बन गए है.