
Joshimath Sinking: अब कौन मुंतज़िर है हमारे लिए वहां, शाम आ गई है लौट के घर जाएं हम तो क्या. मुनीर नियाजी का ये शेर जोशीमठ में रहने वालों उन परिवारों पर बिलकुल सटीक बैठता है, जिन्हें अपने घरों को छोड़ना पड़ा है. छोड़ना भी ऐसा कि अब दोबारा वहां जाना नसीब नहीं होगा. क्योंकि इस घर में वो आफत पहुंच गई है जिसका साया पूरे शहर को डरा रहा है. जोशीमठ में हो रहे भू धंसाव की चपेट में आए इन घरों में रहने वालों को प्रशासन हटा रहा है.
लोग एक घर बनाने में पूरी जिंदगी लगा देते हैं. ऐसे में अचानक उन्हें घर छोड़ना पड़े तो जो बीतती है उसका सिर्फ अंदाजा ही लगाया जा सकता है. जोशीमठ के लोगों का दर्द भी कुछ ऐसा ही है. शहर के कई घरों में दरारें हैं. ये दरारें बढ़ती जा रही हैं, तो अब घर छोड़ना पड़ रहा है.
सामान छोड़कर जा रहे लोग
घर छोड़ने से पहले लोग ज्यादा से ज्यादा सामान समेट लेना चाहते हैं, लेकिन समेटें भी तो कैसे. जहां जाना है वहां भी तो जगह नहीं है. जोशीमठ में रहने वाले लोगों से जो उनका हाल पूछता है उसे यही देखने और सुनने को मिलता है.
महिला ने की ये मांग
महिला का कहना है कि उसे समझ नहीं आ रहा है कि वह क्या करे. बच्चों पर खतरे का भी डर सताता है. महिला की मांग है कि सरकार जिन लोगों को हटा रही है, उन्हें कहीं और रखे. उसने बताया कि अभी लोगों को जोशीमठ में ही दूसरी जगह रखा जा रहा है. जहां जा रहे हैं वहां भी वही खतरा है.
महिला ने प्रधानमंत्री से अपील करते हुए कहा कि यही कहना चाहूंगी कि देखिए कितनी परेशानी में जनता है. अगर जनता ही नहीं रहेगी तो किस पर आप राज करेंगे.
घर छोड़ने का दर्द
एक अन्य महिला ने बताया कि उसे पता नहीं है कि वह कहां जाएगी, कहां रहेगी. महिला ने बताया कि उसकी 55 साल की उम्र हो गई है, कभी ऐसा नहीं देखा. उसने कहा लोग कहते हैं जोशीमठ स्वर्ग है. ये स्वर्ग खत्म हो रहा है. “हमने सोचा था घर बनाया है, इसमें ही मरेंगे. अब तो घर ही खत्म हो रहा है.” ये कहते हुए महिला रो पड़ी. उनका ये भी कहना है कि उन्हें तो बोलना भी नहीं आता तो नेताओं से क्या कहें.