क्या यूपी में चंद्रशेखर आज़ाद बने दलितों के मसीहा ?
बसपा सुप्रीमों मायावती ने आजाद समाज पार्टी के संयोजक चंद्रशेखर को दलितों के नेता का तमगा ना देते हुए सालों पहले ही उनसे किनार कर लिया था.
बसपा सुप्रीमों मायावती ने आजाद समाज पार्टी के संयोजक चंद्रशेखर को दलितों के नेता का तमगा ना देते हुए सालों पहले ही उनसे किनार कर लिया था. इसके बाद खुद चंद्रशेखर ने सपा प्रमुख अखिलेश यादव से भी लोकसभा चुनाव में एक साथ लड़ने और इंण्डिया गठबंधन को मजबूत करने की पेशकश की थी. लेकिन उन्होंने भी आजाद की बातों को हलके में लेते हुए रावण को दरकिनार कर दिया. इस विश्वाशघात के बाद भी अपनी आजाद सामाद पार्टी के बूते चुनाव में उतरकर चंद्रशेखर ने नगीना लोकसभा सीट से दमदार जीत हासिल की. और संदन में अपनी उपस्थिती दर्ज करवाकर अपने तमाम विरोधीयों के दांत खट्टे कर दिये. रावण ने अपने दम पर लोकसभा चुनाव जीतकर ना केवल इतिहास रचा बल्कि अपनी ऐतिहासिक जीत से देश में दशकों से चली आ रही दलित सियासत के लिए एक बड़ा संदेश भी दे दिया है.
लोकसभा चुनावों से पहले चंद्रशेखर की बढ़ती लोकप्रियता को मद्देनजर रखते हुए खुद बसपा सुप्रीमो मायावती ने नगीना पर फोकस किया साथ ही उन्होंने अपने भतीजे आकाश आनंद को स्टार प्रचारक बनाकर सबसे पहले नगीना भेजा. आकाश ने अपने चुनाव प्रचार की शुरुआत नगीना से ही की थी. बहनजी ने खुद भी बिजनौर जिले में सभाएं कर चंद्रशेखर का नाम लिए बगैर तमाम निशाने रावण पर साधे लेकिन बहनजी का एक भी तीर निशाने पर ना लग पाया सब चूक गए, और चंद्रशेखर रावण पर सर पर नगीना नरेश का ताज सज गया.
खैर वो लोकसभा चुनावों की बात थी जो अब जा चुके है, हमआज बात कर रहे हैं यूपी में 10 सीटों पर होने जा रहे
विधानसभा उपचुनावों की. कि क्या चंद्रशेखर नगीना वाला समीकरण इस 10 सीटों पर भी बना पाएंगे, क्या जो दलित मुसलमान फार्मूला कभी कांशीराम,और बाद में मायावती के लिए सबसे कारगर साबिक था उसके अब चंद्रशेखर फिर से यूपी की राजनीति में लागू कर पाएंगे. ये कुछ ऐसे सवाल हैं जिनकी हर राजनैतिक पंडित इन दिनों चर्चा कर रहा है. संस्कृत में एक श्लोक है. शठे शाठ्यम समाचरेत्, इसका अर्थ ये होता है कि जो आपके साथ जैसा करे आप भी उसके साथ वैसा ही करो. जैसे लोकसभा चुनाव में राणव की पार्टी को इंण्डिया गठबंधन और खासकर अखिलेश यादव ने जिस तरह नंजरअंदाज किया था. ठीक उसी तरह अब चंद्रशेखर दूसरो को बिल्कुल भी भाव नहीं दे रहे हैं. इसलिए इन उपचुनावों में चंद्रशेखर ने किसी भी पार्टी से गठबंधन करने से साफ साफ इंकार कर दिया है.
उनका कहना है कि उनका गठबंधन जनता से है और इसी के सहारे यूपी में उपचुनाव लड़े जाएंगे जनता ने इन सभी पार्टियों को देख लिया है और उन पार्टियों से जनता का भरोसा उठ चुका है उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी इस चुनाव में नए लोगों को मौका देगी चंद्रशेखर लगातार दलित मुस्लिम आदिवासियों के लिए आवाज उठा रहे हैं. नगीना लोकसभा सीट से चुनाव जीतने के फौरन बाद ही चंद्रशेखर आजाद ने यूपी की 10 विधानसभा सीटों पर होने वाले चुनाव में उतरने की घोषणा कर दी थी अब तो चार विधानसभा सीट सीटों के लिए चुनाव प्रभारी भी नियुक्त किए जा चुके हैं आपको बता दें कि उत्तर प्रदेश में करहल, मिल्कीपुर, कटेहरी, कुंदर की गाजियाबाद खैर, मीरापुर, और सीसामऊ विधानसभा सीट पर उपचुनाव होना है इसमें से चार सीटें यानी कि खैर मीरापुर कुंदरकी और गाजियाबाद सदर पर आजाद समाज पार्टी के चुनाव प्रभारियों की नियुक्ति हो चुकी है
खास बात यह है कि चंद्रशेखर आजाद ने अपने प्रतिद्वंदी बीएसपी नेता मायावती की तरह ही उपचुनाव में किसी भी राजनीतिक दल के साथ गठबंधन करने से इंकार कर दिया है अव्वल तो दोनों दलों की तैयारी सभी सीटों पर कड़े मुकाबले की होगी लेकिन मिल्कीपुर जैसी सीट भी है जहां दिलचस्प लड़ाई देखने को मिल सकती है लोकसभा चुनाव से पहले मिल्कीपुर की पहचान सिर्फ इतनी थी कि वहां
के विधायक यूपी विधानसभा में अखिलेश यादव के बगल में बैठते थे और अब वहीं और अब वही अवधेश प्रसाद सांसद बन चुके हैं और लोकसभा में अखिलेश यादव और राहुल गांधी के बीच में बैठे नजर आएंगे जाहिर है कि मायावती की भी कोशिश होगी कि मिल्कीपुर सीट समाजवादी पार्टी से छीन लेनी चाहिए और चंद्रशेखर आजाद भी ऐसी ही रणनीति अपनाने वाले हैं और ऐसा ही मुकाबला उन सीटों पर भी देखने को मिल सकता है जहां मुस्लिम आबादी का दबदबा है
लेकिन मायावती बीएसपी के चुनाव प्रदर्शन के बाद पहले ही कह चुकी है कि आगे से मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट देने के बारे में नए सिरे से विचार किया जाएगा लेकिन चंद्रशेखर आजाद बहुजन के बराबर ही मुस्लिमों के लिए आवाज उठा रहे हैं जिस तेजी से चंद्रशेखर आजाद का यूपी में राजनीतिक उभार हुआ है करीब-करीब उसी स्पीड में मायावती का वोट बैंक भी उनसे दूर छिटक नजर आ रहा है ताजा उदाहरण तो नगीना लोकसभा सीट ही है जहां बसपा का सांसद होते हुए भी रावण ने अपनी जीत पक्की कर ली और वहा के पूरे दलित समाज का सपोर्ट हासिल कर लिया
इसको चंद्रशेखर का दबदबा ही कहा जाएगा है जो मायावती ने भी भतीजे आकाशा आनंद को फटाफट
मैच्योर बताते हुए काम पर लगा दिया लेकिन तमाम संसाधनों के बावजूद चंद्रशेखर से मुकाबला मुश्किल होता हुआ नजर आ रहा है
क्योंकि चंद्रशेखर उन मुद्दों पर ही लोगों की उम्मीद बन रहे हैं जिन पर मायावती हमेशा लोगों को निराश करती हुई नजर आई हैं.अब तो देखना दिलचस्प ही होगा कि उपचुनाव में दलित किसके पालेमें जाएगा क्या रावण कुछ ऐसा करेंगे जो सबको चौका देगा या बहनजी कुछ कमाल कर दिखाएंगी