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पितामह-पुलस्त्य ऋषि • पिता-विश्रवा • माता- कैकशी या केशिनी • पत्नियां-1.मंदोदरी 2.धान्यमालिनी • पुत्र-इंद्रजित सहित पांच अन्य पुत्र • बहनें-1.शूर्पणखा 2.कुंभीनशी • भाई-1.कुभकर्ण 2.विभीषण 3.मत्त 4.युद्धोन्मत्त • सौतेला भाई-कुबेर

पितामह-पुलस्त्य ऋषि • पिता-विश्रवा • माता- कैकशी या केशिनी • पत्नियां-1.मंदोदरी 2.धान्यमालिनी • पुत्र-इंद्रजित सहित पांच अन्य पुत्र • बहनें-1.शूर्पणखा 2.कुंभीनशी • भाई-1.कुभकर्ण 2.विभीषण 3.मत्त 4.युद्धोन्मत्त • सौतेला भाई-कुबेर

रावण शब्द का कलरव से क्या रिश्ता हो सकता है ? कलरव बहुत सुंदर शब्द है जिसका मतलब है मधुर आवाज़। चिड़ियों का चहचहाना। पक्षियों की कूजनध्वनि । कल यानी चिड़िया और रव यानी ध्वनि, आवाज़। रव बना है संस्कृत की ‘रु’ धातु से जिसके मायने हैं शब्द करना, आवाज़ करना । खास बात यह कि इसमें सभी प्रकार की ध्वनियां शामिल हैं। मधुर भी, तेज़ भी, कर्कश भी और भयावनी भी। और अगर कहीं कोई ध्वनि नहीं है तो इसी रव में ‘नि’ उपसर्ग लगाने से सन्नाटे का भाव भी आ जाता है। यही नहीं, विलाप करते समय जो ध्वनि होती है उसके लिए भी यही ‘रु’ धातु में निहित भाव समाहित हैं। हिन्दी में रोना शब्द ही आमतौर पर विलाप के अर्थ में इस्तेमाल होता है। रोना बना है संस्कृत के रुदन, रुदनम् से जिसका मतलब है क्रंदन करना, शोक मनाना , आँसू बहाना आदि है। अरण्य रोदन यानी बियाबान में क्रंदन करना जिसे कोई न सुन सके। यह एक मुहावरा भी है जिसका मतलब होता है कोई सुनवाई न होना । रुआंसा शब्द इसी कड़ी से जन्मा है। ‘रु’ में शोर मचाना, चिंघाड़ना, दहाड़ना आदि भी शामिल है।
इससे ही बना है संस्कृत शब्द रावः जिसका मतलब है भयानक ध्वनि करना। चीत्कार करना। चीखना-चिल्लाना। हू-हू-हू जैसी भयकारी आवाज़ें निकालना आदि। रावः से ही बना है रावण जिसका अर्थ हुआ भयानक आवाजें करने वाला, चीखने-चिल्लाने वाला, दहाड़ने वाला। ज़ाहिर है यह सब संस्कारी मानव के सामान्य क्रियाकलापों में नहीं आता। किसी मनुश्य का अगर ऐसा स्वभाव होता है तो उसे हम या तो पशुवत् कहते हैं या राक्षस की उपमा देते हैं। ज़ाहिर है कि रावण तो जन्मा ही राक्षस कुल में था इसलिए रावण नाम सार्थक है।
एक दिलचस्प संयोग भी है। रावण को रुद्र यानी शिव का भक्त बताया जाता है और रुद्र की कृपादृष्टि के लिए रावण द्वारा घनघोर तपस्या करने का भी उल्लेख है। रुद्र यानी एक विशेष देवसमूह जिनकी संख्या ग्यारह है। भगवान शिव को इन रुद्रों का मुखिया होने से रुद्र कहा जाता है। रुद्र भी बना है रुद् धातु से जिसका मतलब भयानक ध्वनि करना भी है। इससे रुद्र ने भयानक, भयंकर, भीषण, डरावना वाले भाव ग्रहण किए ।
रावण ने रुद्र की तपस्या कर किन्ही शक्तियों के साथ रौद्र भाव भी अनायास ही पा लिया
यानी रावण और रुद्र दोनों शब्दों का मूल और भाव एक ही हैं। भयानक – भीषण जैसे भावों को साकार करने वाला रौद्र शब्द इसी रुद्र से बना है। रावण ने रुद्र की तपस्या कर किन्ही शक्तियों के साथ रौद्र भाव भी अनायास ही पा लिया। कथाओं में रावण की विद्वत्ता की बहुत बातें कही गई हैं । बताया जाता है कि कृष्णयजुर्वेद रावण द्वारा रचित वेदों पर टिप्पणियों का ग्रंथ है। इसमें इंद्र के स्थान पर रावण ने अपने आराध्य रुद्र की महिमा गाई है। इस ग्रंथ की सामग्री बाद में यजुर्वेद से जुड़ गई जिन्हें शतरुद्री संहिता कहा गया और तभी से रुद्र के साथ शिव नाम भी प्रचलित हुआ। वाल्मीकी ने भी रावण को वेदविद्यानिष्णात कहा है। रावण की गणना कुशल राजनीतिज्ञों में होती है। कहते हैं कि कुशध्वज ऋषि की कन्या वेदवती से रावण ने अनुचित व्यवहार करना चाहा था तब उसने शाप दिया था कि सीता के रूप में पुनर्जन्म लेकर वह उसके सर्वनाश का कारण बनेगी।
रावण का कुनबा-
• पितामह-पुलस्त्य ऋषि • पिता-विश्रवा • माता- कैकशी या केशिनी • पत्नियां-1.मंदोदरी 2.धान्यमालिनी • पुत्र-इंद्रजित सहित पांच अन्य पुत्र • बहनें-1.शूर्पणखा 2.कुंभीनशी • भाई-1.कुभकर्ण 2.विभीषण 3.मत्त 4.युद्धोन्मत्त • सौतेला भाई-कुबेर
आज जब हर तरफ गदंगी को भौतिक तौर पर साफ़ करने के लिए दिन रात प्रयत्न किये जा रहे हैं और उसका असर भी देखने को मिल रहा है. हर आदमी आज सफाई के प्रति जागरूक हो रहा है. चुनावों में भी किसी साफ़ सुथरे छवि वाले प्रत्याशी को वोट देने के लिए अपील करते हजारों लोग दिख जाएंगे. इन सब बातों का जिक्र आज करना इसलिए जरूरी हो जाता है कि कल से फिर बिहार के सारण में रावण चर्चा में है।गन्दगी सड़क पर पड़ा हुआ कूड़ा कचरा नहीं अपितु ज्ञानी कहे जाने वाले रावण के अंदर अधर्म के रूप में भरी हुई गंदगी थी.
आज कलियुग में भी भौतिक गन्दगी को साफ़ करने में तो सभी वर्गों का भरपूर सहयोग किया मगर मानसिक गन्दगी का प्रकोप बढ़ता चला गया, जी हाँ, वही मानसिक गंदगी जो रावण के दिमाग में घुसी हुई थी. रावण नामक गंदगी को तो भगवान राम ने खत्म कर दिया मगर मॉडर्न कलियुग में एक नया प्रचलन सा शुरू हो गया है. समाज का एक वर्ग रावण का समर्थन करने लगा. जब आप उसके कारणों में जाने का प्रयत्न करेंगे तो एक बड़ा कारण सामने निकल कर आता है कि रावण ब्राह्मण था. अब रावण की जाति क्या रही होगी वो तो हर मामले में जाति ढूढ़ने वाले लोग ही बता पाएंगे. मगर इतना जरूर कहा जा सकता है कि रावण एक ज्ञानी पुरुष था. मान्यतानुसार रावण में अनेक गुण भी थे। सारस्वत ब्राह्मण पुलस्त्य ऋषि का पौत्र और विश्रवा का पुत्र रावण एक परम शिव भक्त, राजनीतिज्ञ , महाप्रतापी, महापराक्रमी योद्धा , अत्यन्त बलशाली , शास्त्रों का प्रखर ज्ञाता ,प्रकान्ड विद्वान पंडित एवं महाज्ञानी था।
मगर क्या रावण के ब्राह्मण जाति का होने या ज्ञानी होने पर उसकी पूजा की जा सकती है?
क्या उसकी आराधना की जा सकती है?
क्या उसे अपना आदर्श माना जा सकता है?
क्या उसके कृत्यों का वास्तविक जीवन में अनुसरण किया जा सकता है?
अगर किया जा सकता है तो उन लोगों के लिए मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम क्या है?
क्या रावण और भगवान राम के जीवन का एक साथ अनुसरण किया जा सकता है ?
क्या दोनों को अपना आराध्य माना जा सकता है?
क्या मयान में दो तलवारें आ सकती हैं?
कई बार लोग सफाई देते नजर आते हैं कि रावण सीता को हाथ नहीं लगाया क्योंकि रावण की नियत साफ़ थी, अब उनको ये बात कौन बताये कि सीता से हाथ न लगाना रावण का गुण नहीं बल्कि उसकी मजबूरी थी. दरअसल स्वर्ग की अप्सरा रम्भा रावण के भतीजे नलकुबेर से मिलने के लिए जा रही थी मगर रास्ते में बुरी नियत से उसे रावण ने रोक लिया और उसके साथ जबरदस्ती कुकर्म कर दिया, जिसके बाद नलकुबेर ने उसे श्राप दे दिया कि वो किसी पतिव्रता स्त्री को नहीं छू सकता, उसकी बिना मर्ज़ी के उसको हाथ तक नहीं लगा सकता था. मगर रावण के मॉडर्न अंधभक्त आज रावण की नियत पर सफाई देते नजर आते रहे हैं.
रामायण में रावण के वध होने पर मन्दोदरी विलाप करते हुए कहती है, “अनेक यज्ञों का विलोप करने वाले, धर्म व्यवस्थाओं को तोड़ने वाले, देव-असुर और मनुष्यों की कन्याओं का जहाँ तहाँ से हरण करने वाले! आज तू अपने इन पाप कर्मों के कारण ही वध को प्राप्त हुआ है।” तुलसीदास जी केवल उसके अहंकार को ही उसका मुख्य अवगुण बताते हैं। अगर वास्तव में देखा जाये तो आज के समय में रावण का अनुसरण करने वाले सिर्फ रावण का अनुसरण नहीं कर रहे बल्कि ऐसा करके वो महिलाओं का अपमान करने का समर्थन कर रहे हैं, महिलाओं का अपहरण करने वालों का समर्थन कर रहे हैं, अभिमान का समर्थन कर रहे हैं, अहंकार का समर्थन कर रहे हैं, क्रूरता और अत्याचार का समर्थन कर रहे हैं.
अगर ज्ञानी होने के आधार पर रावण को अपना आराध्य माना जाता है तो फिर आज के समय में ओसामा बिन लादेन भी सही है, मन्नान वानी भी सही है और जाकिर नाइक जैसे बौद्धिक आतंकवाद फैलाने वाले लोग भी सही हैं. फिर तो कन्हैया कुमार भी और उम्र खालिद जैसे देशद्रोही नारे लगाने वाले लोग भी सही हैं क्योंकि वो पढ़े लिखे लोग हैं और सही हैं वो नक्सलवाद को बढ़ावा देने वाले अर्बन नक्सली जो अपने सिर पर नाना प्रकार की डिग्रियां लादे घूम रहे हैं और सही है वो वामपंथी इतिहासकार भी जो समय समय पर देशद्रोहियों और आतंकियों का समर्थन करने के साथ ही अत्याचारी मुगलों की शान में कसीदे पढ़ते नजर आते हैं. ये भी तो पढ़े लिखे लोग ही हैं, जिन्हे शुद्ध भाषा में रावण की तरह ‘ज्ञानी’ कह सकते हैं.
आजकल रावण की प्रशंसा में बहुत से लेख सोशल मीडिया पर देखने को मिल रहे हैं, उन लेखों को पढ़ कर साफ़ समझा जा सकता है कि उनमे किस तरह भगवान राम को एक दोषपूर्ण किरदार के रूप में दिखाने की कुटिल कोशिश की गयी है. मगर ऐसा लिखने वाले ज्यादातर वही लोग हैं जो एक तरफ ब्राह्मणवाद के खिलाफ झंडा बुलंद कर रहे हैं और दूसरी तरफ खुद के ब्राह्मण शक्तिशाली होने पर घमंड करने वाले रावण का महिमा मंडन कर रहे हैं?
क्या सिर्फ इसलिए कि राम को पूजने वाले हिन्दू धर्म के लोग हैं और उनका कर्तृव्य हिन्दू धर्म के खिलाफ ही आग उगलना है? जिस राम राज्य के होने की आज के युग में कल्पना की जाती है, जिस शबरी के झूठे बेर खाने वाले राम को आज के युग में भी जातिवाद को खत्म करने का नायक माना जाता है, आज उनसे रावण की तुलना कर रावण को श्रेष्ठ बताने की कोशिश की जा रही है, आज के समय में ऐसी बौद्धिक गंदगी के खिलाफ खड़े होकर इसकी सफाई करने की जरूरत है.
आप समस्त सुधिजनों के विचारार्थ यह आलेख प्रस्तुत है।आपका अमूल्य सुझाव और मार्गदर्शन आपेक्षित है।
संकलन:🗡️❣️🚩

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