भाजपा के लिए उत्तर भारतीय अर्थात कड़ीपत्ता !
मुंबई में उत्तर भारतीयों की संख्या करीब 40 लाख है. कभी मुंबई के उत्तर भारतीय कॉंग्रेस के साथ बड़ी संख्या में हुआ करते थे लेकिन उत्तर भारतीयों के प्रति कॉंग्रेस की उदासीनता से परेशान होकर उत्तर भारतीय समाज, भारतीय जनता पार्टी की ओर चला गया
श्रीश उपाध्याय/मुंबई: मुंबई मे उत्तर भारतीयों की संख्या पूरी जनसंख्या का लगभग एक तिहाई है लेकिन प्रतिनिधित्व देने के नाम पर भाजपा में उत्तर भारतीयों को सिर्फ कड़ीपत्ता की तरह इस्तेमाल किया जाता है.
मुंबई में उत्तर भारतीयों की संख्या करीब 40 लाख है. कभी मुंबई के उत्तर भारतीय कॉंग्रेस के साथ बड़ी संख्या में हुआ करते थे लेकिन उत्तर भारतीयों के प्रति कॉंग्रेस की उदासीनता से परेशान होकर उत्तर भारतीय समाज, भारतीय जनता पार्टी की ओर चला गया. आज हालत यह है कि मुंबई कॉंग्रेस में कोई उत्तर भारतीय नेता नजर तक नहीं आता है . हालांकि मुंबई भाजपा मे उत्तर भारतीय नेताओ का तांता लगा हुआ है. इसके बावजूद संगठन के अलावा सरकार में उत्तर भारतीयों का प्रतिनिधित्व खत्म हो चुका है. एक विद्या ठाकुर पिछली सरकार मे मंत्री थीं उन्हें भी दरकिनार कर दिया गया है.
दरअसल मुंबई में भारतीय जनता पार्टी गुजराती और उत्तर भारतीय मतदाताओं को अपनी बपौती समझ रही है. गुजरातियों ने उत्तर मुंबई लोकसभा सीट से भाजपा सांसद पीयूष गोयल को जिता कर साबित भी कर दिया कि गुजराती पूरी तरह भाजपा के साथ है. उत्तर पश्चिम लोकसभा से शिवसेना उम्मीदवार रविन्द्र वायकर भी उत्तर भारतीय मतदाताओं के भरोसे ही जीते हैं .
मुंबई की बाकी बची पांच लोकसभा सीटों में रहने वाले उत्तर भारतीयों ने भाजपा को भरपूर मतदान किया. बावजूद इसके एक भी उत्तर भारतीय को ना ही लोकसभा में प्रतिनिधित्व दिया गया और ना ही मौजूदा राज्य सरकार मे कोई संवैधानिक जिम्मेदारी दी गई है.
मंगल प्रभात लोढा को भाजपा जी-जान से उत्तर भारतीयों का प्रतिनिधि बनाने की कोशिश कर रही है लेकिन इतने वर्षो बाद भी उत्तर भारतीय समाज ने लोढा को स्वीकर नहीं किया है. उत्तर भारतीय समाज में से राजहंस सिंह को विधान परिषद तो पहुंचा दिया गया लेकिन भाजपा ने उन्हें भी मंत्रिमंडल मे कोई स्थान नहीं दिया.
यह वस्तुस्थिति है कि
आगामी विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा उत्तर भारतीयों और गुजरातियों- मारवाडियों के भरोसे ही मुंबई में चुनाव लड़ने वाली है. हालाकि भाजपा कोशिश कर रही है कि किसी तरह उसे मराठी मतदाताओं का भी साथ मिले.
मराठी मतदाता अब भी शिवसेना और उबाठा के साथ खड़ा है. जबकि भाजपा मराठियों को वरियता दे रही है. अर्थात भाजपा उत्तर भारतीयों को हल्के में ले रही है. यही कारण है कि उत्तर भारतीयों को पीटने वाले राज ठाकरे भाजपा के सिरमौर बने हुए हैं.
आगामी विधानसभा चुनाव नजदीक है और उत्तर भारतीयों को प्रतिनिधित्व देने के नाम पर भाजपा में विद्या ठाकुर, रमेश ठाकुर के अलावा कोई दिखाई नहीं दे रहा है. यहां तक कि अभी तक भाजपा शीर्ष नेतृत्व ने किसी भी उत्तर भारतीय नेता को उम्मीदवारी देने की कथित आस भी नहीं दी है.
गत दिनों राज्यसभा चुनाव के दौरान मुंबई भाजपा के महामंत्री संजय उपाध्याय को पार्टी नेतृत्व ने उम्मीदवारी का चूरन चटाया था. संख्या बल के अनुसार संजय उपाध्याय की हार तय थी इसीलिए उन्हें उम्मीदवार बनाया गया था. हालाकि अब जबकि संख्या बल भाजपा के पाले में है तो उन्हें विधान परिषद तक के लिए नामांकित नहीं किया गया है. आने वाले विधानसभा चुनाव में भी पार्टी के लिए दिन रात पसीना बहाने वाले संजय उपाध्याय जैसे निष्ठावान कार्यकर्ताओं को भाजपा उत्तर भारतीयों के प्रतिनिधित्व की जवाबदारी देगी, इस बात पर विश्वास करना मुश्किल है.
भाजपा मे उत्तर भारतीयों नेताओ के रूप में जे पी सिंह, उदय प्रताप सिंह, नीतेश राजहंस सिंह, संजय पांडेय, अमरजीत मिश्रा,पवन त्रिपाठी जैसे नेता तो कई है लेकिन इनमे से एक भी नेता को निकट भविष्य में भाजपा विधानसभा उम्मीदवार बनाती नजर नहीं आ रही है.
भाजपा मे उत्तर भारतीयों की हालत कड़ीपत्ता जैसी ही लगती है. भाजपा उत्तर भारतीयों का मत-स्वाद लेना चाहती है लेकिन सत्ता में हिस्सेदारी देने के नाम पर कड़ीपत्ते की तरह ही बाहर निकाल देती है .
उत्तर भारतीय नेताओ की ओर भाजपा शीर्ष नेताओ की उदासीनता देखते हुए कहना गलत नहीं होगा कि भाजपा उत्तर भारतीयों को कड़ी पत्ता से अधिक नहीं समझती है.