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कैप्टन अमरिंदर सिंह की स्थिति असहज होती जा रही है

कैप्टन अमरिंदर सिंह की स्थिति असहज होती जा रही है

मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के तमाम विरोध और जातीय समीकरण दिखाने के बावजूद कांग्रेस हाईकमान ने जिस तरह से नवजोत सिंह सिद्धू काे कांग्रेस का प्रधान बना दिया है और वह लगातार सभी मंत्रियों, विधायकों, पूर्व प्रधानों आदि से मिलकर अपना काफिला बड़ा कर रहे हैं, उससे कैप्टन अमरिंदर सिंह की स्थिति असहज होती जा रही है।दरअसल, उनके अपने अति नजदीकी साथी भी अब सिद्धू खेमे में दिखाई दे रहे हैं। ऐसा नहीं है कि कैप्टन अमरिंदर सिंह के साथ ऐसा पहली बार हो रहा है, बल्कि 1997 से ही वह सत्ता संघर्ष में ऐसे ही दौर से गुजर रहे हैं लेकिन कैप्टन की जो स्थिति आज हुई है वैसी कभी नहीं हुई है। ऐसे में उनके पास सिद्धू के खिलाफ लड़ाई के क्या विकल्प रह जाते हैं।माना जा रहा है कि जिस दिन नवजोत सिद्धू श्री दरबार साहिब में नतमस्तक होने के लिए जाएंगे, 80 में से से 65 विधायक उनके साथ होंगे। यह ठीक उसी तरह है जैसे कैप्टन अमरिंदर सिंह ने इसी तरह का संघर्ष करके प्रताप बाजवा से प्रधानगी छीनी थी। तब भी लगभग सभी विधायक बाजवा के साथ न होकर कैप्टन अमरिंदर सिंह के खेमे में चले गए थे, क्योंकि वह जानते थे कि आने वाला समय कैप्टन का है। तो क्या अब इन सभी विधायकों को यह लगने लगा है कि कांग्रेस का सूर्य अब नवजोत सिद्धू के रूप में उदय हो रहा है।

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क्या कैप्टन अमरिंदर सिंह जैसा फौजी इतनी जल्दी हार मानने वाला है या अभी योद्धाओं की तरह लड़ेगा। 1997 में जब वह शिरोमणि अकाली दल का हिस्सा थे तो प्रकाश सिंह बादल ने पार्टी प्रधान रहते हुए उन्हें तलवंडी साबो से टिकट नहीं दिया था। कैप्टन अमरिंदर सिंह ने शिअद को अलविदा कह दिया और कांग्रेस में आ गए। ठीक उसी तरह जिस तरह 2017 के कैप्टन,अमरिंदर सिंह अकाली दल को छोड़कर कांग्रेस में आए और 2002 के चुनाव से पूर्व पार्टी ने उन्हें प्रदेश की कमान सौंप दी। कमान सौंपने से पहले कांग्रेसियों ने उनका ठीक उसी तरह विरोध किया जैसा आज कैप्टन अमरिंदर सिंह और उनके नजदीकी सिद्धू का कर रहे हैं।2002 में सरकार बनने पर राजिंदर कौर भट्ठल ने उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया। पहले सीएमशिप को लेकर बाद में डिप्टी सीएम बनने को लेकर, लेकिन कैप्टन अमरिंदर सिंह असहज नहीं हुए। 2007 के चुनाव के दौरान प्रदेश अध्यक्ष शमशेर सिंह दूलो और उनके बीच टिकटों का लेकर टकराव हुआ, लेकिन कैप्टन ने दूलो की ज्यादा चलने नहीं दी। 2017 के चुनाव से पूर्व तो प्रताप बाजवा और कैप्टन अमरिंदर सिंह के बीच प्रधानगी को लेकर जमकर संघर्ष हुआ। इसी तरह के एक फार्मूले में सुनील जाखड़ को विपक्ष के नेता और प्रताप बाजवा को प्रधानगी गंवानी पड़ी।

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अब कैप्टनअमरिंदर सिंह के पास क्या विकल्प हैं, यह सवाल राजनीतिक गलियारों में उठने लगा है। कैप्टन अमरिंदर सिंह के तमाम विरोध के बाद जिस तरह से हाईकमान ने सिद्धू के हाथ कमान सौंपी है उससे कांग्रेस में अपना भविष्य तलाशने वाले अब पीछे हट गए हैं। वह सिद्धू के साथ खुलकर चले गए हैं। कैप्टन उम्र के भी ऐसे पड़ाव पर खड़े हैं जहां अब कोई अलग राह तलाश नहीं कर पाएंगे।दूसरा नवजोत सिद्धू अपना कोई खेमा नहीं बना रहे हैं, बल्कि सभी को साथ लेकर चल रहे हैं। ऐसे में कैप्टन उनका विरोध एक हद तक ही कर पाएंगे। उन्हें सिद्धू के साथ सहज होना ही पड़ेगा। यहां मंत्री तृप्त राजिंदर बाजवा की टिप्पणी काफी सटीक है जब कैप्टन अमरिंदर सिंह ने अपने ऊपर व्यक्तिगत हमला करने वाले सुखपाल खैहरा को पार्टी में ले लिया है तो सिद्धू ने तो सिर्फ मुद्दों पर आधारित टिप्पणियां ही की हैं।

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