अंतर-धर्म विवाह का मामला, बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा बालिग को अपने फैसले लेने की है आजादी
एक याचिका में कहा की एक बालिग महिला अपनी इच्छा के अनुसार स्थानांतरित करने के लिए स्वतंत्र है, और अपने फैसले खुद ले सकती है।
बॉम्बे हाई कोर्ट एक अंतर-धर्म दंपति की रक्षा में एक याचिका में कहा की एक बालिग महिला अपनी इच्छा के अनुसार स्थानांतरित करने के लिए स्वतंत्र है, और अपने फैसले खुद ले सकती है।
बता दें, 19 वर्षीय महिला ने दूसरे धर्म के व्यक्ति से शादी की थी, जिसके बाद महिला के पिता ने हैबियस कॉर्पस याचिका दायर की थी,जिसमें अपनी बेटी को वापस लाने की बात कही थी।
हालांकि,महिला ने पहले बॉम्बे हाईकोर्ट के जस्टिस एस एस शिंदे और जस्टिस मनीष पिटले की डिवीजन बेंच को बताया था कि वह अपने पति के साथ रहना चाहती है।
बॉम्बे हाई कोर्ट ने याचिका का निपटारा करते हुए मंगलवार को कहा “हम यह स्पष्ट करते हैं कि बेटी अपनी इच्छा के अनुसार अपने फैसले खुद लेने के लिए स्वतंत्र है।”
अदालत ने ठाणे पुलिस को ठाणे जिले के कल्याण क्षेत्र में दंपति को सुरक्षित उनके घर तक पहुंचाने का भी आदेश दिया। अदालत ने याचिका पर सुनवाई करते हुए यह भी कहा कि अंतरजातीय विवाह को समाज में समरूपता लाने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
न्यायमूर्ति शिंदे ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि देश में 3000 संप्रदाय और धर्म हैं। हर 25 किलोमीटर पर विभिन्न प्रकार के लोग हैं। इस देश में 130 करोड़ लोग एक साथ रहते हैं। उसके बाद भी इस तरह के वाक्य होना सही नहीं है।