Breaking NewsTop Newsराज्यहरियाणा
Trending

केंद्र सरकार के इस फैसले से उन प्रगतिशील किसानों को जरूर निराशा हो सकती है जो पहले दिन से तीनों कृषि कानूनों को किसानाें के हित में बता रहे थे

केंद्र सरकार के इस फैसले से उन प्रगतिशील किसानों को जरूर निराशा हो सकती है जो पहले दिन से तीनों कृषि कानूनों को किसानाें के हित में बता रहे थे

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा तीन कृषि कानून वापस लेने के फैसले का हरियाणा की अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक बदलाव नजर आएगा। केंद्र सरकार के इस फैसले से उन प्रगतिशील किसानों को जरूर निराशा हो सकती है जो पहले दिन से तीनों कृषि कानूनों को किसानाें के हित में बता रहे थे, लेकिन बड़े और लंबे आंदोलन की वजह से प्रदेश की अर्थव्यवस्था पर जो असर पड़ रहा था, अब उसके पटरी पर आने के आसार पैदा हो गए हैं।हरियाणा की जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) का 2.8 फीसद हिस्सा अकेले कृषि से मिलता है। दो साल तक कोरोना और एक साल तक कृषि सुधार विरोधी आंदोलन के बावजूद हालांकि जीडीपी पर कोई खास असर देखने को नहीं मिला, लेकिन तमाम तरह के कामकाज, उद्योग-धंधे और अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने वाले प्रयोग बंद पड़े थे। आंदोलनकारियों का प्रमुख केंद्र हरियाणा की वह सीमाएं रही हैं जो राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से सटी हुई हैंहरियाणा के ज्यादातर उद्योग सोनीपत, बहादुरगढ़, झज्जर, गुरुग्राम, फरीदाबाद की इसी बेल्ट पर मौजूद हैं। लाखों लोगों का हर रोज हरियाणा से दिल्ली और दिल्ली से हरियाणा आना-जाना होता है। रास्ते बंद होने से न केवल व्यापार प्रभावित हो रहा था, बल्कि लोगाें को आने-जाने में भी काफी दिक्कतें उठानी पड़ रही थी। इस आंदोलन के खत्म होने के बाद उद्यमियों और व्यापारियों को भी बड़ी राहत मिलने वाली है।

भोजपुरी ,हिन्दी ,गुजराती ,मराठी , राजस्थानी ,बंगाली ,उड़िया ,तमिल, तेलगु ,की भाषाओं की पूरी फिल्म देखने के लिए इस लिंक को क्लीक करे:-https://aaryaadigital.com/ आर्या डिजिटल OTT पर https://play.google.com/store/apps/de… लिंक को डाउनलोड करे गूगल प्ले स्टोर से

किसान संगठनों का यह आंदोलन प्रदेश सरकार के संयम का भी बहुत बड़ा उदाहरण बनकर सामने आया है।एक साल से चल रहे आंदोलन को खत्म कराने के लिए मुख्यमंत्री मनोहर लाल और उप मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला व उनकी कैबिनेट के मंत्रियों ने बार-बार अनुरोध किए। बदले में उन्हें विरोध और हिंसा का सामना करना पड़ा, लेकिन इसके बावजूद सरकार ने अपना संयम नहीं तोड़ा। आंदोलनकारियों पर न लाठी चली और न गोली से हमला हुआ। करनाल में बस्ताड़ा प्रकरण एक आइएएस अधिकारी आयुष सिन्हा की गलती का परिणाम जरूर रहा। इसकी जांच के लिए सरकार ने जस्टिस एसएन अग्रवाल की अगुवाई में एक आयोग का गठन भी कर दिया है। इस आयोग को अगले दो महीने में अपनी रिपोर्ट देनी है। अकेले इस प्रकरण को यदि छोड़ दिया जाए तो यह आंदोलन किसान संगठनों के सब्र और सरकार के संयम का बड़ा उदाहरण बनकर सामने आया है।भाजपा सरकार के मंत्रियों और नेताओं को जिस तरह से फील्ड में जाने से दिक्कतें हो रही थी, उसके मद्देनजर इस आंदोलन का खत्म होना जरूरी हो गया था। भाजपा नेताओं से भी ज्यादा राहत जजपा नेताओं को मिली है। उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला सहित सरकार में साझीदार तमाम जजपा नेता किसान संगठनों के निशाने पर थे। आंदोलन खत्म कराने तथा किसानाें की बात को बार-बार केंद्र तक पहुंचाने में गठबंधन नेताओं की भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। अब देखने वाली बात यह होगी कि दिल्ली और हरियाणा की सीमाओं पर जमे किसान संगठन कब गांव की ओर वापसी कर सकते हैं।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button