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महाशिवरात्री पर उत्तराखंड के इस प्राचीन मंदिर में लगा भक्तों का तांता, मंदिर की कहानी जान आप भी हो जायेंगे हैरान?

मंदिर की स्थापना वर्तमान पुजारी चंदू सिंह के परदादा कल्याण सिंह ने की थी। चंदू सिंह ने बताया कि संतान न होने पर उसके परदादा ने हिमालय में जाकर कठोर तपस्या की थी।

नई दिल्ली। उत्तराखंड के दिनेशपुर में हर साल की तरह इस साल भी महाशिवरात्री के पावन अवसर पर रामबाग आदिवासी शिव मंदिर ने शिव भक्तों ने पूजा अर्चना की। मंदिर में स्थित 350 साल पुराने शिवलिंग पर जलाभिषेक कर पूजा अर्चना की।

मान्यता है कि प्राचीन काल में इस शिवलिंग का आकार घटता-बढ़ता रहता था और इस शिवलिंग पर जल चढ़ाने से भक्तों की सभी मुरादें पूरी होती है। हर साल महाशिव रात्रि के मौके पर क्षेत्र के हजारों कांवड़िये हरिद्वार से कंधे पर जल लेकर इस प्राचीन काल के शिवलिंग में चढ़ाते हैं। इस मौके पर पांच दिवसीय एक ऐतिहासिक भव्य मेला का आयोजन भी किया गया है और पुलिस प्रशासन ने भी अपनी तैयारी पूरी कर ली है तथा कोविड 19 के नियमों का पालन भी कराया जा रहा है।

मंदिर की स्थापना वर्तमान पुजारी चंदू सिंह के परदादा कल्याण सिंह ने की थी। चंदू सिंह ने बताया कि संतान न होने पर उसके परदादा ने हिमालय में जाकर कठोर तपस्या की थी। तपस्या के दौरान स्वयं शिव जी ने उन्हें दर्शन दिए और चंदायन स्थित एक ऊंचे टीले में मौजूद एक शिवलिंग को ढ़ूंढकर वहां एक मंदिर की स्थापना करने पर सभी मनोकामना पूरी होने की बात कही थी। जिसके बाद इस शिवलिंग को ढ़ूंढकर मंदिर स्थापना की तो उनको संतान की प्राप्ति हुई। जिसके बाद से पीढ़ी दर पीढ़ी उनके वंशज यहां मुख्य पुजारी के रूप में देखभाल करते हैं। उन्होंने बताया कि मंदिर के आस-पास खुदाई के दौरान कई मूर्तियां मिली थी। लेकिन उचित रखरखाव और देखभाल नही होने पर बेशकीमती मूर्तियां चोरी हो गई। मंदिर परिसर में आज भी ब्रहमा, विष्णु, महेश की संयुक्त खंडित त्रिमूर्ति के अलावा नंदी भगवान की खंडित मूर्ति मौजूद है।

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