भगवान जगन्नाथ स्वामी की रथ यात्रा वैद्य ने टटोली ‘भगवान’ की नब्ज ?
गढ़ाकोटा में 1857 से लगातार निकल रही है रथयात्रा वैद्य ने टटोली 'भगवान' की नब्ज,7 जुलाई को निकलेगी रथयात्रा.
गढ़ाकोटा में 1857 से लगातार निकल रही है रथयात्रा वैद्य ने टटोली ‘भगवान’ की नब्ज,7 जुलाई को निकलेगी रथयात्रा देश के इतिहास में भले ही बीते समय की बात हो चुकी हो लेकिन गढ़ाकोटा के इतिहास में इसके वर्तमान स्वरूप के दर्शन आज भी प्रतिवर्ष आषाढ़ मास की दोज को भगवान जगन्नाथ स्वामी,श्री बलदाऊ भैया जी ओर माता सुभद्रा की पावन रथयात्रा निकलने का सिलसिला अनवरत चल रहा है। लगभग ढाई सौ वर्षों से अधिक जिस धार्मिक परंपरा का तीर्थ स्थल सिद्ध क्षेत्र पटेरिया जी से प्रथम बार इस रथयात्रा का आयोजन किया गया था। वह आज भी लाखों लोगों की श्रंद्धा एवं आस्था का प्रतीक माना जाता है जहां लोग प्रतिवर्ष इस आयोजन में पूरी श्रद्धा एवं भक्ति से शामिल होने दूर-दूर से पधारते हैं और अपनी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। धर्म से जुड़े लोगो का मानना है कि जो लोग भगवान जगन्नाथ स्वामी की रथ यात्रा में पुरी (उड़ीसा) नहीं पहुंच पाते वे गढ़ाकोटा की रथयात्रा में शामिल होकर पुण्य लाभ अर्जित करते है।
सिद्ध क्षेत्र पटेरिया तीर्थ स्थल का भी अपना धार्मिक इतिहास रहा है जिसकी स्थापना सिद्ध बाबा महराज द्वारा की गई थी। उन्ही की कृपा से इस क्षेत्र में पुण्य सलिल नर्मदा मैया के प्राकृटय की भी किवदंती जुड़ी हुई है जो आज सिद्ध बाबा मंदिर के समीप ही लोंग झिरिया के रूप में जानी जाती है कालांतर में इस क्षेत्र की महिमा प्रसिद्धि एवं प्रताप से लाभान्वित होकर अनेक लोगों ने इस धर्म क्षेत्र के विकास में अपना सहयोग प्रदान किया था जिनमें अंग्रेजों से लेकर मुस्लिम भाई तक शामिल थे।
जब 1857 में प्रथम बार महंत जानकीदास के मार्गदर्शन में आस्थाई रथ पर तीनों मूर्तियां भगवान जगन्नाथ,बलदाऊ भैया और मां सुभद्रा जी को विराजमान कर आयोजन किया गया था तो महात्मा से प्रभावित होकर अगले वर्ष 1858 में एक मुस्लिम थानेदार ने स्थाई रथ का निर्माण करवाया था। जो धार्मिक सौहार्द का अभूतपूर्व उदाहरण था तब इसी वर्ष से इस रथ यात्रा का आयोजन जगदीश मंदिर पटेरिया से गनपत खंताल (नायक) मालगुजार परिवार के बाजार वार्ड स्थित जनकपुरी मंदिर तक किया जाना लगा। इसके बाद महंत रामसेवक दास के कार्यकाल में दो अन्य रथो का निर्माण कराया गया। जगन्नाथ पुरी धाम के समान ही तीनों रथों पर तीनों श्री मूर्तियों की रथयात्रा आयोजित की जाने लगी। इस भव्य समारोह की तैयारीयां ज्येष्ठ सुदी पूर्णिमा से प्रारंभ होती है जब तीनों देव प्रतिमाओं की श्रद्धालुओं के दर्शनार्थ मंदिर में बाहर स्थापित किया जाता है एक धार्मिक मान्यता के अनुसार भगवान जगन्नाथ स्वामी अस्वस्थ्य हो जाते हैं जो पूर्णिमा से प्रतिपदा तक एक वैध भगवान के अस्वस्थ होने पर इलाज हेतु मंदिर जाते हैं पूर्व में वैध पं कालीचरण तिवारी भगवान का इलाज करते थे। अब उनके वंशज पं अम्बिकाप्रसाद तिवारी भगवान का इलाज करते है एकादशी को भगवान को दवा दी जाती है जिसमे औषधि के रूप जड़ो का पानी और दाल का पानी भगवान को सेवन के दिया जाता है।
प्रतिपदा को भगवान जगन्नाथ स्वामी को दाल-चावल मिश्रित,खिचड़ी कर सेवन कराया जाता है इसके अगले दिन दोज को मंदिर में मालपुआ तथा पुड़ी सहित छप्पन भोग दिया जाता है उसी दिन भगवान जगन्नाथ स्वामी की नगर यात्रा निकाली जाती है साथ ही श्रद्धालुओं को शुद्ध घी से बने मालपुये ओर पुड़ी का प्रसाद दिया जाता है।