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किसानों आंदोलन पर बोले राहुल, ‘चाहे पूरा देश खिलाफ हो जाए लेकिन मैं लड़ता रहूंगा, क्योंकि मैं मोदी या बीजेपी से नहीं डरता’

नई दिल्ली। किसान आंदोलन को विपक्ष लगातार केंद्र पर हमला कर रहा है। इस के चलते कांग्रेस पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की। इस दौरान राहुल गांधी ने ‘खेती का खून’ बुकलेट भी जारी किया। कॉन्फ्रेंस में राहुल ने कहा कि किसानों को कमजोर करने की कोशिश हो रही है। तीनों कृषि कानून खेती को बर्बाद कर देंगे। मैं इनका विरोध करता रहूंगा और मैं जेपी नड्डा के सवालों का जवाब नहीं दूंगा।

राहुल गांधी ने कहा कि सिर्फ किसानों और देश के सवालों का जवाब दूंगा। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर आरोप लगाते हुए बोले कि नरेंद्र मोदी एक-एक चरण के हिसाब से किसानों को खत्म करने में लगे हैं। ये सिर्फ तीन कानून पर नहीं रुकेंगे, बल्कि अंत में किसानों को खत्म करना चाहते हैं। ताकि देश की पूरी खेती अपने तीन-चार दोस्तों को दे सकें।

राहुल गांधी ने कहा कि चाहे पूरा देश खिलाफ हो जाए लेकिन फिर भी मैं सही के लिए लड़ता रहूंगा। मैं नरेंद्र मोदी या बीजेपी से नहीं डरता हूं।

किसान आंदोलनः सुप्रीम कोर्ट आदेश देगा तो नहीं निकलेगी ट्रैक्टर रैली- राकेश टिकैत

नई दिल्ली। दिल्ली के विज्ञानभवन में किसान संगठनों और केंद्र सरकार के बीच 9वें दौर की वार्ता जारी है। किसान के तीनों कानूनों की वापसी के मांग पर किसान लगातार अड़े हुए हैं। उनका कहना है कि 26 जनवरी को टैक्टर रैली निकालेंगे। इसे लेकर भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने कहा कि अगर सुप्रीम कोर्ट आदेश देता है तो किसान गणतंत्र दिवस पर इस रैली को वापस ले लेंगे और इसका आयोजन किसी और दिन किया जायेगा।

टिकैत ने पहले कहा था कि किसान लाल किले से इंडिया गेट तक जुलूस निकालेंगे और गणतंत्र दिवस पर अमर जवान ज्योति पर राष्ट्रीय ध्वज फहराएंगे। इस दौरान बीकेयू के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने यह भी कहा कि कानून संसद लेकर आई है और ये वहीं खत्म होंगे। सरकार को तीन कानूनों को रद करने और एमएसपी के लिए कानूनी गारंटी देने की योजना तैयार करने की जरूरत है। टिकैत ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर गठित समिति के बजाय सरकार के साथ बातचीत करना बेहतर है।

गौरतलब है कि किसान 26 नवंबर से ही दिल्ली बॉर्डर पर केंद्र के तीनों नए कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं। गतिरोध को सुलझाने के लिए केंद्र सरकार और किसान संगठनों के बीच अब तक आठ दौर की वार्ता हो चुकी है। आज नौवें दौर की वार्ता हो रही है। अभी तक कोई खास सफलता हाथ नहीं लगी है। 8 जनवरी को, आठवें दौर की बैठक हुई थी। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने 11 जनवरी को सुनवाई के दौरान तीनों कानूनों को अगले आदेश तक लागू करने पर रोक लगा दी थी और गतिरोध को हल करने के लिए चार सदस्यीय पैनल नियुक्त किया था। भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष भूपिंदर सिंह मान ने गुरुवार को शीर्ष अदालत द्वारा नियुक्त समिति से खुद को अलग कर लिया था।

आज होगी सरकार और किसानों के बीच 9वीं बैठक, क्या आज खत्म होगा किसान आंदोलन?

दिल्ली को चारों तरफ से घेरे केंद्र सरकार के कृषि कानूनों के खिलाफ लगातार किसान आंदोलन जारी है। बता दें सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद आज किसानों और सरकार के बीच दोपहर 2 बजे एक अहम बैठक होगी।

हालांकि अभी तक किसानों और सरकार के बीच कुल 8 बैठकें हो चुकी है, मगर मुद्दा यू का यू बना रहा कोई समाधान निकल कर नहीं आया। किसान और सरकार दोनों अपनी-अपनी जिद पर अड़े रहे। अब इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद इस मसले के हल होने की संभावना जताई जा रही है।

बताया जा रहा है की सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद किसानों ने कहा की वें कमिटी बनाए जाने के विरोध में है, और वें कमिटी की बैठकों का बहिष्कार करेंगे। किसान नेताओं का कहना है की उन्हें सरकार से बातचीत करने में कोई हर्ज नहीं है। मगर, अभी तक हुई 8 बैठकों के बाद भी कोई समाधान नहीं निकला इस से किसानों का विश्वास खत्म हो रहा है की ये सरकार कभी किसी नतीजे पर पहुंचेगी भी या नहीं। इसके चलते किसानों ने ये भी कहा की ये बैठकें केवल खाना पूर्ती करने के लिए की जाती है, असल में इनका कोई फायदा नहीं है।

SC द्वारा नियुक्ति कमेटी से एक सदस्य ने खुद को किया अलग, ये है मुख्य कारण!

वहीं, कृषि सुधार कानूनों को लेकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा बनाई गई कमेटी के मेंबर और भाकियू के प्रधान भूपेंद्र सिंह मान ने कमेटी की सदस्यता छोड़ दी है। उन्होंने एक नोटिस जारी करते हुए सुप्रीम कोर्ट को धन्यवाद किया कि उन्हें कमेटी में शामिल किया गया, जिसने किसानों और केंद्र सरकार के बीच तीन कृषि कानूनों को लेकर बातचीत करके रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंपनी थी। वह केंद्र सरकार द्वारा लाए गए तीन कृषि कानूनों पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित चार सदस्यीय समिति में उन्हें नामित करने के लिए आभार व्यक्त करते हैं, लेकिन वह किसान हितों से कतई समझौता नहीं कर सकते। वह इस कमेटी से हट रहे हैं और हमेशा पंजाब व किसानों के साथ खड़े हैं।

https://youtu.be/Xv1ZfMUK3Ck

किसान और सरकार की नौवें दौर की कल होगी वार्ता, कमेटी से एक सदस्य ने खुद को किया अलग

नई दिल्ली। कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने गुरुवार को कहा कि सरकार 15 जनवरी को खुलकर किसानों से बातचीत करने के लिए तैयार है। बता दें कि किसान आंदोलन पर सुप्रीम कोर्ट की दखलंदाजी के बाद इस बार किसानों की साथ होने वाली सरकार की ये वार्ता कई मायनों में खास होगी।

नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि सरकार की किसान नेताओं के साथ नौवें दौर की बातचीत शुक्रवार को होने वाली है और केंद्र सकारात्मक चर्चा को लेकर आशान्वित है। तोमर ने कहा कि सरकार और किसान प्रतिनिधियों के बीच बातचीत 15 जनवरी को दोपहर 12 बजे से होगी। किसान और सरकार के बीच यह नौवें दौर की वार्ता होगी। इसके पहले सरकार और किसान नेताओं के बीच आठ जनवरी को वार्ता हुई थी।

बता दें कि केंद्र सरकार द्वारा लाए गए तीनों कृषि कानूनों के अमल पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगाई हुई है। कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई करते हुए एक कमेटी का गठन भी किया हुआ है, जो कि सरकार और किसानों के बीच कानूनों पर जारी विवाद को समझेगी और इसके बाद यह रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंपी जाएगी।

कमेटी से एक सदस्य ने खुद को किया अलग

वहीं, कृषि सुधार कानूनों को लेकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा बनाई गई कमेटी के मेंबर और भाकियू के प्रधान भूपेंद्र सिंह मान ने कमेटी की सदस्यता छोड़ दी है। उन्होंने एक नोटिस जारी करते हुए सुप्रीम कोर्ट को धन्यवाद किया कि उन्हें कमेटी में शामिल किया गया, जिसने किसानों और केंद्र सरकार के बीच तीन कृषि कानूनों को लेकर बातचीत करके रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंपनी थी। वह केंद्र सरकार द्वारा लाए गए तीन कृषि कानूनों पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित चार सदस्यीय समिति में उन्हें नामित करने के लिए आभार व्यक्त करते हैं, लेकिन वह किसान हितों से कतई समझौता नहीं कर सकते। वह इस कमेटी से हट रहे हैं और हमेशा पंजाब व किसानों के साथ खड़े हैं।

गौरतलब है कि हजारों किसान जो मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के हैं, कई हफ्तों से दिल्ली की सीमा पर प्रदर्शन कर रहे हैं। ये सभी प्रदर्शनकारी किसान सरकार द्वारा बनाए गए नए कृषि कानूनों को निरस्त करने की मांग कर रहे हैं। किसानों का मानना है कि इन नए कृषि कानूनों से न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) प्रणाली कमजोर हो जाएगी।

दिल्ली की सीमाओं पर किसानों का प्रदर्शन जारी, कृषि कानूनों की कॉपी जलाकर मनाई लोहड़ी

केंद्र सरकार के कृषि  कानूनों के खिलाफ पिछले 50 दिनों से किसानों का विरोध प्रदर्शन लगातार जारी है। बदलते मौसम के बावजूद  किसान दिल्ली की सीमाओं पर अपनी मांगों के साथ डटे हुए है। जिस दिन से किसान प्रदर्शन कर रहे है उसी दिन से उन्हें हटाने के लिए लगातार कोशिश की जा रही है। कभी ये अफवाह फैलाना की ये किसान खालिस्तानी है, तो कभी पैसे लेकर प्रदर्शन करने वाले किसानों का दर्जा दिया गया। मगर, इन सबके बाद भी किसान हौसला बनाए विरोध प्रदर्शन कर रहे है। बता दें कृषि कानूनों पर चर्चा करने के लिए सरकार और किसानों के बीच अब तक कई बैठकें हो चुकी है, मगर कोई भी समाधान निकल कर नहीं आया है।

बता दें किसानों की संख्या बढ़ती जा रही है। पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान के बाद अन्य राज्यों के किसानों के जुड़ने से यह आंदोलन अब देशव्यापी हो चुका है। इसी बीच किसानों ने आरोप लगाया है की सरकार और असामाजिक तत्वों की ओर से आंदोलन को कमजोर करने की पूरी कोशिश की जा रही है। मगर, हम अपने फैसले से पिछे नहीं हटेंगें। किसानों का कहना है की जब तक हमारी मागें पूरी नहीं होंगी हम विरोध प्रदर्शन करते रहेंगे।

इतना ही नहीं कल लोहड़ी के त्यौहार के दिन किसानों ने कृषि कानूनों की कॉपी को जलाकर अपना गुस्सा जाहिर किया। साथ ही सिंघु बॉर्डर पर बैठे सभी किसान नेता इस कार्यक्रम का हिस्सा रहे और दुल्ला भट्टी को याद करते हुए सरकार को चुनौती दी। किसानों का औरोप हे की जयपुर-दिल्ली हाइवे पर विरोध प्रदर्शन कर रहे किसानों को  पुलिस लगातार परेशान कर रही है। साथ ही किसानों ने अपने हक की लड़ाई में पुलिस से अपील करी की किसानों के साथ परस्पर सहयोग करे।

सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई में यह सवाल किया गया की औरतें और बुजुर्ग इस आंदोलन में क्यों हैं? और कहा की उन्हें घर जाने के लिए कहना चाहिए। जिस पर किसान बेहद नाराज है। किसानों का कहना है की खेती में महिलाओं का योगदान अतुलनीय है. और यह आंदोलन उनका भी है।

सरकार से खफा है देश के अन्नदाता,10 से 15% फसल हुई बर्बाद

खेत में खड़े किसान हों या सीमाओं पर अपने हक के लिए लड़ रहे किसान हो सभी सरकार से खफा है। जहां एक ओर किसान केंद्र के कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली की सीमाओं पर संघर्ष कर रहे है, वहीं दूसरी तरफ खेतों में खड़े किसान अपनी दिन की दो रोटी के लिए तरस रहें है। इसी बीच सरकार राजनीती की रणनीतियाँ बनाने में व्यस्त है।

बता दें हर बार बारिश के वक्त किसानों की फसल भीगकर बर्बाद हो जाती है। इस बार भी बारिश में 15% फसल भीग कर बर्बाद हो गई। हालांकि किसान बारिश से भीगी फसल को सुखाने में जुटे है। मगर बारिश में भीगनें से फसल की गुणवत्ता गिरने से फसल सहीं दामों पर बीक नहीं पाती।

नरेला अनाज मंडी की कार्य व्यवस्था संचालित करने और सभी जरूरतों को पूरा कराने के लिये नाम के लिए नरेला एपीएमसी है। मगर असल में कोई कार्य नहीं हो रहा है। सरकार को किसानों की समस्याओं का समाधान करने की जरुरत है।