मोदी और शाह को धमकाने वाला बन गया सांसद- पूरी हिस्ट्री !
अमृतपाल सिंह, कुछ लोगों के लिए ये शख्स कट्टरपंथी सोच वाला हो सकता है, तो वहीं कुछ लोग अमुतपाल सिंह को अपना आदर्श मान सकते हैं.
अमृतपाल सिंह, कुछ लोगों के लिए ये शख्स कट्टरपंथी सोच वाला हो सकता है, तो वहीं कुछ लोग अमुतपाल सिंह को अपना आदर्श मान सकते हैं. लेकिन असल में कौन है अमृतपाल सिंह, जो सांसद की शपथ लेने के लिए दिल्ली लाया गया, कहां से इसने चुनाव जीता है, और लोकसभा का सदस्य होने के बाद ये क्या करने वाला है, तो चलिए शुरु करते हैं खबर को.
जेल में बंद कट्टरपंथी अमृतपाल सिंह को लोकसभा सदस्य के रूप में शपथ लेने के लिए पैरोल पर दिल्ली लाया जा रहा है। अमृतपाल संसद में शपथ लेते ही सांसद हो जाएंगा। अमृतपाल को कट्टरपंथी सोच वाला इसलिए कहा जाता है क्योंकि ये खालिस्तान समर्थक है. लेकिन खालिस्तानी समर्थक होने के बावजूद, जेल में बंद होने के बावजूद अमृतपाल ने पंजाब की खडूर साहिब सीट से लोकसभा चुनाव जीता है। जिसके बाद उसे पैरोल पर जेल से बाहर ला जा रहा है. अमृतपाल के पैरोल के लिए मजिस्ट्रेट ने 10 शर्ते रखी हैं। उन्हें अपने परिवार से मिलने की अनुमति होगी, लेकिन दिल्ली से बाहर नहीं जा सकेंगे। अमृतपाल पर पंजाब जाने पर पाबंदी होगी।
पंजाब में अमृतसर के जिला मजिस्ट्रेट द्वारा जारी पैरोल आदेश में बताई गई शर्तों के अनुसार, अमृतपाल सिंह, उनके रिश्तेदार या परिवार के लोग मीडिया से बात कोई बात नहीं करेंगे, ना ही किसी तरह का बयान देंगे. आपको बता दें कि उन्हें पिछले साल 23 अप्रैल को अमृतसर से गिरफ्तार किया गया था। जिसके बाद अमृतपाल और साथियों को असम के डिब्रूगढ़ जिले की जेल भेज दिया गया. जहां रहते हुए उसने संसदीय चुनावों में पंजाब की खडूर साहिब लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा और जीता.
31 साल के अमृतपाल को शपथ ग्रहण के लिए हवाई जहाज के जरीए असम से दिल्ली लाया जाएगा और उसकी चार दिन की पैरोल अवधि पांच जुलाई से शुरू होगी। पैरोल आदेश में 10 शर्तों का उल्लेख किया गया है, जिसमें कहा गया है कि अस्थायी रिहाई की अवधि में डिब्रूगढ़ केंद्रीय जेल से नई दिल्ली तक जाने और वापस आने में लगने वाला समय शामिल होगा। इसमें कहा गया है कि वो नई दिल्ली को छोड़ कर कही नहीं जाएगा.
इस बात का भी ख्याल रखा जाएगा कि अमृतपाल सिंह की वीडियोग्राफी नहीं की जाएगी, मीडिया में उसके बयान पर रोक रहेगी. यहां तक की अमृतपाल के परिवारवालों को भी उसकी वीडियो बनाने की परमीशन नहीं दी जाएगी. इसके साथ ही ये जेल पुलिस से अमृतपाल की पैरोल के दौरान उसके साथ रहेगी।
आपको बता दें कि अमृतपाल सिंह “वारिस पंजाब दे” संगठन का प्रमुख है। उसे उसके नौ साथियों के साथ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत जेल में बंद किया गया है। अमृतपाल को पिछले साल 23 अप्रैल को मोगा के रोडे गांव में गिरफ्तार किया था। चलिए अब आपको वारिस पंजाब दे संगठन के बारे में बताते हैं जो अमृतपाल का ऐजेंडा चलाने का काम कर रहा था.
‘वारिस पंजाब दे’ पंजाब के अधिकारों की रक्षा के लिए लड़ाई का दावा करता है. इस संगठन के जरिए दीप सिद्धू ने पंजाब के हक की लड़ाई को आगे बढ़ाना का मकसद बताया था. और यह भी कहा था कि ‘वारिस पंजाब दे’ संगठन किसी राजनीतिक एजेंडे पर नहीं चलेगा. लेकिन सियासत से इसके संबंध और खालिस्तान की मांग करने वाले लोग इससे जुड़े रहे.
अमृतपाल सिंह अमृतसर में अपने करीबी सहयोगी लवप्रीत तूफान की गिरफ्तारी के खिलाफ विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व करके सुर्खियां में आया था. 30 वर्षीय अलगाववादी नेता पंजाब के अमृतसर के जल्लूपुर गांव का रहने वाला है. फरवरी 2022 तक अमृतपाल पश्चिमी देशों के जीवन शैली से प्रभावित था और वह पगड़ी भी नहीं पहनता था. वह दुबई में अपने रिश्तेदार के साथ उनका ट्रांसपोर्ट बिजनेस देखता था और अपना अधिकांश समय सोशल मीडिया पर बिताता था.
फरवरी 2022 में दीप सिद्धू की मौत हो गई इसके बाद सब कुछ बदल सा गया. दीप सिद्धू की मौत से उसके समर्थक निराश हो गए और खुद को अकेला महसूस करने लगे. इस हालात का अमृतपाल सिंह ने फायदा उठाया और सिद्धू की मौत के बाद खालीपन को भरने की कोशिश में उसने खुद को ‘वारिस पंजाब दे’ का नया मुखिया घोषित कर दिया. इस समूह का गठन दीप सिद्धू ने किया था, जब उसे प्रदर्शनकारी किसान संघों द्वारा मंच साझा करने से रोक दिया गया था. सिद्धू के परिवार ने शुरू में अमृतपाल सिंह के संगठन का मुखिया बनने पर आपत्ति जताई थी. अमृतपाल के खालिस्तानी हमदर्दों के बीच मशहूर होने की एक बड़ी वजह यह थी कि उसने अपने अलगाववादी एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए पंजाब को आधार बनाया था. जबकि गुरपतवंत पन्नू जैसे कई अलगाववादी विदेशों से अपना कारोबार चला रहे थे, अमृतपाल ने भारत से अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने का प्लान किया.
अमृतपाल जरनैल सिंह भिंडरावाले से प्रभावित रहा और उसी के नक्शेकदम पर चलते हुए अमृतपाल ने युवा लोगों के साथ मिलकर अपने संगठन के क्षेत्र का विस्तार किया. वो भिंडरावाले की तरह कपड़े पहनने लगा. और उसी के अंदाज में तस्वीरें भी खिंचवाने लगा.
हिंदुओं और सिखों के बीच सांप्रदायिक विभाजन और नफरत पैदा करके उसने यह एजेंडा फैलाया कि सिख धर्म खतरे में है और सिख गुलाम हैं. जबकि कई लोगों का मानना है कि वह सिख धर्म को बढ़ावा दे रहा है. हालांकि बड़ी संख्या में सिख विद्वानों का कहना है कि वह धर्म को नुकसान पहुंचा रहा था और पाकिस्तान के ISI के एजेंडे को चलाने का काम कर रहा है.
अमृतपाल सिंह का मेन टारगेट भारत में हिंदी भाषी आबादी थी. कम समय में लोकप्रियता हासिल करने के बावजूद, अमृतपाल कई सिख प्रचारकों और नेताओं के निशाने पर भी आ गया. गुरुद्वारे के फर्नीचर जलाने के साथ कई सिख संगठनों ने उसकी गतिविधियों पर आपत्ति जताई.
अमृतपाल खालिस्तान बनाने की मांग को सही ठहराते हुए कहता था कि अगर कट्टरपंथी हिंदू राष्ट्र की मांग कर सकते हैं, तो सिख राष्ट्र की मांग करने में क्या गलत है? वह अक्सर अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए बेअंत सिंह की हत्या का हवाला देता था. उसने यह भी कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने खालिस्तान पर आपत्ति जताने की “कीमत चुकाई” और पीएम मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और पंजाब के सीएम भगवंत मान सहित मौजूदा नेतृत्व उन्हें खालिस्तान की मांग करने से नहीं रोक सकता.