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इस महल का वह वीर जो मात्र 23 साल की उम्र के राष्ट्र के लिए मर मिटा एक गुमनाम हिन्दू योद्धा की वीर गाथा

इस महल का वह वीर जो मात्र 23 साल की उम्र के राष्ट्र के लिए मर मिटा एक गुमनाम हिन्दू योद्धा की वीर गाथा

इस महल का वह वीर जो मात्र 23 साल की उम्र के राष्ट्र के लिए मर मिटा एक गुमनाम हिन्दू योद्धा की वीर गाथा
यह कहानी उस समय की है जब बंगाल में अफगान एवं तुर्को की सफाई का कार्य जोर शोर से चालू था । यह मात्र बंगाल की सफाई नही थी, उस समय बिहार, झारखंड, बांग्लादेश तथा म्यांमार तक का क्षेत्र बंगाल सल्तनत का हिस्सा ही हुआ करता था ।आमेर के राजाओ में 1576 ईस्वी में बंगाल अभियान शुरू किया था, वह 23 वर्ष में पूर्ण हो पाया । बंगाल में 400 वर्षो से इस्लामिक सत्ता कायम थी, उसे रातों रात तो नही उखाड़ा जा सकता था ।बंगाल उस समय हिन्दू अत्याचार की राजधानी हुआ करता था, जब बंगाल सल्तनत का राज उसपर हुआ करता था । राजा मानसिंह ने अपने 23 साल के पुत्र दुर्जनसिंहजी को बंगाल में हिंदुओं की रक्षा के लिए नियुक्त किया था ।
कटेरा के पास पठानो की भीड़ ने दुर्जनसिंह एवं उनकी सेना पर भीड़ की तरह ही आक्रमण कर दिया ( पत्थर – आदि ही, जैसे कश्मीर में होता है )
इस युद्ध मे भारत के वीर सपूत ओर एक राज्य के राजकुमार दुर्जनसिंह जी मात्र 23 साल की उम्र में वीरगति को प्राप्त हो गए । इशाक खान एवं मूसा खान की पठान सेना के नेतृत्व में बंगाली मुसलमानो ने दुर्जनसिंह पर आक्रमण किया था । यह घटना 1597 ईस्वी में हुई ।राजा मानसिंह की पहली संतान की बलिदान की कहानी आपने पढ़ी, राजा मानसिंह के एक एक पुत्र देश धर्म हिंदुओ के लिए ऐसे ही कुर्बान होते रहें ।महावीर बलिदानी जगतसिंहजी कहानी फिर कभी । काल ने इस सुरमा को अल्पसमय मे भरी जवानी में ग्रस लिया, वरना हम आज ही विश्वगुरु होते । 12 साल की उम्र ही जगतसिंह ने पहला युद्ध जीत लिया था ।।
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