President: द्रौपदी मु्र्मू को राष्ट्रपति बनाने के पीछे पीएम मोदी का बड़ा मास्टर स्ट्रोक, जानिए क्या है राजनीति
द्रौपदी मुर्मू देश की पहली महिला आदिवासी राष्ट्रपति के तौर पर शपथ ले चुकी हैं...
DESK : द्रौपदी मुर्मू देश की पहली महिला आदिवासी राष्ट्रपति के तौर पर शपथ ले चुकी हैं. वो जमीन से जुड़ी हैं, उनका लंबा राजनीतिक अनुभव है और छवि बिल्कुल बेदाग है. आजादी के बाद पहला मौका है जब कोई आदिवासी समुदाय का व्यक्ति राष्ट्रपति के पद पर पहुंचा है. द्रौपदी मुर्मू को देश के सर्वोच्च पद पर बैठाकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जो दांव खेला है वो अहम है. वो जानते हैं कि एक आदिवासी महिला को देश के सर्वेच्च पद पर बैठाने का असर न केवल आदिवासी समुदाय पर होगा बल्कि उसके साथ-साथ देश की महिलाओं के एक बड़े तबके पर भी होगा. 2024 के लोकसभा चुनाव और उससे पहले होने वाले 18 राज्यों के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने मुर्मू को राष्ट्रपति बनाकर देश के एक बड़े वोटबैंक को साधने की कोशिश की है.
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बीजेपी की देश के 9 % ST वोटों पर नजर
द्रौपदी मुर्मू संथाल समुदाय से आती हैं. देश में भील और गोंड के बाद संथाल जनजाति की आबादी आदिवासियों में सबसे ज़्यादा है. देश में कई राज्यों की कई सीटों पर आदिवासी वोटर्स निर्णायक हैं. ऐसे में बीजेपी ने द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति पद तक पहुंचाकर अनुसूचित जनजाति के वोटर्स को अपनी ओर खींचने की बड़ी कोशिश की है. मुर्मू को राष्ट्रपति बनाने से देश के करीब 9 फीसदी अनुसूचित जनजाति के वोटर्स को बड़ा संदेश जाएगा. इस कदम के जरिए बीजेपी ने संदेश दे दिया है कि वो आदिवासी समाज की सबसे बड़ी हितैषी है. दूसरा ये कि पीएम मोदी वंचित तबके के लिए काम करते हैं. साथ ही ये भी संदेश जाएगा कि मुख्य धारा से कटे समाज को BJP हिस्सेदारी देती है.
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द्रौपदी मुर्मू के गृह राज्य ओडिशा, इससे लगे झारखंड और पूर्वोत्तर के राज्यों में शेड्यूल ट्राइब्स के लोगों की तादाद बहुत ज्यादा है. बीजेपी अब इन लोगों के बीच अपनी पैठ और मजबूत करना चाहती है. साथ ही देश के दूसरे राज्यों के आदिवासी समुदाय को भी वो लुभाना चाहती है. इसीलिए बीजेपी ने ऐलान किया है कि वो द्रौपदी मुर्मू के राष्ट्रपति बनने का जश्न देश के 100 से ज्यादा आदिवासी बहुल जिलों और 1 लाख 30 हजार गांवों में मनाएगी. बीजेपी कह चुकी है कि द्रौपदी मुर्मू का देश के सर्वोच्च पद पर पहुंचना एक बड़ा प्रतीक है.
आइडेंटिटी पॉलिटिक्स
देश में आइडेंटिटी पॉलिटिक्स का कितना महत्व है ये बात बीजेपी ही नहीं हर पार्टी जानती है. लेकिन सही समय पर सही फैसला लेने का जो कला पीएम मोदी ने हासिल की है उसमें बाकी काफी पीछे हैं. 2017 का राष्ट्रपति चुनाव इसके एक बड़ा उदाहरण है. रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति बनाने के बाद दलित वोटर्स का बीजेपी पर काफी भरोसा बढ़ा है. 2019 लोकसभा चुनाव और इसी साल हुए यूपी विधानसभा चुनाव के आंकड़े इसके गवाह हैं. अब द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति बनाकर बीजेपी ने 2024 के चुनावों से पहले देश के आदिवासी वोटरो को अपनी तरफ करने का बड़ा मास्टर स्ट्रोक खेला है.
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द्रौपदी मुर्मू के बहाने महिला वोटरों पर भी नजर
भारत में महिलाओं की आबादी पुरुषों के बराबर है. बीजेपी को उम्मीद है कि द्रौपदी मुर्मू की जीत से महिलाओं में भी एक सकारात्मक संदेश जाएगा. ऐसा माना जाता है कि महिला वोटरों का झुकाव बीजेपी की तरफ होता है. खुद प्रधानमंत्री कई बार इसका जिक्र कर चुके हैं. ऐसे में एक महिला के राष्ट्रपति बनने से बीजेपी को महिला वोटर्स में अपनी पकड़ को और मजबूत बनाने में मदद मिल सकती है. खास तौर पर गरीब और वंचित समाज से आनेवाली महिलाओं पर. इसका काट किसी भी राजनीतिक पार्टी के पास नहीं है. महिला और आदिवासी समुदाय से आने की वजह से पीएम मोदी की सबसे बड़ी विरोधी माने जानेवाली पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्रौपदी मुर्मू के नाम का विरोध नहीं कर पाईं. शिव सेना में भी उनके नाम पर टूट दिखाई दी. झारखंड में कांग्रेस गठबंधन के साथी हेमंत सोरेन को भी मजबूरी में यशवंत सिन्हा को छोड़ कर द्रौपदी मुर्मू के साथ जाना पड़ा. राष्ट्रपति चुनाव में कई पार्टियों में मुर्मू के पक्ष में क्रॉस वोटिंग देखने को मिली.
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक कुशल रणनीतिकार हैं. उन्हें पता है कि 2024 में अगर देश के किसी भी हिस्से में एंटी-इंकंबेंसी से उनके कुछ वोट कम हो सकते हैं तो इसके लिए उन्होंने नए वर्ग और नए राज्यों में पर ध्यान केंद्रित कर दिया है. राष्ट्रपति के तौर पर द्रौपदी मुर्मू का चुनाव भी इसी बड़ी रणनीति का एक हिस्सा है. क्या प्रधानमंत्री मोदी की ये रणनीति कारगर साबित होगी, ये तो आनेवाले चुनावी नतीजे ही बताएंगे.