Tag Archives: Supreme Court

ज्ञानवापी परिसर में मिले शिवलिंग की पूजा इस सावन होगी क्या ! SC 21 जुलाई को करेगा सुनवाई…

DESK : ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में मिले शिवलिंग की दर्शन-पूजन की मांग को लेकर दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट जल्द सुनवाई के लिए तैयार हो गया है. शीर्ष अदालत इस याचिका पर 21 जुलाई को सुनवाई करेगा.

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मां श्रृंगार गौरी मामले में याचिकाकर्ता चारवादी महिलाओं ने ही यह याचिका भी दाखिल की है. याचिका में शिवलिंग की कार्बन डेटिंग कराने की मांग भी की गई है. याचिका में कहा गया की कार्बन डेटिंग से पता चलेगा कि शिवलिंग कितना प्राचीन है. याचिका में सुप्रीम कोर्ट से ज्ञानवापी परिसर की जीपीएस पड़ताल यानी ग्राउंड पेनिट्रेटिंग रडार सिस्टम के जरिए भूमिगत परिस्थिति का पता लगाने का आदेश देने की मांग की गई है

भगोड़े कारोबारीको 4 महीने की सजा: 40 हजार करोड़ लेकर भागनेवाले विजय माल्या को सुप्रीम कोर्ट ने…

DESK : सुप्रीम कोर्ट ने अवमानना से जुड़े मामले में देश के भगोड़े कारोबारी विजय माल्या को लेकर कड़ा रूख अपनाया है. सुप्रीम कोर्ट ने भगोड़े माल्या को 4 महीने की सजा सुनाई है. कोर्ट ने विजय माल्या से विदेश में ट्रांसफर किए गए 40 मिलियन डॉलर 4 हफ्ते में चुकाने के लिए है. साथ ही कोर्ट ने माल्या पर 2000 रुपए का जुर्माना भी लगाया है. जुर्माना न चुकाने पर 2 महीने की अतिरिक्त सजा देने का निर्णय भी लिया हैं.

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केंद्र ने मांग की थी अधिकतम सजा की : केंद्र सरकार ने माल्या को अधिकतम सजा दिए जाने की मांग की थी. केंद्र का कहना है कि माल्या ने न सिर्फ विदेशी खातों में पैसे ट्रांसफर करने को लेकर कोर्ट को गलत जानकारी दी, बल्कि पिछले 5 साल से कोर्ट में पेश न होकर अवमानना को और आगे बढ़ाया है. माल्या को 2017 में ही सुप्रीम कोर्ट ने अपनी अवमानना का दोषी करार दिया था. 10 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई टालते हुए माल्या को पक्ष रखने का अंतिम मौका दिया था. कोर्ट ने कहा था कि अगर अगली सुनवाई में दोषी खुद पेश नहीं होता या अपने वकील के जरिए पक्ष नहीं रखता है, तो भी सजा को लेकर कार्रवाई नहीं रोकी जाएगी.

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2017 से फ़रार है विजय माल्या: बैंकों को हजारों करोड़ रुपये का चूना लगा कर फरार हुआ भगोड़ा कारोबारी विजय माल्या को सुप्रीम कोर्ट ने 9 मई 2017 को अवमानना का दोषी ठहराया था. उसे डिएगो डील के 40 मिलियन डॉलर अपने बच्चों के विदेशी एकाउंट में ट्रांसफर करने और सम्पत्ति का सही ब्यौरा न देने के लिए अवमानना का दोषी करार दिया गया था. उसकी पुनर्विचार याचिका भी खारिज की जा चुकी थी. सजा पर चर्चा के लिए दोषी का पेश होना कानूनी जरूरत है, लेकिन माल्या कई बार मौका मिलने के बावजूद पेश नहीं हुआ था.

सभी हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश का कार्यक्रम हुआ आयोजित…

DESK : देश के सभी हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और सभी राज्यों के मुख्यमंत्री के साथ आज प्रधानंमंत्री नरेंद्र मोदी ने बैठक की। छह साल बाद आयोजित संयुक्त सम्मेलन को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने कहा कि आज न्यायपालिका और सरकार का दायित्व अब बढ़ गया है। देश के सीजेआई एनवी रमना और कानून मंत्री किरण रिजिजु की उपस्थिति में प्रधानमंत्री ने कहा कि 2047 में जब देश आजादी के 100 साल पूरा करेगा तब हम कैसा देश चाहते हैं,

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि 2015 में हमने करीब 1800 ऐसे कानूनों को चिन्हित किया था जो अप्रासंगिक हो चुके थे। उन्होंने कहा कि इनमें से केंद्र ने 1450 कानूनों को खत्म कर लोगों को राहत दी है। लेकिन राज्यों की तरफ से केवल 75 कानून ही खत्म किए गए हैं।

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इस दौरान कार्यक्रम को संबोधित करते हुए CJI एनवी रमना ने कहा कि ‘लक्ष्मण रेखा’ का ध्यान सबको रखना चाहिए। उन्होंने कहा कि अगर सब कानून के अनुसार हो तो न्यायपालिका कभी भी शासन के रास्ते में नहीं आएगी। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि यदि नगरपालिकाएं, ग्राम पंचायतें कर्तव्यों का पालन करती हैं, यदि पुलिस ठीक से जांच करती है और अवैध हिरासत की यातना समाप्त होती है, तो लोगों को अदालतों की ओर देखने की जरूरत नहीं होगी।

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सीजेआई ने कहा कि न्याय का मंदिर होने के नाते अदालत को लोगों का स्वागत करना चाहिए, कोर्ट की अपेक्षित गरिमा और आभा होनी चाहिए। पब्लिक इंटरेस्ट याचिका अब पर्सनल इंटरेस्ट के लिए इस्तेमाल हो रही हैं। यह अफसरों को धमकाने का जरिया बन गई हैं। PIL राजनीतिक और कॉर्पोरेट विरोधियों के खिलाफ एक टूल बन गया है।

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छह साल बात आयोजित हो रहे इस सम्मेलन में कार्यपालिका और न्यायपालिका के लिए न्याय के सरल वितरण के लिए रूपरेखा तैयार करने और न्याय प्रणाली के सामने आने वाली चुनौतियों से निपटने के लिए आवश्यक कदमों पर चर्चा हो रही है। इसके साथ ही न्यायपालिका से जुड़ी इमारतों के लिए ‘नेशनल ज्यूडिशियल इंफ्रास्ट्रक्चर अथारिटी आफ इंडिया’ के गठन का मुद्दा भी इसमें उठ सकता है।

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स्किन टू स्किन कान्टेक्ट के बिना भी माना जाएगा यौन उत्पीड़न, सुप्रीम कोर्ट ने रद किया बाम्बे हाईकोर्ट का फैसला

स्किन टू स्किन कान्टेक्ट के बिना भी माना जाएगा यौन उत्पीड़न, सुप्रीम कोर्ट ने रद किया बाम्बे हाईकोर्ट का फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को बाम्बे हाईकोर्ट के उस फैसले को खारिज कर दिया जिसमें कहा गया था कि अगर किसी आरोपी और पीड़िता के बीच सीधे स्किन टू स्किन कान्टेक्ट नहीं होता है तो पाक्सो अधिनियम के तहत यौन उत्पीड़न का कोई अपराध नहीं बनता है।

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यौन उत्‍पीड़न से जुड़े एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला दिया है। स्किन-टू-स्किन कान्टेक्ट को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बाम्बे हाई कोर्ट के फैसले को रद कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि कानून का उद्देश्य अपराधी को कानून के जाल से बचने की अनुमति देना नहीं हो सकता है। शीर्ष अदालत, अटार्नी जनरल और राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) की अलग-अलग अपीलों पर सुनवाई कर रही थी।

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इससे पहले बाम्बे हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा गया था कि स्किन टू स्किन कान्टेक्ट के बिना नाबालिग के निजी अंगों को टटोलना यौन उत्पीड़न के रूप में परिभाषित नहीं किया जा सकता है। हाईकोर्ट ने इस आधार पर दोषी को बरी कर दिया था। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने अब साफ कर दिया है कि पाक्सो एक्‍ट में फिजिकल कांटेक्‍ट के मायने सिर्फ स्किन-टू-स्किन टच नहीं है। सत्र अदालत ने व्यक्ति को पाक्सो अधिनियम और आइपीसी की धारा 354 के तहत अपराधों के लिए तीन साल के कारावास की सजा सुनाई थी।

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न्यायमूर्ति यूयू ललित की अध्यक्षता वाली पीठ ने उच्च न्यायालय के फैसले को रद्द करते हुए कहा कि यौन उत्पीड़न का सबसे महत्वपूर्ण घटक यौन इरादा है, न कि बच्चे के साथ स्किन-टू-स्किन कान्टेक्ट। शीर्ष अदालत ने कहा कि जब विधायिका ने इसपर स्पष्ट इरादा व्यक्त किया है, तो अदालतें प्रावधान में अस्पष्टता पैदा नहीं कर सकती हैं। अदालतें अस्पष्टता पैदा करने में अति उत्साही नहीं हो सकती हैं। इस बेंच में जस्टिस एस रवींद्र भट और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी भी शामिल थीं।

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धनबाद जज की कथित हत्या पर बार प्रमुख ने सुप्रीम कोर्ट से की सीबीआइ जांच की मांग, कहा- यह न्यायपालिका के लिए खतरनाक

न्यायमूर्ति रमना ने कहा कि हाई कोर्ट ने पुलिस और जिला अधिकारियों को नोटिस जारी किया है। मुख्य न्यायाधीश ने कहा वे गुरुवार को इस मामले की सुनवाई कर रहे हैं। उन्हें इस मामलो को संभालने दें। इस स्तर पर हमारे हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।

धनबाद के अतिरिक्त जिला न्यायाधीश (एडीजे) उत्तम आनंद की कथित हत्या का मामला गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में भी उठा। सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के प्रमुख और वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट से धनबाद के एडीजे उत्तम आनंद की कथित हत्या का मामला स्वत: संज्ञान लेने को कहा। मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष विकास सिंह ने इस मामले का जिक्र किया। उन्होंने अदालत से कहा कि अगर किसी गैंगस्टर की जमानत खारिज करने के बाद इस तरह किसी की हत्या की जाती है तो यह न्यायपालिका के लिए खतरनाक स्थिति है।

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मुख्य न्यायाधीश रमना ने कहा कि उन्होंने घटना के बारे में सुबह झारखंड हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश से बात की है। जज के हत्या के मामले की सीबीआइ जांच की मांग करते हुए विकास सिंह ने कहा कि घटना न्यायपालिका के स्वतंत्रता पर एक चौंकाने वाला हमला है।न्यायमूर्ति रमना ने कहा कि हाई कोर्ट ने पुलिस और जिला अधिकारियों को नोटिस जारी किया है। मुख्य न्यायाधीश ने कहा, ‘वे गुरुवार को इस मामले की सुनवाई कर रहे हैं। उन्हें इस मामलो को संभालने दें। इस स्तर पर हमारे हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।’वरिष्ठ अधिवक्ता सिंह ने जोर देकर कहा कि यह मुद्दा महत्वपूर्ण है और यह न्याय के हित में भी है। पीठ ने कहा कि वह सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए) की पहल से अभिभूत है और इसके द्वारा उठाए गए कदमों की सराहना भी करते हैं।

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मॉर्निंग वॉक के दौरान धनबाद के एडीजे उत्तम आनंद की हुई हत्या

बता दें कि बुधवार को मॉर्निंग वॉक के दौरान धनबाद के अतिरिक्त जिला न्यायाधीश (एडीजे) उत्तम आनंद को एक ऑटो-रिक्शा ने टक्कर मार दी थी। अस्पताल में इलाज के दौरान आनंद ने दम तोड़ दिया। सीसीटीवी फुटेज से संकेत मिलता है कि पिछली रात चोरी हुए ऑटो-रिक्शा ने उसे जानबूझकर मारा था। मृतक न्यायाधीश की पत्नी ने कथित तौर पर अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज कराया है।

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इलाके के सीसीटीवी फुटेज को रिकॉर्ड में लाया जाए: डी.वाई चंद्रचूड़

विकास सिंह व मुख्य न्यायाधीश की अदालत में मामले का उल्लेख करने से पहले इसे न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ ने कहा कि इलाके के सीसीटीवी फुटेज को रिकॉर्ड में लाया जाना चाहिए, क्योंकि यह घटना जज पर सुनियोजित हमले की तरह लग रही है।

सिंह ने कहा, ‘यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर एक खुला हमला है। जो वीडियो वायरल हुआ है वह वास्तव में किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा लिया जा रहा था जो हमले की पूर्व जानकारी के साथ रिकॉर्ड कर रहा था। हालांकि, न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने उनसे पहले इस मामले का मुख्य न्यायाधीष रमना से उल्लेख करने के लिए कहा।

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सुप्रीम कोर्ट ने कहा- दिल्ली में रोजाना 700 मीट्रिक टन ऑक्सीजन की आपूर्ति करे केंद्र सरकार

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि केंद्र सरकार को उसके अगले आदेश तक हर दिन दिल्ली में 700 मीट्रिक टन ऑक्सीजन की आपूर्ति करनी है। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और एमआर शाह ने कहा, “हम चाहते हैं कि 700 मीट्रिक टन दैनिक आधार पर दिल्ली को ऑक्सीजन की आपूर्ति की जाए।”

दिल्ली सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ वकील राहुल मेहरा ने शीर्ष अदालत के समक्ष दिल्ली द्वारा प्राप्त ऑक्सीजन की आपूर्ति का उल्लेख किया। मेहरा ने पीठ के समक्ष प्रस्तुत किया कि दिल्ली सरकार को शुक्रवार को सुबह 9 बजे तक 86 मीट्रिक टन प्राप्त हो गया है और 16 एमटी ऑक्सीजन ट्रांजिट में है। न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, “हम चाहते हैं कि 700 मीट्रिक टन दिल्ली को आपूर्ति की जाए। इसकी आपूर्ति की जानी है और हम जबरदस्ती नहीं चाहते हैं।”

पीठ ने जोर दिया कि दिल्ली को ऑक्सीजन की आपूर्ति के बारे में उसके आदेश को दोपहर बाद अपलोड किया जाएगा, लेकिन केंद्र ने राष्ट्रीय राजधानी के लिए ऑक्सीजन की आपूर्ति को आगे बढ़ाने और व्यवस्थित करने के लिए कहा।

5 मई को, शीर्ष अदालत ने 4 मई के दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगा दी थी, जिसके द्वारा केंद्र सरकार के अधिकारियों के खिलाफ राष्ट्रीय राजधानी के लिए आवश्यक ऑक्सीजन की आपूर्ति को पूरा करने में विफलता के लिए अदालत की अवमानना के लिए नोटिस जारी किया गया था।

सुप्रीम कोर्ट ने मराठा आरक्षण किया रद्द, कहा- 50 फीसदी से अधिक नहीं बढ़ाई जा सकती सीमा

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट में मराठा आरक्षण पर चल रही सुनवाई अब खत्म हो चुकी है। सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार द्वारा दिए गए मराठा आरक्षण को खारिज करते हुए कहा कि है कि आरक्षण की सीमा को 50 प्रतिशत से अधिक नहीं बढ़ाया जा सकता है। कोर्ट ने इंदिरा साहनी (1992) केस में कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले पर समीक्षा से भी इनकार कर दिया है।

सुप्रीम कोर्ट ने मराठा आरक्षण को खत्म करते हुए कहा कि यह 50 फीसदी  की सीमा का उल्लंघन करता है। अदालत ने कहा कि यह समानता के अधिकार का हनन है। इसके साथ ही अदालत ने 2018 के राज्य सरकार के कानून को भी खारिज कर दिया है।

दरअसल, महाराष्ट्र सरकार ने 50 फीसदी सीमा से बाहर जाते हुए मराठा समुदाय को नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में आरक्षण का ऐलान किया था। इस बाबत साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट में कई मामलों को दायर किया गया था, जिसके बाद आज कोर्ट द्वारा यह फैसला सुनाया गया है।

उत्तर प्रदेश : कल आएंगे पंचायत चुनाव के नतीजे, मतगणना पर रोक लगाने से Supreme Court का इंकार  

नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश पंचायत चुनाव के नतीजे कल आ जाएंगे। सुप्रीम कोर्ट ने मतगणना पर रोक लगाने से इंकार कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने 829 मतगणना केंद्रों पर कोविड-19 प्रोटोकॉल का पालन किए जाने का राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा आश्वासन दिए जाने के बाद मतगणना की इजाजत दी है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मतगणना के दौरान या मतों की गिनती के बाद किसी प्रकार की विजय रैलियों की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश राज्य निर्वाचन आयोग को संबंधित याचिकाओं पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा सुनवाई पूरी होने तक मतदान केंद्रों की सीसीटीवी फुटेज संरक्षित रखने का भी निर्देश दिया है।

इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मतदान केंद्रों पर प्रवेश से पहले अधिकारियों, प्रत्याशियों और एजेंटों को ‘नेगेटिव कोविड-19 रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होगी। कल उत्तर प्रदेश पंचायत चुनाव के वोटों की गिनती है। बता दें कि यूपी पंचायत चुनाव के वोटों की गिनती को कुछ समय के लिए टालने लिए सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है, जिस पर आज यानी शनिवार को सुनवाई हुई।

 

 

सुप्रीम कोर्ट ने कहा- ‘‘राष्ट्रीय संकट’’ है Corona की दूलरी लहर, इंटरनेट पर मदद मांगने पर नहीं लगनी चाहिए रोक

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कोरोना की दूसरी लहर को ‘‘राष्ट्रीय संकट’’ करार देते हुए अधिकारियों को फटकार लगाई। अदालत ने कहा कि सोशल मीडिया पर मदद की गुहार लगा रहे नागरिकों को यह सोचकर चुप नहीं कराया जा सकता कि वे गलत शिकायत कर रहे हैं। शीर्ष अदालत ने कहा कि हम यह स्पष्ट करना चाहते हैं कि यदि नागरिक सोशल मीडिया और इंटरनेट पर अपनी शिकायत दर्ज कराते हैं तो इसे गलत जानकारी नहीं कहा जा सकता है।

न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़, नागेश्वर राव और एस रविंद्र की पीठ ने कहा कि हम सूचना पर किसी भी तरह की कार्रवाई नहीं चाहते हैं। अगर शिकायतों पर कार्रवाई की गई तो हम इसे न्यायालय की अवमानना मानेंगे। इस संदेश को राज्यों और डीजीपी तक पहुंचाइए। पीठ ने कहा कि सूचना का निर्बाध प्रवाह होना चाहिए, हमें नागरिकों की आवाज सुननी चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा- कोरोना से निपटने के लिए सरकार का क्या है प्लॉन

नई दिल्ली। कोरोना की दूसरी लहर में ऑक्सीजन की किल्लत और अन्य परेशानियों को लेकर सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को सुनवाई हुई। इस दौरान कोरोना वायरस के लगातार बढ़ते केसों पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार पर कड़ी टिप्पणी की है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस संकट के दौर में हम मूकदर्शक नहीं बने रह सकते।

अदालत ने कहा कि सरकार को यह बताना होगा कि कोरोना संकट से निपटने के लिए उसका क्या प्लान है। जस्टिस एस.आर भट ने कहा कि मैं दो मुद्दे उठाना चाहता हूं, जो केंद्र सरकार के अंतर्गत हैं। पहली बात यह कि कैसे केंद्रीय संसाधनों का इस्तेमाल किया जाए। पैरामिलिट्री डॉक्टर्स, पैरामेडिक्स, आर्मी फैसिलिटीज और डॉक्टर्स का कैसे इस्तेमाल किया जा रहा है। दूसरी बात यह कि सरकार के पास इस संकट से निपटने के लिए कोई प्लान है या नहीं।

बता दें कि देश के कोविड-19 के बढ़ते मामलों को देख सुप्रीम कोर्ट ने पिछले दिनों स्वत: संज्ञान लिया था और कहा था कि वह ऑक्सीजन की आपूर्ति और कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों के इलाज के लिए आवश्यक दवाओं समेत अन्य मुद्दों पर “राष्ट्रीय योजना” चाहता है।