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दो शताब्दी बाद कर्जा लौटा कर ऐतिहासिक मूँछ का बाल छुडाया और अंत्येष्टि की।
दो शताब्दी बाद कर्जा लौटा कर ऐतिहासिक मूँछ का बाल छुडाया और अंत्येष्टि की।

जानिए #बल्लू_जी_चंपावत:
दो शताब्दी बाद कर्जा लौटा कर ऐतिहासिक मूँछ का बाल छुडाया और अंत्येष्टि की।
मूंछ के एक बाल का अंतिम संस्कार और वह भी करीब दो शताब्दी बाद सुनने में यह बात चाहे अटपटी और आश्चर्यजनक लगे लेकिन बात है ऐतिहासिक सच्चाई!
राजपूती आन-बान के लिए।
प्रसिद्द राजस्थान में यह ऐतिहासिक घटना सन 1812 के लगभग तत्कालीन नागौर परगना के हरसोलाव ठिकाने के #बल्लू_जी_चंपावत को लेकर हुई, आगरा किले से #राव_अमर_सिंह_राठोड के शव को मुग़ल शाहजहां के चंगुल से छुडाने के लिए बल्लू जी ने अपनी मूंछ का एक बाल गिरवी रखकर सेना गठीत की थी लगभग दो शताब्दी बाद पांचवी पीढी में बल्लू जी के वंशजो को साहूकार के वंशजो ने वीर बल्लू जी का लिखा रुक्का और मूंछ का बाल सौंपा तो कर्ज चुकाने के साथ बल्लू जी के वंशजो ने बाल का विधिवत संस्कार करके परंपरागत ढंग से शोक मनाया।
ऐतिहासिक प्रसंग की शुरुवात 26 जुलाई 1644 को आगरा के किले से राव अमर सिंह राठोड का शव लाने की रोमांचकारी घटना से हुई थी। इसके एक रोज पहले अमर सिंह राठोड की शाहजहाँ के दरबार में आपसी कहासुनी के दौरान हत्या कर दी गई थी हाडी रानी को सती होने के लिए पति का शव जरुरी था और इस काम को अपनी जान पर खेलकर बल्लू जी ने पूरा किया आनन् फानन में बल्लू जी ने पांच सौ घुड़सवारो की सेना तैयार की और उनका वेतन चुकाने के लिए बल्लू जी ने एक साहूकार को रुक्का लिखकर कर्ज के लिए अपनी मूंछ का बाल गिरवी रखा।
उदयपुर के #महाराणा_जगत_सिंह द्वारा भेजे गए नीले-सफ़ेद रंग के सर्वश्रेष्ठ घोड़े को लेकर बल्लू जी ने शाहजहां की अनुमति से किले में प्रवेश किया उन्होंने अपने स्वामी राव अमर सिंह राठोड की लाश के दर्शन के बहाने बिजली की स्फुर्ती से घोड़े पर शव उठाया और किले की प्राचीर से नीचे कूद पड़े।अगले रोज नागौर तथा आगरा में यमुना नदी के किनारे चिता सजी जिसमे #हाडी_रानी जब राव अमर सिंह राठोड तथा माया कंवर टाकणी अपनी वीर पति बल्लू जी के कर्महठ के साथ सती हुई। यमुना किनारे आज भी बल्लू जी की छत्री के भग्नावशेष मौजूद है।दुश्मनी के बावजूद मुग़ल शाहजहां ने बल्लू जी की स्वामी भक्त घोड़े की लाल पत्थर की प्रतिमा आगरा किले के समक्ष बनावाई और किले के गेट का नामांकरण अमर सिंह के नाम पर किया इतिहासकार ठाकुर मोहन सिंह कानोता द्वारा लिखित ‘#चम्पावतो_का_इतिहास‘ पुस्तक के अनुसार घोड़े की प्रतिमा 1961 तक आगरा किले के समक्ष थी लेकिन 1968 में यह नहीं दिखाई दी संभवता पीतल की प्लेटो आदि के लालच में उसे किसी ने क्षतिग्रस्त कर दिया।
आगरा के जिस साहूकार से बल्लू जी ने कर्ज लिया था उसके वंशज अपनी माँ की हालत ख़राब होने की वजह से डिबिया में रखा मूंछ का बाल और रुक्का लेकर नागौर के हरसोलाव ठिकाने पर गए बल्लू चम्पावत की पांचवी पीढ़ी में हुए #सूरत_सिंह ने अत्यंत श्रद्धा के साथ उस बाल को ग्रहण किया कर्ज चुकाया और उस मूंछ के बाल का अंतिम संस्कार कर 12 दिन तक शोक किया।
स्वामी ओर अपनी आन के लिए अपने प्राणों का भी मोह न करने वाले राजपूत योद्धाओं को मेरा बारंबार सादर प्रणाम

#पुस्पेंद्र_सिंह अखिल वैश्विक क्षत्रीय महासभा ट्रस्ट तहसील कार्यकारी अध्यक्ष जैतपुर शहडोल मध्य प्रदेश






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